हाइकु के झिलमिलाते ख्वाबों का महकता बागीचा
हिंदी हाइकु ब्लॉग में संपादक के तौर पर
अपनी अनथक परिश्रम से दुनिया भर के हाइकुकारों को एक मंच पर जोड़ते हुए हिंदी
साहित्य का गौरव बढ़ाने वाली हरदीप कौर सन्धु जी का पहला हाइकु संग्रह - ख्वाबों
की खुशबू पढ़ते हुए हर्ष हो रहा कि आपने कितनी शिद्दत से पंजाब की संस्कृति,
एवं परंपरा की महक को बड़े ही खूबसूरती से शब्दांकित किया है – बधाई | हिंदी हाइकु
महज सत्रह वर्णीय एवं तीन पंक्तियों का ढाँचा मात्र नहीं है इसकी अनिवार्य शर्त है
इसका कविता होना | पाठक इस भ्रम में भी ना रहें कि यह संसार की सबसे छोटी कविता है
और समय बचाने की दृष्टि से लिखा जाता है बल्कि यह विधा अत्यंत गहन चिंतन , विचार
और संवेदनाओं की माँग करती है |
आपने इस संग्रह में - 598 हाइकु , प्रारंभिक
लेखन के ढाई वर्ष के दौरान लिखे हैं जो कुल नौ भाग में प्रस्तुत हुए हैं – गाँव वो
मेरा , बिखरी यादें , रिश्ते जीवन के , जिन्दगी के सफ़र में ,एक अनोखा सच , प्रकृति
, पावन एहसास , संसार सरिता एवं त्रिंजण | इस संग्रह के जरिए आपने हाइकु के कई
विषयों को छूते हुए उसके सभी रंग दिखाए हैं जो इन उपशीर्षकों में प्रस्तुत हुए हैं
| विदेश में रहते हुए हिंदी हाइकु की साधना और विस्तार हेतु विश्व के सभी
रचनाकारों को एक मंच तले एकत्रित करके उनका सही मार्गदर्शन करना अब यहाँ एक हकीकत
है ; हिंदी साहित्य इसकी सदैव ऋणी रहेगी | इस संग्रह में आपने ये बताने की कोशिश
की है कि एक ही उपशीर्षक के अंतर्गत कितने दृश्य सजीव हो सकते हैं और एक संग्रह
कितना गुरुत्व समेट कर आप प्रस्तुत कर सकते हैं और ये सब हो सकता है तब , जब आपका
अनुभव संसार विस्तृत हो ; यह भी अपने तरह की एक देशभक्ति है |
‘ ख्वाबों की खुशबू
’ में आपने अपने गाँव को जो आपके
स्मृति पटल पर अंकित है उसकी छवि उकेरी है | इसमें वहाँ की हर छोटी घटना पर आपकी
पारखी नज़र ने लिखा हैं - डंडा डुक का खेल , चितकबरी धूप – छाँव को - डिब्बीदार
छाँव , गाँव की दीवारों पर बनी चित्रकला - ओटे छपी मूरतें , गुहारा बनाना , नून
निहाणी खेल और लुप्त होते कलई करने वाला – [विलुप्त] ठठेरा इन सबके साथ आपने जो
हाइकु को संवारा है इसकी बानगी देखते ही बनती है -
गाँव से आया / ख़त में गुँथकर / रँगीला प्यार |
ठण्डी हवाएँ / नाच किकली डालें / अल्हड़ जवाँ |
नीम के झूले / ठण्डी छैंया फुदके / पाखी का
डेरा |
कैमरा क्लिक / मुँह छुपाए अम्मा / ताई कहे न |
नानी के बाल / तेल सरसों लगा / सोने के तार |
रात अँधेरी / दे रही है पहरा / बापू की खाँसी |
बिखरी यादें के अंतर्गत आपके हाइकु यादों के
तकिया लगाकर सो जाते हैं , अपने साथी की यादों की स्मृति को संजो लेते हैं
तो कभी ये यादें पंख लगाकर उड़ जाते हैं | यादें किसी को भी कहीं से कहीं ले जाकर
छोड़ देती हैं इनका सम्बन्ध भूतकाल में आपसे होकर गुजरी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष
