अँजोर
दीप से दीप मिल बैठे हैं
अँधेरों को भगाने की सीख, सीखते
कभी लगते हैं
किसी मजदूर के जैसे
काँधे मिलाए कर्मरत
अँजोर बगराने की जिद लिए
तो कभी ये बन जाते हैं-
सीमा पर सैनिकों से
हर धमाकों से बेख़ौफ़
रोशनी की रक्षा में
जीवन की आहुति देने।
दीप जल रहे हैं
झोपड़ी को रोजगार,
महलों को सुकून,
युवाओं को मंजिल,
महिलाओं को निडर और
देश को सामर्थ्य देने की आस में
ऐसे ही मैं भी
अँधेरों के विरुद्ध
एक सिपाही होना चाहता हूँ।
जाग रहा हूँ मैं
हर दीपक को साथ देने
दोनों हथेलियों से इसे बचाते हुए,
पटाखों की धमाकों से
काँपते लौ को ढाँढस देते हुए,
रंगोलियों की रंगों से
इसमें उत्साह भरते हुए
दीप जागृत हैं-
भाग्यलक्ष्मी की प्रतीक्षा में।
मैं आपके साथ
एक दीप बारना चाहता हूँ
तमाम प्रदूषणों के खिलाफ,
अन्याय,अत्याचारों के खिलाफ,
अनाम शहीदों के नाम,
अपनी प्राकृतिक संसाधनों को बचाने और
अपने उन पूर्वजों के नाम
जिसने हमें ये दुनिया दी
आइए इस दीवाली हम
संकल्प का एक दीप रोशन करें।
मैंने एक दीप जला रखा है
अपने मन के मुंडेर पर
हर किसी के अँजोर के लिए,
हर भोर की तरह
आओ दो कदम हम भी साथ चल लें
दीप की रोशनी के साथ
आओ हम भी उजास की खुशी में
सूर्य बनकर उगें और
अपने रिश्तों को अँजोर करें
आओ हम भी दिवाली मनाएँ।
…..
रमेश कुमार सोनी
रायपुर, छत्तीसगढ़
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