जिंदगी के विविध रंगों को समेटे तांका , हिंदी साहित्य की ध्वजा फहरा रही है


 समीक्षात्मक आलेख -                                    

                 ताँका ,वर्तमान में हिंदी साहित्य की एक जानी – पहचानी विधा का नाम बन चुकी है | अब तक इसके २० से ज्यादा किताबें विविध क्षेत्रों से निकल चुकी हैं ; ये हिंदी साहित्य की अपनी शक्ति है कि वो किसी भी विधा या किसी भी देश की विधा को अपने में समाहित करने में कोई संकोच नहीं करती , यही सदैव से हमारी ताकत रही है |
                 ताँका ०५ पंक्तियों में ५,७,५,७,७, = ३१ वर्ण  का एक लघुगीत है जिसे हाइकु के विस्तार के रूप में देखा जाता है ; वैसे तो इसे दो लोग भी मिल कर पूरा कर सकते हैं लेकिन वर्तमान में इसकी सुन्दरता अकेले के लेखन पर ज्यादा निखर कर आ रही है | तांका , तभी ताँका है जब उसमे कविता के गुण विद्यमान हों ; लयात्मकता एवं गेयता गीत का आवश्यक गुण है परन्तु डॉ. भगवत शरण अग्रवाल के अनुसार यह एक अतुकांत कविता है , मेरे अनुसार जब यह तुकांत है तब लघुगीत लगती है और जब अतुकांत हो तब आधुनिक कविता लगती है | वर्तमान में यह हिंदी साहित्य की जापनी विधा में हाइकु के बाद सबसे लोकप्रिय विधा है जो सतत साधना एवं अभ्यास माँगती है|
                ताँका , मुख्यतः जापानी काव्य विधा है जिसे लघुगीत के रूप में मान्यता मिली है ; पहले यह ‘ वाका ‘ के नाम से जानी , पहचानी गयी जिसका अर्थ होता है – जापान की कविता | जापानी काव्य मान्योशू [३ – ८ वीं सदी का रचना संकलन] में इसे , सेदोका एवं चोका के साथ स्थान मिला है ; इसमें ०४ हज़ार से ज्यादा ताँका हैं ; इसे तात्कालीन राज्याश्रय में प्रतिष्ठा प्राप्त हुई | भारत में यह मार्च १९६३ में प्रभाकर माचवे की मासिक पत्रिका – सूत्रधार में एक वक्तब्य के साथ ०५ ताँका प्रस्तुत हुए थे | इसके बाद डॉ. सत्यभूषण वर्मा , डॉ.उर्मिला अग्रवाल , डॉ. सुधा गुप्ता , डॉ. अंजली देवधर , डॉ. रामनिवास मानव ,डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव , रामेश्वर काम्बोज ‘ हिमांशु ‘ , डॉ. भावना कुँवर , हरदीप कौर संधू ,देवेन्द्र नारायण दास ,प्रदीप कुमार दास ‘दीपक ‘ एवं ...... ने अपनी रचनात्मक शक्ति के बल पर ताँका को हिंदी साहित्य में विशेष पहचान दिलाने में महती भूमिका का निर्वहन किया | हिंदी साहित्य में इसका सक्रिय उल्लेख एक दशक पुराना है जब इसके पृथक से ग्रन्थ प्रकाशित होना शुरु हुआ ||
                 ‘ भाव कलश ’ २९ ताँकाकारों का संकलन है जिसमें – ५८७ तांका संग्रहीत हैं यह रामेश्वर काम्बोज हिमांशु एवं डॉ. भावना कुँवर के सम्पादकीय में प्रकाशित हुआ यहीं ‘ ताँका की महक ’  में प्रदीप कुमार दाश दीपक ने २७१ ताँकाकारों का बृहद संकलन प्रकाशित किया जिसमें १४२१ ताँका प्रस्तुत हुए इसमें मुझे भी स्थान मिला है | जापानी विधा की कविताओं के लिए - बसना , छत्तीसगढ़ का नाम विशेष रूप से उल्लेख करना चाहूँगा क्योंकि यहाँ से – हाइकु के   ०४ ताँका के ०१ सेदोका के ०१ संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जबकि कुछ और अभी पंक्ति में हैं ; बसना जैसे छोटे से कस्बे में २० से ज्यादा इन विधाओं के रचनाकार होना यहाँ की अपनी विशेषता है ,हिंदी साहित्य का एक विपुल भण्डार इस जगह पर उपलब्ध है | एक लिहाज से बसना में एक साहित्यिक पर्यटन का क्षेत्र विकसित किया जा सकता है| 
                 पहले तांका के विषय धार्मिक दरबारी हुआ करते थे लेकिन हिंदी में अब  इसे प्रायः सभी विषयों में लिखा जाने लगा है | प्रकृति पर साहित्य में विपुल भण्डार है किन्तु तांका का अपना अलग अंदाजे बयां है | आइए इसके रंगों में सर्वप्रथम प्रकृति के विहंगम दृश्य का अवलोकन कर इस नए दौर में आनंदित हो लें –

