अच्छा आदमी - तीन कविता
1
अच्छा
आदमी समझ के छोड़ रहा हूँ तुम्हें
दुबारा
इधर मत दिखायी देना
काला फीता
बाँधे , तख्तियाँ
लटकाए ,
गुस्ताखी
माफ नहीं होती साहब ,
लटका दूँगा
पता नहीं चलेगा , सड़ जाओगे
कौआ , चील नोच खाएँगे
वो अच्छा
आदमी सहम कर
दो कदम
पीछे हट गया क्योंकि
घर पर कोई
उसका इंतज़ार कर रहा था
सबने
चेताया था उसे कि -
मत पड़ो
किसी के पचड़े में
किसी की
फटी में उंगली मत डालो
किसी से
उलझना मत .....
अच्छा
आदमी उदास मन से घर लौट
रहा है ।।
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2
अच्छे
आदमी को मना होता है
रोना , हँसना , उदास होना ..... ,
अच्छे
आदमी तलाश लेते हैं
हर बुरे
वक्त में भी अच्छाई की सुगंध
वह किसी
का , कभी भी
बुरा नहीं चाहता
वह
जन्मजात अच्छा होता है
अच्छाई
ओढ़ने वालों को वह
रंगे सियार के जैसे पहचान लेता है
यही अच्छा
आदमी घिघियाते खड़ा है
ऑफिस में
बाबू , साहब के
सामने
अपने
अच्छे काम को कर देने की अपील लिए
उसे
रिश्वत देना भी नहीं आता
अच्छा
आदमी क्या सिर्फ किताबों में मिलते हैं ?
अच्छा
आदमी बनने से पहले आप क्या थे ?
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3
अच्छा आदमी है वो
उसे
परेशान मत किया करो
यही वो
लोग हैं जिन्होंने
दुनिया
थाम रखी है शेषनाग की तरह
इनकी वजह से ही बचे हैं लोग
बस , ट्रेन दुर्घटना से ,
आतंकी
घटनाओं से ,
प्रकृति
की प्रकोप से
इन्ही से
बची है
ईमानदारी , सच्चाई , कर्तव्यनिष्ठा .....
वो हरिश्चंद्र के खानदान से है
छोड़ दो
इसे , जाने दो , जिंदा रहने दो
कभी
बच्चों को दिखाने के काम आएगा ।।
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