देशराग
एक ही देश राग गूँजा जब-
वंदे मातरम
बढ़ चले थे अनंत स्वातंत्र्यवीर
लिए तिरंगा हुँकारे बिगुल
उद्घोष समवेत हुआ
भारत माता की- जय।
स्वातंत्र्य एक ही लक्ष्य हुआ
क्रांतिपथ बनी बलिपथ
दुर्गम लगती थी जब लड़ाई
फड़कती भुजाएँ, शीश लिए दौड़ीं
धमनियाँ धड़की युवा लहू से
अनंत कथाएँ अमर हुईं
अशेष बलिदानी गुमनाम हुए।
गुलामी की अनंत कालिमा सिसक पड़ी
फंदे कम हुए शीश बढ़ने लगे
वीर छातियों के लिए
क्रूर गोलियाँ भी रो पड़ीं
स्वाधीनता की राह तब शुभ्र हुई
तोड़ जंजीरें, फहरा तिरंगा
गाँव- मोहल्लों में गूँजने लगे जयकारे
विभाजन का दंश लिए आई आजादी
राखी, सिंदूर भी लीला इसने ।
आओ साथियों हम संभाले इसे
मिटा ऊँच-नीच का भाव
फैलाएँ एकता, सद्भाव का मूल मंत्र
स्वाधीनता हमारी शान की है विरासत
पहचानें अपना कर्तव्य
चाँद,मंगल तक फहरे ऊँचाई
सपने अब नवसंकल्प बने
नवसृजन की राह से
गूँजे पुनः एक ही देशराग
स्वतंत्रता दिवस-अमर रहे ।
.....
रमेश कुमार सोनी
कबीर नगर-रायपुर
No comments:
Post a Comment