विश्व पर्यावरण दिवस-कविता 5

खुशियाँ रोप लें 

आज बाग में फिर कुछ कलियाँ झाँकी
पक्षियों का झुंड 
शाम ढले ही लौट आया है 
अपने घोंसलों में दाने चुगकर 
गाय लौट रही हैं 
गोधूलि बेला में 
रोज की तरह रंभाते हुए
क्या आपने कभी इनका विराम देखा? 

वक्त ना करे कभी ऐसा हो 
जैसा हमने देखा है कि- 
कुछ लोग नहीं लौटे हैं-
अस्पताल से वापस, 
हवा-पानी बिक रहा है 
नदियों के ठेके हुए हैं 
प्याऊ पर बैनर लगे हैं; 
पानी पूछ्ने के रिवाज गुम हुआ है

साँसों की कालाबाज़ारी में-
ऑक्सीजन का मोल महँगा हुआ है।
सब देख रहे हैं कि- 
श्मसान धधक रहे हैं 
आँसू की धार सूख नहीं पा रही है 
घर के घर वीरान हो गए हैं
इन सबके बीच आज भी लोग 
कटते हुए पेड़ों पर चुप हैं 
प्लास्टिक के फूल बेचकर खुश हैं
खुश हैं बहुत से बचे खुचे हुए लोग 
मोबाइल में पक्षियों की रिंगटोन्स से।

आओ आज तो सबक लें 
भविष्य के लिए ना सही 
अपने लिए ही बचा लें-
थोड़ी हवा,पानी, मिट्टी,भोजन और जिंदगी 
आओ रोप लें खुशी का एक पेड़ 
एफ.डी. के जैसे!
पूण्य मिलेगा सोचकर!
मुझे विश्वास है कि-
तुम्हारी ही हथेली में 
एक दिन जरूर 
खुशियों का बीज अँखुआएगा।
…..
रमेश कुमार सोनी
रायपुर, छत्तीसगढ़ 

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