पेड़ और आदमी ....
सुकून की पनाह देते हैं
भूख
और विपरीत हालातों के बाद भी ;
यही
बातें आसमान को अखरती है
इसलिए
वह गाज गिराकर
ले
लेता है उन सबकी जान और
बना
रहना चाहता है
इस
अखिल विश्व का शहंशाह |
पेड़
अंत तक साथ निभाते हैं
मुर्दे
को अपनी गोद में लिटाकर
उसकी
ठंडी हुई देह को
गर्म
करते हुए पुनः जिन्दा करने की
नाकाम
कोशिश तक ;
पेड़
सबके लिए खड़े हैं
चाहे
घोंसला बना लें
चाहे
पत्थर मारकर पेट भर लें ..... |
पेड़
कभी नहीं चाहती कि
वह
बेजान होकर फर्नीचर हो जाए
कोई
उस पर कील ठोंके
कोई
उसके दिल को आरी से चीर दे
पेड़
भी डरते हैं इन सबसे ;
पेड़ों
को कागज़ होने में मज़ा आता है क्योंकि
इस
पर वह जिन्दा रखती है –
लोगों
के अपराधों का कच्चा चिट्ठा ,
अपने
अधिकारों का लिखित दस्तावेज ,
प्रशंसा
के कठिनतम शब्द और .....
वन
उजाड़ने वालों का काला इतिहास |
पेड़
नहीं चाहते कि कोई आदमी
उसके
जैसा बनकर खड़ा हो जाए चौराहों में
और
नाटक का हिस्सा बनाकर चीखे कि –
यह बिलकुल ऐसा ही है
जैसा
मोमबत्ती लिए हुए लोग
आए
दिनों मौन विरोध का जुलूस निकालते हैं
पेड़
अपनी मस्ती में झूमना चाहते हैं
कहीं
कोई तो है जो नहीं चाहता कि –
पेड़
उसके सामने किसी का मसीहा बने |
.....
..... .....
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