भोर के हाइकु
भोर का यज्ञ  
अश्वमेघ के घोड़े
रात ने रोके  ||


भोर का फेरा
उजाला नहीं बिका
रोज का डेरा ||


भोर निडर
रात गाँव से चले
दिन के घर ||


पाखी का गान
ओस - इन्द्रधनुष
भोर की शान ||


भोर में पक्षी
दानों के देश जाते
भजन गाते ||


नभ के गाल
जित देखूं है लाल
भोर की लाली ||


जागृति लाने
भोर किरणें दौड़ी
स्वर्ण पा गयी ||

प्रातः की बात
अंधेरों का इतिहास
दिन भविष्य ||

भोर की बातें
पशु – पक्षी समझे
लोग उलझे ||

१०
भोर की माया
स्वर्ण किरणें लायीं
जागृति बेला ||

११
ऊँघते जागा
सूरज लाल – पीला
भोर उठाता ||

१२
भोर का मेला
कर्म – धर्म का रेला
जीवन बना ||

१३
भोर की भाषा
पक्षी गढ़ते गाथा
लांघते सीमा ||

१४
भोर पुकारे
अब उठो भी प्यारे
कर्म ताकते ||

१५
भोर में गाँव
बच्चों जैसा निर्मल
कर्म का दाँव || 

.....    ,,,,    .......


No comments:

Post a Comment