गुलमोहर सा साहित्यिक सौंदर्य-

         जापानी साहित्य की विधा-ताँका का भी हिन्दीकरण हो चुका है। इसे लघुगीत माना जाता है, पाँच पंक्ति की रचना में 5,7,5,7,7 यानि कुल 31वर्ण के फ्रेम में इसे लिखा जाता है। वर्तमान में एक ही व्यक्ति द्वारा ताँका लिखा जा रहा है, यह इसका युगांतरकारी परिवर्तन है इससे अभिव्यक्ति के शब्दांकन में पूर्णता आती है। इस विधा में लोकभाषाओं, अनुवाद, विशेषांक एवं शोध के स्तर पर विकास करने की ज्यादा आवश्यकता है, इनकी शुरुआत हो चुकी है। हाइकु से इस मामले में, इसकी लोकप्रियता कम होने के चलते यह अपेक्षाकृत पिछड़ गया है तथापि यह अपनी पहचान बनाने में सफल हो चुका है। ताँका का सोशल मीडिया में ‘त्रिवेणी’ ब्लॉग्स के द्वारा नवलेखकों का  प्रोत्साहन प्रशंसनीय है। 

      वरिष्ठ साहित्यकार-सुदर्शन रत्नाकर, हरियाणा के संपादकीय दायित्व में हिंदी ताँका संकलन-‘सजे गुलमोहर’ का प्रकाशन हुआ। ताँका विधा के लिए किए गए हर प्रयास का स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि यह अभी प्रगति की राह पर रेंग रही है। इस संग्रह में मुझे मिलाकर -57 ताँकाकारों के ताँका प्रकाशित हुए हैं। इसमें आप मुझे क्रम संख्या-21 एवं पृष्ठ संख्या-73 पर पढ़ सकते हैं। इस संग्रह में कुल-810 ताँका संगृहित हैं। ताँकाकारों की सूची इस प्रकार है-1.डॉ. सुधा गुप्ता, 2.रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु', 3.सुदर्शन रत्नाकर, 4.डॉ. हरदीप सन्धु (आस्ट्रेलिया), 5.कमल कपूर, 6.कमला निखुर्पा, 7.डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री', 8.डॉ. जेन्नी शबनम, 9.डॉ. इन्दु गुप्ता, 10.रचना श्रीवास्तव (यू.एस.), 11.कृष्णा वर्मा (कैनेडा), 12.डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा, 13.अनिता ललित, 14.भावना सक्सेना, 15.डॉ. सुरंगमा यादव, 16.डॉ. भीकम सिंह, 17.डॉ. पूर्वा शर्मा, 18.डॉ. उपमा शर्मा, 19.डॉ. कमलेश मलिक, 20.शोभना श्याम, 21.रमेश कुमार सोनी, 22.त्रिलोक सिंह ठकुरेला, 23.डॉ. राम निवास मानव, 24.सविता अग्रवाल 'सवि' (कैनेडा), 25.दिनेश चन्द्र पाण्डेय, 26.विभा रश्मि, 27.ज्योत्स्ना शर्मा प्रदीप, 28.अनिता मंडा, 29.डॉ. अंजु दुआ 'जैमिनी', 30.डॉ. कुमुद बंसल, 31.शशि पाधा (यू.एस.), 32.रश्मि विभा त्रिपाठी, 33.आशमा कौल, 34.प्रीति अग्रवाल (कैनेडा), 35.विनीता राहुरीकर, 36.मनजीत शर्मा 'मीरा', 37.डॉ. नीना छिब्बर, 38.डॉ. रेखा शर्मा, 39.सुनन्दा भावे, 40.क्रांति (येवतीकर) कनाट, 41.परमजीत कौर 'रीत', 42.उषा लाल, 43.डॉ. दुर्गा सिन्हा उदार, 44.डॉ. उर्मिला मिश्र (आस्ट्रेलिया), 45.आशा शर्मा, 46.डॉ. शांति शर्मा, 47.प्रदीप गर्ग 'पराग', 48.निर्झरी महेता, 49.प्रियंका गुप्ता, 50.डॉ. शील कौशिक, 51.डॉ. मंजु गुप्ता, 52.विनीता नरूला, 53.कृष्ण लता यादव, 54.लाडो कटारिया, 55.शकुंतला पालीवाल, 56.डॉ. सरोज गुप्ता एवं 57.वीणा अग्रवाल।

     इस संकलन के सभी ताँका की समीक्षा सम्भव नहीं है तथापि कुछेक का वर्णन करना लाज़िमी है। इनमें कुछ नाम नये हैं तथा कुछेक के एकल संग्रह भी अब उपलब्ध हैं।  इस संकलन के ताँका का चयन संपादक द्वारा ठोंक-बजाकर किया गया है इसलिए कोई भी ताँका कमतर नहीं है। 

1   प्रकृति वर्णन की पर्याय बन चुकी डॉ. सुधा गुप्ता के ताँका हम सबका मार्गदर्शन करते हैं इस ताँका में गुलमोहर का मानवीयकरण हुआ है-

पाँत में खड़े/गुलमोहर सजे/हरी पोशाक/चोटी में गूँथे फूल छात्राएँ चलीं स्कूल।

2   सोशल मीडिया ‘हिंदी हाइकु’ के माध्यम से पूरी दुनिया को हाइकु से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य करने वाले रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ने ताँकाकारों को ‘त्रिवेणी ब्लॉग’ के द्वारा जोड़ा है। आपके ताँका प्रायः आम जनजीवन के आसपास होते हैं जो यहाँ दर्शित है- 

