ताँका अनुवाद की शेफाली खिली-

      शेफाली खिली (सेफाली फूली)’ रश्मि विभा त्रिपाठी का सद्यः प्रकाशित अनुवाद संकलन है जो जापानी साहित्य की ताँका विधा पर है। हिंदी ताँका के अब तक एकल, साझा संग्रह और पत्रिकाओं के विशेषांक प्रकाशित हो चुके हैं। लोकभाषा में भी एकल संग्रह उपलब्ध हैं एवं सोशल मीडिया पर ‘त्रिवेणी’ सभी ताँकाकाँरों का मार्गदर्शन करते हुए महती भूमिका निभा रही है। हिंदी ताँका का लोकभाषा में अनुवाद एक कठिन कार्य है जिसे आपने किया है मेरी जानकारी में इस विधा का यह पहला प्रयास है। इसके लिए आप बधाई की पात्र हैं।

      जापानी साहित्य की भाषा मे ताँका का अपना विशेष महत्व है इसे लघुगीत माना जाता है। यह हाइकु का विस्तार है; इसके 5 पंक्ति में 31 वर्ण क्रमशः 5,7,5,7,7 के अनुसार होते हैं। आजकल इसे एक ही रचनाकार द्वारा पूर्ण किया जाता है। इसमें अनुभूत दृश्य को शब्दों का विस्तार हाइकु की अपेक्षा ज्यादा मिल जाता है। यह विधा हाइकु के उपरांत सर्वाधिक लोकप्रिय विधा है। 

     4 देशों के 34 ताँकाकारों के हिंदी ताँका का ब्रज भाषा में अनुवाद इस संकलन में किया गया है इनके नाम इस तरह हैं- भारत :-1.नीलमेन्दु सागर, 2.रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु', 3.सुदर्शन रत्नाकर, 4.कमला निखुर्पा, 5.डॉ. जेन्नी शबनम, 6.डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री', 7.डॉ. भीकम सिंह, 8.ऋता शेखर 'मधु', 9.डॉ. सुरंगमा यादव, 10.प्रियंका गुप्ता, 11.सुभाष नीरव, 12.डॉ. शिवजी श्रीवास्तव, 13.डॉ. उमेश महादोषी, 14.डॉ. उर्मिला अग्रवाल, 15.मुमताज टी. एच. खान, 16.अनिता ललित, 17.अनिता मण्डा, 18.पुष्पा मेहरा, 19.रमेश कुमार सोनी, 20.रश्मि विभा त्रिपाठी, 21.पूनम सैनी, 22.दिनेश चन्द्र पाण्डेय, 23.अनिमा दास एवं 24. कपिल कुमार। देशांतर -ऑस्ट्रेलिया :-25.डॉ. हरदीप कौर संधु, 26.सुप्रीत कौर संधु, कनाडा :-27.कृष्णा वर्मा, यू.एस.ए. :- 28. रचना श्रीवास्तव, 29.शशि पाधा, 30. मंजु मिश्रा, 31.डॉ. अमिता कौंण्डल। स्मृति शेष :-32.डॉ.सुधा गुप्ता, 33.डॉ.सतीशराज पुष्करणा एवं 34.डॉ.रमाकान्त श्रीवास्तव।

      इस संकलन के सभी ताँकाकारों के चयनित ताँका बेहतरीन हैं उनका अनुवाद भी उसी के अनुरुप है। इस संकलन से हमारे मार्गदर्शकों के कुछ ताँका का उल्लेख सभी सुधि पाठकों के लिए प्रस्तुत है। 

     जीवन महज पाने और खोने का नाम नहीं है इससे अलग भी हमारी भावनाएँ होती हैं जो तेरा तुझको अर्पण की धारणा रखती है ऐसा ही भाव लिए इस ताँका के गूढ़ अर्थ भी है। प्रतीकों एवं बिम्ब का बहुत ही सादगी के साथ कैसे सुंदर उपयोग किया जा सकता है इसे देखिए-