आम की डाली
खुशबू बिखेरती
पास बुलाती 
‘चिखौनी’ करती है
पिकी,चोंच मार के ||
[डॉ.सुधा गुप्ता]

पहन कर
पैरों में पायलिया 
नाच रही है
पिंजरे में चिड़िया
जैसे घर की रानी ||
[ डॉ.उर्मिला अग्रवाल ]  


झरे हैं पात
हुआ अब जर्जर
तरु का गात
सहना है कठिन
मौसम का आघात ||
[डॉ.रामनिवास मानव ]


बागों में फैले
धूप – छाँह के केश
तुम्हारे माथे
लटें उलझी हुईं
ओस सजे गहने ||
[रमेश कुमार सोनी]


पहन कर
अँधेरे की पाजेब
बाल बिखेरे
काली रात आती है
जादूगरनी बन ||
[देवेन्द्र नारायण दास ]


साँझ हो चली
उड़े जा रहे हैं पंछी
पंक्ति बनाए
कहाँ गए थे कब ?
कहाँ जा रहे हो अब ?
[ डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव ]

                     हिंदी कविता और गीत में यदि श्रृंगार , प्रेम , प्रीत का बखान ना हो तो वह अधूरी सी लगती है | प्रेम को साहित्य में सदैव किसी ना किसी रूप में उपस्थित रहना चाहिए तभी वह अपना सामाजिक दायित्व भली प्रकार से निर्वहन कर सकता है | ठीक इसी तरह इन ताँका में लज्जा , मनुहार – इंकार , तड़प का अद्भुत वर्णन है –

एक था दिल
एक थी धड़कन
एक था दर्द
तीनों में बन गया
उम्र भर का रिश्ता ||
[ डॉ.उर्मिला अग्रवाल ] 


सहेलियों ने
मेहंदी से लिखा था
प्रिय का नाम
मेरी हथेली पर
मैंने लिखा मन पे ||
[ डॉ.उर्मिला अग्रवाल ] 

प्रेम की यात्रा
फूलों से शुरु हुई
शोलों पे ख़त्म
भटक रही राख
सिसक रही यादें ||
[डॉ.सुधा गुप्ता]

फड़फड़ाती
अनसुनी ही रही
एक चिड़िया
अंतरात्मा में बसी
आज भी बोलती है ||
[ डॉ. सुरेन्द्र वर्मा ]

लौटा दो मुझे
रोमानी वाली रातें
उनींदी आँखें
मोहपाश पाजेब
होठों के दस्तावेज ||
[ राकेश गुप्ता ]

पुराने ख़त
सुलगने लगे हैं
पूछना चाहा
संभाले कैसे बोझ
डाकिया कोई नहीं ||
[कृष्णा शर्मा दामिनी ]
                     भारतीय साहित्य में आध्यात्म को उसकी आत्मा के रूप में देखा – माना जाता है ठीक इसी तरह ताँका की आत्मा भी पवित्र मन से यहाँ पवित्रता बिखेरती प्रकट हो रही है –

नींद भी तेरी
सपने भी तेरे ही
मेरी दो आँखें
दरस को तरसें
खुली – मुंदी ये पाँखें ||
[डॉ.सुधा गुप्ता]

खुद था कान्हा
मुझे मीरा बनाया
फिर खुश हो
खिलखिलाता रहा
मेरी दीवानगी पे ||
[ डॉ.उर्मिला अग्रवाल ] 

छम से बजी
राधिका की पायल
सुन के धुन
दौड़ पड़ी गोपियाँ
उफनी है कालिंदी ||
[डॉ.सुधा गुप्ता]


मैं हूँ सबमें
सब ही हैं मुझमें
एक ही हूँ मैं
यहीं हूँ यहीं देखो
झाँको खुद में मौन ||
[ अशोक शर्मा भारती , इंदौर ]