जिएँगे कैसे/किश्तों में ये जिंदगी?/सौ अनुबन्ध/हजारों प्रतिबन्ध/फिर ये तेरी कमी।

3   इस संकलन की संपादक सुदर्शन रत्नाकर का साहित्य के प्रति श्रम एवं समर्पण को नमन करता हूँ। इस ताँका में बसंती हवाओं की मस्ती के सौंदर्य को आपने उकेरा है जो बसंत लेकर आए हैं। बसन्त को देखने का मनुहार करती हवाएँ आमंत्रण बाँट रही हैं-

किवाड़ खोल/खटखटा रहे हैं/बाहर खड़े/मस्त हवा के झोंके जो/वसंत लाया है।

4    हिंदी हाइकु एवं त्रिवेणी ब्लॉग की सम्पादकीय भूमिका को समान रुप से निभाने वाली हरदीप कौर सन्धु की रचनाओं में गाँव और स्मृतियों का दिल को छू लेने वाले चित्र होते हैं। इस ताँका में पहली बारिश से धूल रानी का घाघरा उठाए भागने का दृश्य अद्भुत है-

बादल छाए/चलीं तेज हवाएँ/बरसा पानी/भागी रे धूल रानी/ यूँ घाघरा उठाए!

5      कृष्णा वर्मा के ताँका विविध उपविषयों पर पढ़ने को मिल जाते हैं। यहाँ पर यमक अलंकार से उपजे सौंदर्य से जिया धड़क रहा है। मटकी के विविध अर्थो के साथ इस दृश्य का सौंदर्य देखिए-

    मटकी पर/मटकी धरकर/मटकी जाए/लचके करधनी/जियरा धड़काए।

6       डॉ. रामनिवास मानव के ताँका अपने परिवेश की विडंबनाओं को उघाड़ने और उसके विरोध में आईना दिखाने को खड़ी होती है। सत्ता का लालच और सीमाओं के विस्तार के लिए अस्त्र-शस्त्र जिम्मेदार होते हैं। यह ताँका अहिंसा के संदेश लिए प्रस्तुत हुई है-

     जो आँगन में/बंदूकें उगाएँगे,/वे एक दिन?अपनी बंदूकों से/आप मारे जाएँगे।

7    डॉ. सुरंगमा यादव, इस ताँका के द्वारा वर्तमान की एक बड़ी समस्या को उकेरा गया है जो न्याय व्यवस्था पर चोट करते हुए पीड़ितों के साथ खड़ी हुई है। महिलाओं पर हो रहे व्यापक अत्याचार, हिंसा और न्याय की राह के रोड़े को अभिव्यक्ति देता है यह ताँका-

   गिद्ध करते/उलूकों की पैरवी/न्याय की आस/भटकें पीड़िताएँ/ कितनी ही आत्माएँ।

8    डॉ. भीकम सिंह के ताँका की विशेषता रही है कि वह अपने ग्रामीण जीवन की सुगंध के साथ  उपस्थित होती है। इस  ताँका में चना और सरसों की खेती जो साथ-साथ ली जाती है का सुंदर वर्णन है-

 सरसों चना/खेतों में खिला घना/फूल-फूल की/खुसपुस-सी कई/सटके बैठ गई।


      इस संकलन के ये ताँका गहरे अर्थ लिए हुए मनमोहक हैं। इनके प्रतीक और बिम्ब के साथ अपने परिवेश का तालमेल मन को छू लेने वाले हैं। निम्नलिखित ताँका इस अंक की शोभा बढ़ा रहे हैं-

झूलती प्रीत/मन के छज्जे पर/बचपन की/सुन्दर गमले-सी/ खिलें नए सुमन।-डॉ. कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’


झूमती नदी/बतियाती लहरें/बलखाती है/ज्यों नागिन हो कोई/अद्भुत रूप लिए।-डॉ. जेन्नी शबनम


सिंधु में नदी/मिले हहराकर/पानी लिखता/खारेपन में भीगा/ नदी का प्रेम-पत्र।-डॉ. इन्दु गुप्ता


सोईं फूल पे/ओढ़ मोती चूनर/ओस की बूँदें/बही शीतल हवा/ विदा हो गईं बूँदें।-रचना श्रीवास्तव


हवाओं संग/झूम-झूम गा रही/गेहूँ की बाली/जलकुकड़ी आई/एक बदली काली।-डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा


भटका मन/देख संसार रंग/रमे न ईश/तृष्णा ऐसी बावरी/फिरे नगर गाँव।-भावना सक्सेना


एक तोहफा/इस बार ले आना/मेरे लिए भी/ज्यादा नहीं! थोड़ा-सा.../बस... वक्त तुम्हारा !-डॉ. पूर्वा शर्मा


रात्रि के केश/बूँदों से हुए गीले/नींद से जागे/सागर, नदी, ताल/बूँदें करें बवाल !-ज्योत्स्ना शर्मा प्रदीप


डूबता सूर्य/गुलाबी आसमान/नीली सी साँझ/मुस्कुराती चन्द्रिमा/प्रकृति का शृंगार।-शशि पाधा


खेल-खेल में/तुमने नाग नाथा/बिषधरों से/मुझे भी बचा कान्हा/चरणों में है माथा।-रश्मि विभा त्रिपाठी


     ‘सजे गुलमोहर’ के चयनित सभी ताँकाकारों को हार्दिक बधाई एवं संकलनकर्ता का अभिनंदन। यह संकलन ताँका के विकास की राह में मील का पत्थर साबित होगा। 

मेरी शुभकामनाएँ। 


रमेश कुमार सोनी

रायपुर, छत्तीसगढ़

…..

सजे गुलमोहर-ताँका संकलन

संपादक-सुदर्शन रत्नाकर

अयन प्रकाशन-नई दिल्ली 2024

ISBN: 978-81-19299-14-0

पृष्ठ-147,  मूल्य-425/-₹

……




No comments:

Post a Comment