सुरमई भोर
उठो साथियों हमको ये, सुरमई भोर बुलाती है;
चिड़िया है उदास, हमें उसे गीत सुनानी है।
उठो साथियों हमको ये, सुरमई भोर बुलाती है...
विधवा धरा है रोती, देखो बबूल पुकारे है;
छोड़ कुल्हाड़ी,उठा कुदाल- अब दौड़ लगाना है।
उठो साथियों हमको ये, सुरमई भोर बुलाती है..
देखो पसीना ना सूखे , हमें छाँव उगाने हैं;
आम को तरस रहे हैं बच्चे, हमें अमराई सजाने हैं।
उठो साथियों हमको ये, सुरमई भोर बुलाती है...
देखो पानी है-बोतल में,प्यासे पक्षी पुकारे हैं;
चलो खोद लें पाताल कि , हमें नदी बहाने हैं।
उठो साथियों हमको ये, सुरमई भोर बुलाती है..
देखो आग लगी वसुधा में,हाथी चिंघाड़े हैं;
उठाओ चुल्लू-चोंच अपनी, हमें शेर बचाने हैं।
उठो साथियों हमको ये, सुरमई भोर बुलाती है..
बरखा रूठी,बंजर खेत पुकारे हैं;
हवा साफ रखें हम, झोला - साथ उठाना है।
उठो साथियों हमको ये, सुरमई भोर बुलाती है..
कांक्रीट के घर और काली, सड़कें पूछती हैं;
कहाँ गए वो लोग, जिन्हें हम-पानी पूछते थे।
उठो साथियों हमको ये, सुरमई भोर बुलाती है...
उठो साथियों अब तो छोड़ो , क्या तेरा-क्या मेरा है;
हम सबकी है- ये धरती ,क्यों तू दूसरे- ग्रह को खोजे है।
उठो साथियों हमको ये, सुरमई भोर बुलाती है...
कचरे को ना कहना सीखें- जीवन अब ये गाती है ;
पॉलीथिन में -लिपटे जाओगे , चेता-वनी ये अब भी जिंदा है।
उठो साथियों हमको ये, सुरमई भोर बुलाती है..
…..
रमेश कुमार सोनी
रायपुर
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