हाइकु साहित्य

हाइकु साहित्य के विशिष्ट ग्रंथ-

      हाइकु साहित्य में इन तीन संग्रह की अपनी अलग विशिष्टता यह है कि ये हाइकु की शिल्प और कथ्य के साथ ही हाइकुकार की अनुभूतियों को अन्य भाषा-बोली में सदैव जीवंतता प्रदान करते रहेंगे। 

डॉ.रामनिवास 'मानव' के इस जटिल एवं श्रमसाध्य कार्य को हाइकु साहित्य सदैव स्मरण रखेगा। महज तीन पंक्तियों में 5,7,5 के अनुक्रम में कुछ भी लिख देना हाइकु कभी नहीं होता बल्कि यह गहन संवेदनाओं के शब्दांकन की एक गंभीर कला है जो इन पंक्तियों को संपूर्ण कविता बनाती है;आपने इसे यहाँ चरितार्थ किया है। 

1

बून्द-बून्द सागर-डॉ.रामनिवास 'मानव' 

(अनुदित हाइकु संग्रह)

अमित प्रकाशन-गाजियाबाद (उ.प्र.)-2009

पृष्ठ-88, मूल्य-130/-रु.

ISBN: 978-81-907-350-6-3

फ्लैप- 1डॉ. परमानंद पांचाल-दिल्ली एवं

2 डॉ. सी.ई.जीनी-दिल्ली

भूमिका-डॉ.मधुसूदन साहा-राउरकेला

……


         डॉ.रामनिवास 'मानव' का यह अनुदित हाइकु संग्रह विश्व की 68 भाषा और बोलियों में प्रस्तुत हुआ है जिसमें 18 विदेशी भाषाएँ, 24 भारतीय भाषाएँ एवं 26 प्रमुख बोलियाँ शामिल हैं। 

       इस संग्रह में बड़ी सावधानी से सभी 68 अनुवादकों ने हाइकु विन्यास के वर्णक्रम का पालन किया है यह प्रशंसनीय है। इन चयनित हाइकु में डॉ. रामनिवास जी की पहचान स्पष्ट रुप से दिखती है। हाइकु एक सम्पूर्ण कविता है जो अपने वर्णक्रम और लघुता में विशालता के लिए जानी जाती है।

        इस संग्रह में हाइकु ने एक ही फ़र्लांग में तमाम भाषा एवं बोलियों को नाप लिया और उनकी हिंदी से दूरी को मिटा दिया। इस श्रमसाध्य संकल्प को साधुवाद, यह संग्रह अपनी तरह का प्रथम एवं मील का पत्थर है जिससे नवलेखकों तथा शोधार्थियों की राह प्रशस्त होगी। 

डॉ० रामनिवास 'मानव' द्वारा रचित पाँच हिन्दी हाइकु कविताएँ इस प्रकार हैं जिसे 

डॉ० सुभाष रस्तोगी,चण्डीगढ़ ने चयन किया है।

लोकजीवन की अनुभूतियों को रेखांकित करते हुए ये हाइकु अपने चयन को यहाँ सार्थक कर रहे हैं-

1

देखे जो छवि

जड़ में चेतन की 

वही तो कवि।

2

लिया ही लिया 

प्रकृति से हमने 

माँ जो ठहरी।

3

किस्त चुकाते 

चुक गया जीवन, 

चुके न खाते।

4

दुःख पाहुना, 

कुछ लेकर आया, 

देकर गया।

5

घर में घर,

आदमी में आदमी,

फिर भी डर ।

…..

2

हाइकु रत्न मलिका-डॉ.रामनिवास 'मानव'

(संस्कृत में अनुवादित हाइकु संग्रह)-2009

समन्वय प्रकाशन-गाज़ियाबाद (उ.प्र.)

ISBN:978-81-88971-36-7

पृष्ठ-76, मूल्य-130/-रु.

भूमिका एवं अनुवादक-डॉ. सूर्यदेव पाठक 'पराग'-गोरखपुर 

डॉ. कमलकिशोर गोयनका-नई दिल्ली

फ्लैप- 1 डॉ. एम.गोविंदराजन -चैन्नई एवं

2 डॉ. मधुसूदन साहा-राउरकेला 

…..


    इस हाइकु रत्न मलिका संग्रह में डॉ.रामनिवास 'मानव' के कुल-370 हाइकु का संस्कृत में अनुवाद प्रस्तुत हुआ है जो इन विषयों के तहत है- 1 वंदना,2 हाइकु कवि,3 प्रकृति,4 समाज,5 ग्राम,6 निर्धनता,7 सम्बन्ध, 8 नारी, 9 प्रेम, 10 वेदना, 11 वैक्तिकी, 12 धर्म,13 दर्शन,14 व्यवस्था, 15 सत्ता, 16 सामयिकी, एवं 17 विविधा। 

     सभी खंड के हाइकु अपने शिल्प एवं कथ्य की दृष्टि से पुष्ट हैं साथ ही अपनी उपस्थिति से पाठकों के समक्ष खुलकर प्रकट हो रहे हैं। हाइकु यद्यपि प्रकृति की एक संपूर्ण कविता है तथापि डॉ. मानव की विशिष्टता लोकजीवन में ब्याप्त समस्याओं को उकेरने में है। आपके हाइकु इसी विशिष्टता के कारण पृथक से पहचाने जाते हैं। आपके हाइकु में प्रायः तुक का पालन देखने को मिलता है। 

     इस पूरे संग्रह का जितना श्रेय डॉ. मानव को जाता है उससे कहीं ज्यादा इसके अनुवादक डॉ. पाठक को जाता है क्योंकि अनुवाद एक जटिल विधा है,आपने अनुवाद करते हुए उसकी अंतर्निहित संवेदनशीलता को बचाए रखा है। 

     यह संग्रह अपनी श्रेणी का विश्व में प्रथम संग्रह है;आप दोनों को इस वृहत संग्रह के लिए-बधाई एवं साधुवाद। देखिए एक हाइकु-

सजी प्रकृति

प्लास्टिक के फूलों से

नई संस्कृति।

……

3

बैरी हुया ज़माना-डॉ.रामनिवास 'मानव'

(हरियाणवी हाइकु संग्रह) द्वितीय संस्करण-2015 

मानव भारती प्रकाशन-हिसार(हरियाणा)

मूल्य-50/-रु., पृष्ठ-24

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  इस हरियाणवी हाइकु संग्रह में आपकी कुल 100 हाइकु संग्रहित हैं। इस संग्रह में आपने हाइकु के शिल्प विधान को पुष्ट रखते हुए अपनी अनुभूतियों को रचा है जिसमें आपकी स्पष्ट छाप दिखती है। 

   प्रकृति का वर्णन करते हुए आप कभी भी अपने परिवेश की ब्याप्त समस्याओं को उकेरने में पीछे नहीं रहते। हरियाणवी हाइकु की यह प्रथम पुस्तक है। इसमें आपने हरियाणवी अंदाज़ को सफलता से निभाया है साथ ही आपका सदैव से यही मानना रहा है कि भारतीय हाइकु को तुकांत होना चाहिए। हरियाणवी साहित्य को पुष्ट करने की ओर आपका यह कदम प्रशंसनीय है। 

1

सिरसूं फुल्ली

देख के झुम्मै चणा

खुस सै घणा। 

2

खेलणा-खाणा

सै बस दो दिनां का

फेर सै जाणा।

3

आई अजादी

इब चील-कव्वा बी

पहनैं खादी। 

…..


रमेश कुमार सोनी

रायपुर,छत्तीसगढ़


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