भूख के आस-पास
भूख लगी है कहने पर
भरी थाली के फोटो भेजे जाते हैं!
क़ाश करमजली भूख
फोटो से मर जाया करती,
सोशल मीडिया की
बेड़ियों में बंधा है आदमी
किसी भटकती हुई आत्मा की तरह
लाइक्स, कमेंट्स और फॉलो की दुनिया में
ख़ामोशी पसर रही है
ट्रोलिंग के समक्ष
आत्मसमर्पण करती दुनिया के शब्द
लिपि की सखी बन चुकी है।
भूख, सूर्य के साथ आती-जाती है
विरासत में मिली भूख-
तंगहाली और व्याकुल आँसुओं की हाला
दोस्त बन चुकी है
यहाँ क़ाबिलियत एक गाली है साहब,
यहाँ कौड़ी कीमत नहीं ईमानदार डिग्रियों की,
अपना अवशेष लिए घूम रहे हैं लोग,
जबकि चुनावी अतिथि लौट चुके हैं
आश्वासनों को गर्भधारण करवा के।
ओ दुनियावी चौसर के राजा
क्या करोगे इतने बम, बारुद, गोली?
महाभारत पढ़ो, किस पर शासन करोगे?
तुम्हारी शहरी सभ्यता में
चापलूसों की खेती और
संडासों की बदबू तुम्हें मुबारक
और कितनी कन्या भ्रूणहत्या करोगे?
कभी हक़ीक़त में भेजिएगा-
रोशनी के महावर सजाए पाँव,
आशाओं का मधुमास और
बना देना कभी फ़ुर्सत में
रोज़गार के कबीलों की ओर युवा पगडंडी
जहाँ भोजन पकाती धूप उन्मुक्त हो....।
.....
रमेश कुमार सोनी
रायपुर, छत्तीसगढ़
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