जंगल कहते ही
याद आने लगते हैं-
पशु- पक्षी, नदी, झरने और
जंगल का कानून,
पेड़ मानते हैं कानून
इसलिए सावधान खड़े हैं
जंगल कहे तो ये फूल- फल जाते हैं,
झर जाते हैं, कट जाते हैं
उफ़्फ़ भी नहीं करते ।
सड़कों की सीमा पर खड़े पेड़
कई दिनों से उनीदें हैं
वे टकराना नहीं चाहते आदमी से
क्योंकि ये विनम्र और अहिंसक हैं
धूल- धुआँ, पत्थर और
मौसम की बेरुखी सहते हुए भी सबको
पानी और छाया निःशुल्क देते हैं ;
उदास होने पर
पत्तियाँ गिराकर नंगे खड़े हो जाते हैं और
खुश होने पर महक कर
फल -फूल बाँटने लगते हैं ।
पेड़ों की परिंदों से यारी है
पाखी उन्हें अपने गीतों में ढालकर
दुनिया का हाल- चाल सुनाते हैं,
पेड़ चूजों के पलायन से खुश हैं
क्योंकि वे चाहती हैं कि-
बीजों की तरह ही
सबकी बिरादरी
दूर का प्रेम संबंध निभाए ।
पेड़ डरे हुए हैं आजकल
कुल्हाड़ी की लकड़ी से
जो पेड़ों की कमज़ोर नस को जानती है
विभीषण की तरह;
एक पेड़ कटने की शोक सभा में
आज जंगल के सभी पेड़ उपवास पर हैं
ठूँठ सिसक रहे हैं,
पक्षी हत्यारे की खोज में निकल पड़े हैं,
डोजियर तैयार हो रहा है;
लोग पौधे लगाते तो हैं
पर बचाते कहाँ हैं ?
आदमी चाहे तो जंगल बचेंगे
क्योंकि अब जंगल का कानून
लोग ही तय करते हैं !!
आदमी के चाहने पर ही बचेगा आखिरी पेड़ ।
…….. ………
रमेश कुमार सोनी
रायपुर ( छत्तीसगढ़ )
पिन - 493554 , संपर्क - 7049355476
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