घटनाओं होता है | किसी भी रचनाकार का मन कोमल होता है जो अपने आस – पास की घटनाओं
की तत्काल गवाह बन जाया करती है और यही भविष्य में उनकी रचनाओं में प्रकट होते हैं
| हरदीप जी की यादों के इन हाइकु के साथ चलिए पाठकों को जोड़ते हैं -
तितली बन / फूलों – लदे मन में / यादें नाचती |
याद किशोरी / मन खिड़की खोले / करे किलोल |
तिरती रही / बैठ यादों की नाव / तुम्हारे संग |
रिश्ते जीवन के खंड
के अंतर्गत आपने , अपने जीवन से जुड़ी रिश्तों की खट्टी – मीठी यादों को हाइकु
में ढाला है | रिश्ते जीवन के सबसे सुन्दर उपहार हैं जो भारत की अपनी विशिष्ट
विशेषता है इसके बिना पारिवारिक और सामाजिक ताना – बाना को छिन्न – भिन्न होते हुए
विदेशी संस्कृति में देखा जा सकता है | रिश्तों को बचाना और निभाना आवश्यक होता है
, जीवन के सांसों की तरह , चाहे वो दोस्ती के हों या खून से जुड़े हुए या पड़ोसी के
साथ आपके रिश्ते हों | रिश्तों में हमें मिलता है - माँ का प्यार , संतानों की
किलकारी , दोस्ती का साथ , दादी – नानी की कहानी , पिता की ख़ुशी , बेटी की विदाई
का दर्द , बहु का स्वागत .... | रिश्तों को स्वार्थ के तराजू में तौलने पर हमें
दुःख ही मिलता है और रिश्तों में गाँठ भी लग जाती है | रिश्तों में ख़ुशी को बाँटने
से बढ़ती है और दुःख को बाँटने से कम होता है चाहे वो विवाह की बेला हो या अन्य कोई
समारोह ... | आइए हरदीप जी के रिश्तों से जुड़े हाइकु के साथ अपना रिश्ता तलाशें -
नन्ही सी परी / वो घुँघरू सी मीठी / रुनझुन सी
|
जन्मी बिटिया / अलगनी पे टँगे / रंगीन फ्रॉक |
बिदाई हुई / गुड़िया व पटोले / नीर बहाएँ |
मुन्नी जो रोए / आटे की चिड़िया से / माँ पुचकारे
|
फूल – पंखुरी / तितली से पंख -सी / नाजुक
दोस्ती |
सर्द माथे पे / है गर्म हथेली की / छुअन दोस्ती
|
माँ और बेटी / दुःख – सुख टटोलें / टेलीफोन से
|
जिंदगी के सफ़र में खंड के अंतर्गत हमारे जीवन के चार दिन
की यात्रा के दौरान मिलने वाले सुख – दुःख , जीवन का जमा – खर्च मन को मथ देने
वाली घटनाएँ इनसे उपजे विचारों का तूफ़ान और नादान दिल की बातें यदि हाइकु में कोई
हाइकुकार पिरोता तो इससे अच्छे हाइकु शायद ही हमें मिल पाते | जिंदगी चलती का नाम
गाड़ी जैसी है जिसमें विश्राम है , उम्मीद है , मंजिल है लेकिन उदासी के लिए कोई
इसमें कोई जगह नहीं है -
थक गया मैं / यूँ करके ख़ुद को / जमा – घटाव |
नभ में पाखी / यूँ ही बिन पंखों के / उड़ते
ख्याल |
तन धोने से / कुछ नहीं बदले / मन जो मैला |
धूप में थका / चाँदनी की ताज़गी / लगती प्यारी |
एक अनोखा सच खंड के अंतर्गत जीवन की सच्चाई है
जिसमें एक रिक्शावाले का दर्द , भूखे बच्चों का दर्द , कचरा बीनने वालों की दुनिया
, मशीनी युग का दंश और इन सबमें छुपी हुई मुस्कान का गुम होना और ....रईस की कोठरी
में फैली उदासी | भौतिक सुख सुविधाओं वाली यांत्रिक जिंदगी में जीवन का दायित्व
कहीं दब सा गया है जिसकी सुन्दर सर्जना आपने की है | इन अनुभूतियों को हाइकु में
