सुरमई भोर-गीत-कविता

https://youtu.be/-Cx-BMkvKBM?si=D8AYEai_la59Uys-

सुरमई भोर


उठो साथियों हमको ये, सुरमई भोर बुलाती है;

चिड़िया है उदास, हमें उसे गीत सुनानी है। 


उठो साथियों हमको ये, सुरमई भोर बुलाती है...

विधवा धरा है रोती, देखो बबूल पुकारे है;

छोड़ कुल्हाड़ी,उठा कुदाल- अब दौड़ लगाना है। 


उठो साथियों हमको ये, सुरमई भोर बुलाती है..

देखो पसीना ना सूखे , हमें छाँव उगाने हैं;

आम को तरस रहे हैं बच्चे, हमें अमराई सजाने हैं।


उठो साथियों हमको ये, सुरमई भोर बुलाती है...

देखो पानी है-बोतल में,प्यासे पक्षी पुकारे हैं;

चलो खोद लें पाताल कि , हमें नदी बहाने हैं।


उठो साथियों हमको ये, सुरमई भोर बुलाती है..

देखो आग लगी वसुधा में,हाथी चिंघाड़े हैं;

उठाओ चुल्लू-चोंच अपनी, हमें शेर बचाने हैं।


उठो साथियों हमको ये, सुरमई भोर बुलाती है..

बरखा रूठी,बंजर खेत पुकारे हैं;

हवा साफ रखें हम, झोला - साथ उठाना है। 


उठो साथियों हमको ये, सुरमई भोर बुलाती है..

कांक्रीट के घर और काली, सड़कें पूछती हैं;

कहाँ गए वो लोग, जिन्हें हम-पानी पूछते थे। 


उठो साथियों हमको ये, सुरमई भोर बुलाती है...

उठो साथियों अब तो छोड़ो , क्या तेरा-क्या मेरा है;

हम सबकी है- ये धरती ,क्यों तू  दूसरे- ग्रह को खोजे है।


उठो साथियों हमको ये, सुरमई भोर बुलाती है...

कचरे को ना कहना सीखें- जीवन अब ये गाती है ;

पॉलीथिन में -लिपटे जाओगे , चेता-वनी ये अब भी जिंदा है। 

उठो साथियों हमको ये, सुरमई भोर बुलाती है..

….. 

रमेश कुमार सोनी

रायपुर



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