कलम
लिख रहे हैं ....
१
कलम
लिख रहे हैं शांति बड़ी चीज है
किसी
भी कीमत पर मिले सस्ती होती है
लाशों
की ढेर पर भी !!
क्योंकि
लाशें शोर नहीं मचाती
जैसे जिन्दा
लोग मौत के नाम पर
शोर
मचाते हुए खामोश हो जाते हैं ;
कलम का
अपना कोई झंडा नहीं होता
वह
सिर्फ लिख रहा है , जो उसने भोगा
कोई
इसे रंगीन चश्मे से क्यों देख रहा है ?
सदियों
से लिखते कलम से
समाज
आज डर क्यों रहा है ?
२
कलम
आसमां से गुहार लग रहे हैं –
भूखों
को रोटी देना ताकि
वे अपनी
सात पुश्तों का कर्ज उतार सकें |
कलम
लिख रहे हैं –
हे
युवाओं अपने काँधे मजबूत करो
तुम्हारी
भुजदण्डों को लोहा पिघलाना है
धरती
का सीना चीरकर भात उगाना है ;
कलम
सदा से जिन्दा रहे हैं
अपने
पूरे होशो – हवाश में लिखते हुए
लोग
कहते हैं – जो भी लिखा है वह सही है
सच के
सिवाय वह कुछ भी नहीं लिखता ;
कलम
लिख रहे हैं – जंगल
घनघोर
, बियाबान ख़ामोशी पसर गयी
लेकिन
ये क्या –
पशु –
पक्षियों के किल्लोल गुम थे
अब
जंगल असहाय खड़े हैं –
शेर
राजा के बिना
कोई भी
, कभी भी मुँह उठाए
उसके
घर में घुस जाता है बेधड़क |
कलम ने
लिखा – बाज़ार
किश्त
, कर्ज़ और जलन की दुनिया में
मॉल और
ऑनलाइन का सौदागर चहक उठा
घरों
में घुसकर इसे आता है –
खामोशी
से जेबों में खुले आम डाका डालना
लोग
खुश हैं की सामान घर पहुँच मिल गया |
अंधियारी
रातों में
भ्रम
से लड़ते कलम ने लिखा – किसान
छाती
पिटता , फाँसी झूलता दर्द रुला गया
फसलों
का लुट जाना , कर्ज़ का बोझ और
दवा का
जहर चला गया –
स्याह
गुफाओं में रोशनी की तलाश में ;
कलम
लिख रहे हैं बड़ी मुश्किल से – बेरोजगारी
युवाओं
की घुन लगी जवानी और डिग्री का हुनर
माता –
पिता को रुला गया ||
३
रणांगण
में खड़ा कलम यहाँ खोज रहा है –
सूर्य
किसके घर छिपा बैठा है ?
लिखते
हुए रोने लगे हैं कलम
स्याही
धुंधला गए हैं
तसल्ली
, आँसू , ढाँढस ख़त्म हो गए हैं
सिसकते
हुए , हिचकी वाले शब्द बुदबुदा रहे हैं –
वहशी ,
दरिन्दे , गैंगरेप ........
मर्दों
को पैदा कर खुला छोड़ने वाली भीड़
रोशनी
की तलाश में कैंडल थामे रैली में
सिर
झुकाए खामोशी से चल रहे हैं
कलम
इससे आगे नहीं लिख पा रहे हैं
भोथरा
रहे हैं , नीब टूट जाती है
क्योंकि
यही लोग रोज आते हैं
अपनी
झक सफ़ेद पोशाक की चमकार दिखाने
फिर
लौट जाते हैं -
कल
किसी और कैंडल मार्च की तैयारी करने ..... ||
.............. ..........................

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