 तुम्हें क्या खोया/जिन्दगी की स्लेट से/नाम मिटाया/आँसुओं डूब गई/दुःख गले लगाया।

                              डॉ. सुधा गुप्ता

 तुम्हें का खोयौ/जीबनु की स्लेट सौं/नाउँ ऐ मैट्यौ/अँसुअनि निमज्जी/दूखु गरैं लगायौ।-ब्रज अनुवाद

     किसी भी रिश्ते से कहीं ज्यादा माँ का स्थान है। माँ के होते किसी भी व्यक्ति को कोई चिंता नहीं होती क्योंकि उनके पास सभी समस्याओं का कोई ना कोई समाधान अवश्य ही होता है। माँ के आशीर्वाद को ईश्वर की कृपा के जैसा माना जाता है ऐसे ही आशीर्वाद का कवच लिए हुए है यह ताँका- 

 चिंता न मुझे/जीवित मेरी माँ है/फिक्र क्यों करूँ/जब आशीर्वाद का/कवच मेरे साथ।

                               डॉ. सतीश राज पुष्करणा

     चिंता न मोहि/जियति मोरी मैया/का अपसोसौं/जबैं आसिष कौ ऐ/कवच मोरे सन।-ब्रज अनुवाद

     मानवता की भावना हमें मानव बने रहने देती है अन्यथा की स्थिति में वह दानव हो जाएगा। हमारे ज़िंदा रहने के लिए जियो और जीने दो का सूत्र सबसे बड़ा है जो हमें जीवंत बनाए रखता है। आपके ताँका में राष्ट्रवाद और जीवन जीने की कला और नैतिकता पायी जाती है-

  जिएँ, जीने दें/मानव बन रहें/नेह में पगें/यही सार्थकता/है यही जीवन्तता।

                               डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव

   जिऐं, जीबे दैं/मानुस बनि रहैं/रसरीती मैं/पगैं, अरथु जई/ऐ जीवन्तता जई।-ब्रज अनुवाद

     हर जीवन के पाट में ही संपूर्णता है जो साथ-साथ ही चलें तो ही सुख-दुःख सहने की भावना विकसित होती है। इनमें आपसी समझ और बोलचाल जीवन को सजीव बनाती हैं लेकिन सन्नाटा हम सबको बर्छी की तरह चुभता है। बातें होती रहे तो समाधान भी संग चलते हैं-

   तेरी सिसकी/सन्नाटे को चीरती/बर्छी-सी चुभी/कुछ तो ऐसा करूँ/तेरे दुःख मैं वरुँ ।

                             रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

   तोरी सुसुकी/नीजन विदराति/बर्छी सी कुची/कछू तौ इमि करौं/तोरे दूखु हौं वरौं।-ब्रज अनुवाद 

     उपरोक्त सभी ताँका एक उदाहरण है उन सभी नव ताँकाकारों के लिए कि किस प्रकार अपने शब्दों को संयमित रखते हुए अनुभूतियों के साँचे में ढालें। ताँका किसी भी भाषा में लिखें उसका सदैव स्वागत रहेगा। हमें ताँका लिखने में संवेदना, अनुभव और अभ्यास को महत्व देना होता है। 

       ताँका के विकास मार्ग पर यह संकलन मील का पत्थर साबित होगा। इस संकलन के सभी ताँकाकारों को हार्दिक बधाई एवं इस महती कार्य को निभाने वाली संपादक तथा उनके प्रेरणास्रोत का अभिनंदन। हिंदी ताँका को आप जैसे संभवनाशील रचनाकार की आवश्यकता सदैव रहेगी। 

शुभकामनाएँ। 


रमेश कुमार सोनी

रायपुर,छत्तीसगढ़

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शेफाली खिली (सेफाली फूली)- ताँका ब्रज अनुवाद संकलन, रश्मि विभा त्रिपाठी

अयन प्रकाशन-दिल्ली 2024

ISBN: 978-81-968022-6-4

मूल्य-280/-₹, पृष्ठ-96

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