हाइकु अनुवाद के ठुमकते कदम
हिंदी हाइकु इक्कीसवीं सदी के इस मुकाम पर किसी परिचय की मोहताज नहीं वरन प्रगति के नित नए प्रतिमान स्थापित करते जा रही है। अभी तक हाइकु के कई एकल, साझा संग्रह, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के विशेषांक, शोध कार्य आदि सम्पन्न हो चुके हैं साथ ही लोकभाषाओं में भी इसके संग्रह आ चुके हैं। सोशल मीडिया पर भी हाइकु के कई ब्लॉग्स आदि सक्रिय हैं लेकिन ‘हिंदी हाइकु’ सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। हाइकु अब अनुवाद के राजमार्ग पर भी सरपट दौड़ने लगी है।
अनुवाद का कार्य, लेखन से भी कठिन माना जाता है क्योंकि इसमें अनुवादक को अनुवादित भाषा पर अधिकार होने के साथ ही रचियता की संवेदना के स्तर पर खड़ा होना होता है अन्यथा अनुवादित रचना के भाव में वो धार नहीं आ पाती। ऐसा ही एक दुष्कर कार्य रश्मि विभा त्रिपाठी कर रही हैं आपने पहली बार हिंदी हाइकु को ब्रज भाषा में अनुवाद करने का गौरव प्राप्त किया है जो प्रशंसनीय है। ‘सुन्हैरी संझा’ में 5 देशों के 46 हाइकुकारों के लगभग 444 हाइकु का अनुवाद ब्रज भाषा में किया गया है।
हिंदी हाइकु को अन्य भाषा में अनुवाद के कार्य के लिए-डॉ. कुँवर दिनेश सिंह, रचना श्रीवास्तव, डॉ. कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’ के क्रम में रश्मि विभा त्रिपाठी का एक और नाम जुड़ गया। अर्थ को तोड़-मरोड़ किए बिना हाइकु के उसी भाव को अन्य भाषा मे बेहतर तरीके से प्रस्तुत करना एक प्रशंसनीय कार्य है जिसे आप सभी ने किया है। ये हाइकु अब इन लोकभाषाओं के द्वारा सुदूर ग्राम्यांचल तक के अंतिम पाठक तक अपनी पहुँच बनाने में कामयाब होगा इससे इसके विस्तार को पँख लग गए हैं।
इस संकलन में इन हाइकुकारों के हिंदी हाइकु का अनुवाद ब्रज भाषा मे किया गया है- भारत- 1डॉ. सुधा गुप्ता, 2 डॉ. गोपाल बाबू शर्मा, 3 नीलमेन्दु सागर, 4 रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु', 5 डॉ. कुँवर दिनेश सिंह, 6 डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री', 7 डॉ. जेन्नी शबनम, 8 सुदर्शन रत्नाकर, 9 कमला निखुर्पा, 10 डॉ. शिवजी श्रीवास्तव, 11 ऋता शेखर मधु, 12 डॉ. भीकम सिंह, 13 मीनू खरे, 14 हरेराम समीप, 15 डॉ. सुरंगमा यादव, 16 प्रियंका गुप्ता, 17 अनिता ललित, 18 रश्मि विभा त्रिपाठी, 19 हरकीरत हीर, 20 अनुपमा त्रिपाठी, 21 अनिता मण्डा, 22 डॉ. सुषमा गुप्ता, 23 रश्मि शर्मा, 24 डॉ. उपमा शर्मा, 25 शशि बंसल गोयल, 26 परमजीत कौर 'रीत', 27 डॉ. पूर्वा शर्मा, 28 पूनम सैनी, 29 अनिमा दास, 30 कपिल कुमार, 31 डॉ. मीना अग्रवाल, 32 डॉ. पद्मजा शर्मा, 33 दिनेश चन्द्र पाण्डेय, 34 सुरभि डागर,35 विनीत मोहन 'औदिच्य' एवं 36 रमेश गौतम। देशान्तर खण्ड में 1ऑस्ट्रेलिया:-37 डॉ. हरदीप कौर सन्धु, 2 कैनेडा:- 38 कृष्णा वर्मा, 3 मॉरिशस:-39 सुनीता पाहुजा, 4 यू.एस.ए.: 40 रचना श्रीवास्तव, 41 शशि पाधा, 42 मंजु मिश्रा एवं 43. डॉ. अमिता कौण्डल तथा धरोहर खंड में -44 डॉ. भगवतशरण अग्रवाल, 45 डॉ. रमाकान्त श्रीवास्तव एवं 46 डॉ. सतीशराज पुष्करणा।
इस संकलन से कुछ हाइकु उदाहरण स्वरूप यहाँ उल्लेखित करना उचित होगा, सभी के हाइकु की समीक्षा सम्भव नहीं है। इस हाइकु में एक साथ कई बिम्ब उकेरे गए हैं; हवा,बादल और खेत के साथ किसान के दुःख को गहराई से प्रकट करता ये हाइकु सुंदर है-
ले गई हवा/सावन के बादल/जलते खेत।
(डॉ.भगवतशरण अग्रवाल)
परानी ब्यार/लै साउनी बादर/ खेत बरत।- ब्रज अनु.
