हकीकत बयाँ करती संदेशपरक ग़ज़लें-
'बाप से परिचय हुआ'-अशोक शर्मा जी के ग़ज़ल संग्रह को पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस संग्रह में कुल 119 ग़ज़लें हैं जिसमें सभी एक से बढ़कर एक हैं,किसी को भी कमतर नहीं आँका जा सकता। अलग-अलग वक्त पर रची गयीं ये सुंदर पंक्तियॉं संदेशपरक होने के साथ ही साथ पाठकों में अपनी गहरी छाप छोड़ने के लिए काफी है। हरेक ग़ज़ल का अपना एक अलग अंदाज है जिसे पाठक गुनगुनाना पसंद अवश्य करेगा।
गिरीश पंकज जी के अनुसार-'मनुष्य के अंतस की छीजती जा रही करुणा, उदारता, सद्भाव आदि के विलुप्त होते जाने की स्थितयाँ अशोक जी की शायरी में स्पष्ट परिलक्षित होती हैं।' इन ग़ज़लों को पढ़कर वाकई ऐसा लगता है जैसे ये मानवीय संवेदनाओं के काफी निकट है जो अपनी एक नयी रेख खींचने में सफल हुई हैं। इन ग़ज़लों में आपकी वर्षों की साहित्यिक साधना में अनुभूतियों को रेखांकित करने की परिपक्वता झलकती है।
इस संग्रह का ये प्रतिनिधि शेर है-
कल शहर जब बंद था तो बाप से परिचय हुआ,
वर्ना सोए में गया और जागते लौटा नहीं।
इस शेर में वर्तमानी हकीकत को आपने छुआ है-
गरीबी एक ऐसी पाठशाला है जहाँ बच्चे,
पिता की जेब पढ़कर ही खिलौनों पर मचलते हैं।
इस तरह के सभी शेर पाठकों के दिल से होकर गुजरेगा ऐसा मेरा मानना है जो सदैव उनकी स्मृतियों में रच-बस जाएगा।
इस संग्रहणीय और पठनीय संग्रह के लिए अशोक जी को मेरी अशेष शुभकामनाएँ एवं बधाई।
रमेश कुमार सोनी
कबीर नगर- रायपुर
7049355476
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बाप से परिचय हुआ
ग़ज़ल संग्रह -अशोक शर्मा,महासमुंद
जिज्ञासा प्रकाशन-गाज़ियाबाद, उ.प्र.-2021
मूल्य-160/-रु., पृष्ठ- 134
ISBN-978-93-90443-11-6
भूमिका-मुकुंद कौशल, फ्लैप-गिरीश पंकज
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हार्दिक बधाई रमेश जी बहुत ही सहृदयता से लिखी हुई सारगर्भित समीक्षा के लिए दिल से आभारी हूँ।
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