              चार दिन की जिंदगी में  सुख – दुःख के गुलदस्तों को यादों के एलबम में सजाए इन ताँका का सौन्दर्य देखते ही बनता है –

 चक्र सदैव
चलता रहता है
दुःख – सुख का
कभी दुःख का क्रम
कभी सुख का भ्रम ||
[डॉ.रामनिवास मानव ]

जब भी उठा
मन में ज्वार – भाटा
तेरी यादों का
बरबस ही खिंची
धरा , नभ की ओर ||
[अल्का त्रिपाठी विजय – लखनऊ ]

बिलोता मन
समुद्र मंथन सा
यादों का घट
एहसास अमृत
बिखरा चहूँदिश ||
[किरण मिश्रा ]

खड़ी यामिनी
मधुकलश लिए
चैत चाँदनी
यादों की हवा बहे
मन का चैन हरे ||
[देवेन्द्र नारायण दास ]

खिली धूप सी
स्मृतियाँ अतीत की
पैर पसारें
मन के आँगन में
ऊष्मा से भर जाएँ ||
[ डॉ.उर्मिला अग्रवाल ] 
                      जिंदगी के विविध रंगों से रंगे ये ताँका  बिना किसी टिपण्णी के आपके समक्ष प्रस्तुत है | इनमें नयी दुनिया का दर्द , विवशता , .......भरा पड़ा है ; इसका सौन्दर्य खुद इनकी अपनी तारीफ कहता है –
 धूप में बैठ
 बतकही का छौंक
 नहीं लगता
 इन्टरनेट चैट
 मस्त हैं किशोरियाँ ||
 [डॉ.सुधा गुप्ता]


अनबोला था
चाँद औ चाँदनी में
इसीलिए तो
छा गयी अमावस
राज हुआ तम का ||
 [ डॉ. उर्मिला अग्रवाल ] 

नोंच डालता
मासूम तन – मन
वहशी बन
ये मानव दरिंदा
भेड़िये की तरह ||
  [ डॉ.उर्मिला अग्रवाल ]


जितना कहा
उससे भी अधिक
है अनकहा
समझे अनकहा
वही जिसने सहा ||
[डॉ.रामनिवास मानव ]


उर्वरा धरा
भय से है काँपती
बिल्डर भूखे
बैठे घात लगाए
शासन को पटाए ||
[ डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव ]


दूब नटनी
शीश पर संभाले
ओस की बूँद
मचल रही हवा
बिखर गये मोती ||
[राजेन्द्र वर्मा ]


गुजरा वक्त
गुजरता कब है
जब भी देखो
ठहरा रहता है
अपने ही भीतर ||
[अनीता मंडा |


लजाई भोर
कनखियों से देखे
रवि बावरा
हुए लज्जा से लाल
रक्तिम सा आकाश ||

[मधु राजेन्द्र सिंघी ]

सन्दर्भ – [तॉँका संग्रह ] -
     
   अश्रु नहाई हँसी – डॉ. उर्मिला अग्रवाल ,कोरी माटी के दिये – डॉ. सुधा गुप्ता यायावर है मन – डॉ. उर्मिला अग्रवाल , सात छेद वाली मैं – डॉ. सुधा गुप्ता मुस्काने दो दोस्ती को – डॉ. उर्मिला अग्रवाल , शब्द – शब्द संवाद – डॉ. रामनिवास मानव , जियें , जीने दें – डॉ.रमाकांतश्रीवास्तव, सहमी सी जिंदगी – देवेन्द्र नारायण दास , सच के रेगिस्तान – डॉ. उर्मिला अग्रवाल ,तलाश जारी रहे – डॉ. सुधा गुप्ता , तांका की महक – प्रदीप कुमार दाश ‘ दीपक ‘
                          ...................

रमेश कुमार सोनी
जे.पी.रोड – बसना , जिला – महासमुंद
छत्तीसगढ़ , पिन – ४९३५५४
मोबाइल –७०४९३५५४७६/ ९४२४२२०२०९






1 comment:

  1. १० से ज्यादा तांका संग्रह का निचोड़ समीक्षा के रूप में आप सभी सुधी पाठकों के लिए प्रस्तुत है , आशा है आप इस अनमोल खजाने का लाभ अवश्य उठाएंगे |
    धन्यवाद

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