सेदोका


 







1

पेड़ काँपते

चश्मा बदले माली

बढ़ई हुआ मन

दिखा सर्वत्र

आरी,कुल्हाड़ी संग 

बाजार के सपने। 

2

गुलाब हँसे

कँटीली चौहद्दी में

सौंदर्य की सुरक्षा

महँगी बिके

कोठियों,मंदिरों में 

महक बिखेरने।  

3

भोर को चखा

तोते की चोंच लाल

भूख ज़िंदा ही रही

फड़फड़ाती 

घोंसलों की उड़ानें

दानों के गाँव तक। 

4

मेघ गरजे 

बीज अँखुआएँगे

खेत नहाते थके

दूब झूमती

धरा हरिया गयी

मन मयूर नाचे। 

5

साधु से बैठे 

भोर-साँझ के रंग

अँगोछे में सिमेटे 

पहाड़ जैसे

सुख निखरा नहीं

दुःख उजाड़ा नहीं। 

 6

सावन सींचे

सात घोड़े उगाते

वधु सी मुस्काती

बंजर धरा

किसानी बाँछे खिलीं

बाज़ार मुस्कुराया। 

 7

पिंयरी ओढ़े

रेत ढूँढती पानी

मिलों यात्रा करती

नीला आकाश

देख-देख हँसता

मेघ नकचढ़ा है। 

......

रमेश कुमार सोनी 


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