ढालने का आपका हिकमत यहाँ बोलता है -
अर्थी उठाएँ / दुःख व मातम के / लगा मुखौटे |
ऊँचे मकान / रेशमी हैं परदे / उदास लोग |
हाइकु के सबसे
प्यारे विषय प्रकृति खंड के अंतर्गत इस संग्रह में हम अनुभूत करेंगे
– नीम की छाँव , बसंत की शोखी , जेठ की गर्मी का चिलचिलाता पसीना , नीम की ठंडी
छाँव नीचे चरखा चलाना , लस्सी का स्वाद , तारों भरी रात में कहानी सुनना ,अचारी आम
के खट्टेपन का स्वाद चखना , वर्षा में भीगना , शीत में ठिठुरना , ओस भरी भोर में
टहलना , कटे हुए वृक्ष के ठूंठ के दर्द को महसूसना , प्रदूषण की समस्या और हिंसक
कृषि से उत्पन्न ज़हरीले खाद्य पदार्थ ; ये सब यहाँ दृष्टिगोचर हैं हाइकु की लिबास में -
वाण की खाट / खड़ी कर धूप में / माँ करे छाँव |
गर्मी की रात / करके छिड़काव / बिछाई खाट |
गर्मी थी आई / पंखी घुँघरू वाली / माँ ने बनाई
|
छत पे सोएँ / बारिश अचानक / भागना पड़े |
पेड़ शरीक / गिराकर पत्तियाँ / मेरे दुःख में |
जेठ महीना / अंगार हैं झरते / तपता सूर्य |
शीत के दिनों / सर्प सी फुफकारें / चलें हवाएँ
|
हर सुबह / ओस से मुँह धोए / फूल गुलाब |
काजल लगा / अँधेरा मुस्कराया / चाँद जो आया |
सुबह होते / पत्तों – हाथ मेहँदी / ओस रचाती |
झुकी टहनी / गुलाबी – फूलों लदी / बोले – ‘
आदाब ’ |
शर्मीली धूप / कोहरे में से छने / सिंदूरी रंग
|
ओजोन छाता / धरा लिए है खड़ी / बची चमड़ी |
इस रचना संसार में ऐसा कोई भी हाइकुकार
नहीं होगा जो इन सबसे होकर प्रभावित नहीं हुआ हो लेकिन इसे जिसने भी अपने शब्दों
में ढाला वही वास्तविक रचनाकार हो जाता है |
पावन एहसास खंड के अंतर्गत अपने परिवेश में
जिंदगी के एहसास जो दिल से होकर गुजर गए उनमें - किस्मत की बातें , कविता ना
हो तो पहाड़ – पत्थर के ढेर लगते , ख़ामोशी की भाषा , दर्द की कराह , आँसू का छिपकर विछोह
एवं इंतज़ार में बहना जैसे अनेक
एहसास समेटे हुए हैं | आपके हाइकु सर्जना का संसार काफी बड़ा है जिसमें शिल्प और
विचार की परिपक्वता झलकती है -
भरी है नमी / जो इन हवाओं में / रोया है कोई |
तुझ में दिखे / मुझे मेरी तस्वीर / तू मेरे
जैसा |
घुलता गया / गम की बारिश में / मेरे चेहरा |
आँसू छुपाए / हँसी की चूनर का / घूँघट ओढ़ |
करे श्रृंगार / अलमस्त किशोरी / खिली बहार |
विश्वास पाखी / ढूँढे हरी शाखाएँ / फैला भुजाएँ
|
खुली किताब / गिरा सूखा गुलाब / चमकी यादें |
मौन हैं सब / खाली फ्रेम बोलता / दिल डोलता |
दिल टटोलें / एक दूजे के दर्द / पी कर रोएँ |
संसार सरिता
के अंतर्गत प्रस्तुत हुए हाइकु में - वो कुछ लम्हों की दास्ताँ , जीवन का कोरा
कागज़ रह जाना ,एक कड़वा सच , कशमकश भरे वक्त , अरमानों का पश्चाताप बन बेचैन रूह सा
भटकन है | कुछ ऐसे भी बोल हैं इस खंड के हाइकु के अनजान सफ़र में भागता समय , प्यार
की बोली को तरसते इस दुनिया के मनुष्य यात्री को विश्राम कहाँ ? इस खंड के हाइकु
में आपके अनुभवों का प्रतिबिम्ब दिखता है -
कहाँ ठिकाना / कहाँ से तुम आए / कहाँ है जाना ?
