श्रृंगारिक कविताओं का सुंदर सृजन
कोई कवि जिस दौर से गुजरता है उस दौर के वक्त की छाप उसकी कविताओं में स्पष्ट परिलक्षित होता है । कविता उसके मनोदशा की अनुभूत क्षणों की काब्यात्मक प्रस्तुति होती है , इसे महज दस्तावेज लेखन से इतर माना जाना चाहिए । पूर्ण मनोयोग से प्यार में डूबी हुई कलम से रची गयी कविताएँ सीधे दिल तक जाती हैं , सोचने हेतु मष्तिष्क को जोर देना नहीं पड़ रहा है । श्रृंगार के चित्र सर्वत्र दृश्यांकित हैं जिसकी आवृत्ति प्रकृति और रिश्तों के साथ तालमेल बनाए हुए है ।
नरेश गुर्जर की प्रथम कृति सारे सृजन तुमसे है पढ़ते हुए श्रृंगार रस की अनुभूति के दौर से गुजर रहा हूँ , निश्चित तौर पर युवा साथी नरेश जी से इस तरह की कविताओं की ही उम्मीद की जा सकती है कि इन कविताओं को पाठक दिल से पढ़ें । आपकी रचनाओं में गजब का अंत है जो चौकाता है यही कला आपकी परिपक्वता के वक्त ये आपको सबसे अलग रखेगी ।
कुछ पंक्तियाँ जो उपरोक्त कथन को प्रकट करती हैं -
वो नहीं रखती है / कप और प्लेट को / एक दूसरे से / अलग - अलग / चाय पी लेने के बाद भी / वो जानती है / साथ जरूरत भर का नहीं होता / जीवन भर का होता है । (29)
.....प्यार जताने के कितने मार्ग हैं / और तुम उदास हो । (31)
मैंने कुछ यूँ लिखा ...../ लिखना मुश्किल था मेरे लिए / फिर भी मैंने लिखा / क्योंकि लिखने ने बचाए रखा / मेरे भीतर प्रेम / और प्रेम ने बचाए रखा मुझे । (37 )
..... लेकिन मैं ढूँढता हूँ ऐसे कपड़े / जो तन को ढँके / मन को नहीं ......... । (39 )
...... मैंने तो कुछ खत लिखे / उन बिछुड़े हुए लोगों के नाम / जो आज भी याद आते हैं । (49)
......मेरे लिए लिखिए ना , मुझे लिखिए ना । (55)
......भर लो हथेलियों में / बहती हुई नदी का पानी / फिर से दोहराओ / कोई मासूम नादानी .......। (77)
प्रकृति को भी श्रृंगार रस से सराबोर किया हुआ है -
बारिशें .......वो अम्बर द्वारा धरती को लिखे गए वो प्रेम पत्र हैं ..........देह से उग आते हैं सैकड़ों हरे चुम्बन ......। (92)
आपकी कविताएँ इतनी मासूम और मुलायम हैं कि कह उठती हैं -
.....प्रार्थनाएँ शोर रहित होती हैं / और प्रेम निवेदन / शब्द रहित । (101)
....धूप जब कभी भी / मैं निकला हूँ नंगे सर / कड़ी धूप में / तो एक छाँव का टुकड़ा / चलता है मेरे साथ -साथ ..... । ( 109)
इस संग्रह की दो कविताएँ इस रंग से इतर हैं यूँ कह लें कि इनका अपना एक श्याम रंग है जिस पर दूसरा कोई रंग नहीं चढ़ पाया ।
भीड़ - भीड़ से बचने , भीड़ में शामिल होने का हुनर सिखाती हैं । (14)
जड़ें नहीं जानती / नयी कोपलें / किस ओर बढ़ेंगी /...... /स्वतंत्र होना / सृजित होने की / पहली शर्त है । (86)
इस तरह कुल 136 कविताओं को पढ़ते हुए प्रेम की अनुभूति होती है और यही पंक्तियाँ याद आती हैं -
"....ढाई आखर प्रेम के पढ़े सो पंडित होय "।
इस युवा रचनाकार नरेश गुर्जर को मेरी शुभकामनाएं , और आपसे भविष्य में परिपक्व संदेश युक्त कविताओं की अपेक्षा है । प्रेम पर अब तक बहुत कुछ लिखा जाने के बाद भी कुछ लिखा जाना शेष बचा रहेगा क्योंकि प्रेम की हर दिल में अपनी एक अलग भाषा और संवाद होता है ।
शुभकामनाएं ।
रमेश कुमार सोनी
जे पी रोड बसना , जिला महासमुंद ( छत्तीसगढ़)
7049355476
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सारे सृजन तुमसे हैं - कविता संग्रह ISBN_ 978-93-89177-78-7
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सारे सृजन तुमसे हैं - कविता संग्रह ISBN_ 978-93-89177-78-7
कवि - नरेश गुर्जर , दुजार ( राजस्थान )
बोधि प्रकाशन - जयपुर , 2019
पृष्ठ - 136 मूल्य - 150/- समीक्षक - रमेश कुमार सोनी

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