इस हाइकु में ग्रीष्म की तीव्रता की पराकाष्ठा देखिए की हवा भी एक घूँट पानी के लिए सूखे गले से कलप रही है, यहाँ हाइकु का यह दृश्य पाठक को ग्रीष्म की अनुभूतियों से जोड़ता है-
सूखे गले से/कलप रही हवा/घूँट पानी के।
(डॉ. सुधा गुप्ता)
सुकाने गरैं/ससाई रई ब्यारि/अम्बु-घटका।- ब्रज अनु.
हमारे भारत में कभी दूध की नदियाँ बहती थी ये हम सबने सुना है लेकिन आज तक देखने को नहीं मिला है। इसी दृश्य को मिलावटखोरी के साथ जोड़ते हुए आज के परिदृश्य पर तंज कसने का यह दृश्य सुंदर है-
दूध की नदी/आज भी है बहती/यूरिया-घुली।
(डॉ. गोपाल बाबू शर्मा)
पय की नदी/अजौं परवाहति/यूरिया घुरी।- ब्रज अनु.
शहरीकरण वर्तमान की सबसे बड़ी समस्या है, शहरी चकाचौंध सबको आकर्षित करता रहा है तब से लेकर अब तक ये समस्या लगातार बढ़ती ही जा रही है ऐसे में ये हाइकु समीचीन जान पड़ता है और सीधे ही संवाद के लिए प्रस्तुत है-
गाँव मुझको/मैं ढूँढता गाँव को/खो गए दोनों।
(डॉ. रमाकान्त श्रीवास्तव)
खेरौ मोहिकौं/हौं सोधतु खेरे कौं/हिराने दोऊ।- ब्रज अनु.
पानी हमारी सभ्यता के मूल में व्याप्त है इसके बिना जीवन की कल्पना सम्भव ही नहीं है। आज के दौर में पानी के कई मायने है क्योंकि यह बाज़ार की जेब मे है। ऐसे समय में कोई प्यासा है तो उसके प्यास की वजह सिर्फ दैहिक ना होकर व्यापारिक भी हो सकती है; आइए इस भाव से पानी की डर के साथ हम सब खड़े हों-
पानी काँपा है/कोई प्यासा खड़ा है/नदी-तट पे।
(डॉ. सतीशराज पुष्करणा)
पनियाँ कंप्यौ/कौऊ पियासौ ठाड़ौ/नदिया कच्छ।- ब्रज अनु.
हाइकु एक संपूर्ण कविता है जो हमें अपने पुष्ट भाव, बिम्ब, के दृश्यों के साथ उसमें निहित गूढ़ अर्थ सहित हाइकुकार की संवेदनशीलता तक ले जाती है यही इसका सौंदर्य है। वर्तमान में इसके शिल्प को लेकर कोई संशय नहीं है तथापि शब्दों का चयन ही इसे विशिष्ट बनाता है।
अनुवाद के इस कठिन सफ़र में आपने हाइकु के शिल्प का पालन किया है तथा लोकभाषा में भी भावों को सजीव रखा है। अनुवाद के महती कार्य के लिए आपको शुभकामनाएँ, बधाई। यह कार्य आने वाली पीढ़ियों के लिए उदाहरण बनेगी।
‘सुन्हैरी संझा’ में शामिल सभी हाइकुकारों का अभिनंदन एवं संकलनकर्ता/अनुवादक को शुभकामनाएँ।
रमेश कुमार सोनी
रायपुर, छत्तीसगढ़
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स्वर्णिम साँझ (सुन्हैरी संझा)-हाइकु अनुवाद संकलन
संकलन एवं ब्रज अनुवाद-रश्मि विभा त्रिपाठी
ISBN: 978-81-19299-68-3
अयन प्रकाशन-नई दिल्ली, 2024
मूल्य-450/-₹, पृष्ठ-160, फ्लैप-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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