नज़रें मिलीं / चाहत के हाशिए / छलक उठे |
ग़मों की भट्टी / चिंता की आग जली / पीर उबली |
छैन घटाएँ / ज्यों सिर से फिसली / तेरी चूनर |
दिखे ना राख / रूह जब जलाए / मन की आग |
त्रिंजण के हाइकु एक नयापन लिए हुए प्रस्तुत
हुए हैं जिसमें पंजाब की मिट्टी की सोंधी महक है ; इनमें - सदियों के बंजारा मन में
खुदा का निवास , मोह – माया की दुनिया , सखी – सहेलियों के साथ बीती बातों में
सपनों की उड़ानें हैं और .... इन सबमें आपके शब्द खनकते हैं | आशा का पौधा लगाकर
चार दिन की इस जिंदगी के सफ़र की अपने ईश्वर की आराधना में लीन रहने का संदेश लिए
ये हाइकु आपकी दार्शनिकता के उजले पक्ष
हैं -
मन त्रिंजण / सपनों की झालर / बैठा लगाए |
त्रिंजण मन / जीवन का झमेला / झेले अकेला |
जग त्रिंजण / नहीं जागीर तेरी / घड़ी का डेरा |
कात रे मन / संसार – त्रिंजण में / मोह का धागा
|
हिंदी हाइकु की पूरे विश्व में
ध्वजवाहक की तरह नेतृत्व करते हुए हिंदी हाइकु की सजग प्रहरी , ममतामयी
शब्दों की जादूगरनी , विशुद्ध नयापन लिए दृश्यों के हाइकु को ख्वाबों की खुशबू
– हाइकु संग्रह में डॉ. हरदीप कौर सन्धु ने पिरोया है | आपकी कल्पना और
विचारों का तालमेल से शब्दों का सामर्थ्य बढ़ गया है और वे भोर की अंगड़ाई लेते हुए से
ताजगी का एहसास दिलाते हैं | सामाजिक चिंताओं के साथ – साथ पंजाब के लोक जीवन के
दृश्यों का सहज चित्रण आपके हाइकु को सजीव बनाते हैं | प्रकृति की अनुपम उर्जा के
संग जीवन की समस्त अच्छाइयों को तमाम विषमताओं के बीच आपने इस संग्रह में शालीन
अभिव्यक्ति के साथ एक बड़ी मिसाल कायम की है | आपसे हिंदी हाइकु को एक नयी उम्मीद
है , यह संग्रह इसकी गवाह है ; इस राह की मंजिल लम्बी है , दायित्वों का बोझ बड़ा
है लेकिन उम्मीद है कि सभी हाइकुकारों की दुआएँ आपको इस राह पर संबल प्रदान करेंगी
| इस पठनीय एवं संग्रहणीय संग्रह की आपको शुभकामनाएँ -
जग त्रिंजण / लगा आशा का पौधा / मिलेगा फल |
[रमेश कुमार सोनी – बसना, छत्तीसगढ़]
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ख्वाबों की खुशबु– हाइकु संग्रह– डॉ.हरदीप कौर सन्धु[सिडनी]
प्रकाशक
– अयन प्रकाशन , महरौली – नई दिल्ली , सन – 2013
मूल्य
-220=00 रु., पृष्ठ- 112 , ISBN NO.– 978-81-7408-664-8
भूमिका
– डॉ.
सुधा गुप्ता जी एवं रामेश्वर काम्बोज ‘ हिमांशु ’ जी
उपसंहार
- डॉ. सतीश राज पुष्करणा , प्रो.दविन्दर कौर सिद्धू , डॉ.ज्योत्सना शर्मा , वजिन्दरजीत सिंह बराड़ , सुभाष नीरव , निर्मला कपिला एवं प्रिंयका जी |
समीक्षक– रमेश कुमार सोनी ,एच.पी.गैस के सामने,जे.पी.रोड– बसना, जिला –
महासमुंद[छत्तीसगढ़]पिन– 493554, संपर्क– 7049355476
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