बदहवास भाग रहे हैं लोग
छोड़कर अपनी रोजी,रोटी,और मकान
चुभती लू की तरह बरस रही है-
अग्नि ज्वालाएँ
बम, गोली और मिसाइलें
मानो साक्षात यमराज और महाकाली
साथ-साथ ही कर रहे हों भक्षण
सब कुछ युद्ध की आहुति से।
जाने कब से भूखे बैठे थे-
बंदूक, तोप एवं मिसाइलें
मौत भगा रही है मौत की ओर
जो मृतक हुए वे मुक्त हुए
इस दुनियावी मायाजाल से
जो बचे हैं वे
धीमी मौत की आग़ोश में समा रहे हैं।
शरणार्थी शिविरों में उग रही है
सब प्रकार की भूख
भोग रहे हैं शक्तिशाली भुजाएँ
मिटा रहे हैं अपनी-अपनी थकान
कईयों ने नोच ली है यहाँ-गर्म गोश्त।
बिछड़ों की तलाश जारी है
अनजाने चेहरों पर प्रश्न चस्पा है-
सब पूछ रहे हैं इन्हें देखा क्या?
युद्ध कब थमेगा?
शरणार्थी कैंप कब हटेगा?
युद्ध मानवता के लिए एक कलंक है क्योंकि
यह समाप्त होता है
किसानों की खेत पर,
उनके घर-मकान और
महिलाओं,बच्चों की देह पर ।
युद्ध में जीतने वाले
जाने किस पर राज करेंगे,
समुद्र और वसुधा रक्तरंजित हैं
परिंदे गुम हैं
जंगल की चीख गूँज रही है
आसमानी चौधराहट मौन व्रत पर है,
देखते हुए भी अनजान हैं
बहुत सारे देश
क्योंकि यही बेच रहे हैं-हथियार।
हमें ये याद रखना ही होगा कि-
शांति के लिए किया गया युद्ध
कभी शांत नहीं होता,
हथियारों की ढेर गुरूर पैदा करती है
मृत्यु की लपलपाती जिव्हा
पार्श्व में पगुरा रही है
उसकी लालच की लार
अभी तक टपक रही है…।
…..
रमेश कुमार सोनी
रायपुर, छत्तीसगढ़
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