प्रथम वैश्विक तांका-सम्मेलन आयोजित हुआ


 


प्रथम वैश्विक तांका-सम्मेलन आयोजित हुआ

काव्य-विधाओं से हिंदी-साहित्य होगा समृद्ध-

डॉ अनिल जोशी 


बसना। हिंदी-साहित्य के सभी दरवाजे खुले हैं। विश्व-साहित्य के भावों, विचारों और विधाओं का यहां स्वागत है। यह कहना है केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल, आगरा (उत्तर प्रदेश) के उपाध्यक्ष डॉ अनिल जोशी का। मनुमुक्त 'मानव' मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा आयोजित प्रथम वैश्विक हिंदी तांका-सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि उन्होंने कहा कि जैसे ईरान से आयातित फारसी गजल ने हिंदी-साहित्य को समृद्ध किया है, वैसे ही हाइकु-तांका जैसी जापानी काव्य-विधाओं से भी हिंदी-साहित्य समृद्ध होगा। हिंदी कल्चरल सोसायटी, टोक्यो (जापान) की अध्यक्ष डॉ रमा पूर्णिमा शर्मा ने कहा कि तांका जापान की सर्वाधिक लोकप्रिय काव्य-विधा है तथा इसके भारत में भी शीघ्र‌ लोकप्रिय होने की पूरी संभावना है। केंद्रीय हिंदी निदेशालय, भारत सरकार, नई दिल्ली के सहायक निदेशक और पूर्व राजनयिक डॉ दीपक पांडेय ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में स्पष्ट किया कि तांका भले ही जापान से आयातित एक लघु काव्य-विधा है, किंतु इसके माध्यम से बड़ी बात प्रभावशाली ढंग से कही जा सकती है। इससे पूर्व विषय प्रवर्तन करते हुए चीफट्रस्टी डॉ रामनिवास 'मानव' ने कहा कि भारतीय परिवेश में ढलकर ही तांका भारत में लोकप्रिय हो सकता है।

          चीफट्रस्टी डॉ रामनिवास 'मानव' के प्रेरक सान्निध्य और डॉ पंकज गौड़ के कुशल संचालन में लगभग डेढ़ घंटे तक चले इस सम्मेलन में भारत, नेपाल, श्रीलंका, जापान, रूस, ऑस्ट्रेलिया, बल्गारिया और अमेरिका सहित आठ देशों के अठारह तांकाकारों ने काव्य-पाठ किया। टोक्यो (जापान) की डॉ रमा पूर्णिमा शर्मा, सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) की डॉ भावना कुंवर और प्रगीत कुंअर, कोलंबो (श्रीलंका) की डॉ अंजलि मिश्रा, चितवन (नेपाल) की रचना शर्मा, फ्रीमोंट (अमेरिका) की रेणु चंद्रा माथुर तथा भारत से गोरखपुर के सूर्यदेव पाठक 'पराग', बसना के रमेशकुमार सोनी, नारनौल के डॉ रामनिवास 'मानव', गुरुग्राम की विभा रश्मि, नोएडा की शोभना श्याम, देहरादून की ज्योत्स्ना प्रदीप तथा नई दिल्ली की डॉ नीलम वर्मा की तांका-कविताओं विशेष सराहना मिली।

हिंदी ताँका का प्रथम वैश्विक वेबिनार संपन्न-

       

           ज्ञात हो कि ताँका -हिंदी साहित्य की एक लेखन विधा है जो जापान से आयातित है लेकिन अब इसका भारतीयकरण हो चुका है इसके लेखन में कुल पाँच पंक्तियों (5,7,5,7,7=31) में अपनी अनुभूत संवेदनों को अभिव्यक्त किया जाता है जिसका दृश्य पाठकों के समक्ष पर्याप्त रूप से खुले ;यह  अब किसी विशेष विषय के बंधन से मुक्त है, इसे लघुगीत की भी संज्ञा दी जाती है.  

           इस अवसर पर रमेश कुमार सोनी-छत्तीसगढ़ ने भी किन्डल प्रकाशित अपने -प्रथम वैश्विक एकल हिंदी  ताँका इ पुस्तक-‘झुला झूले फुलवा’ में प्रकाशित ताँका सुनाए तथा वैभव प्रकाशन-रायपुर से प्रकाशित अपने छत्तीसगढ़ी के प्रथम वैश्विक ताँका संग्रह-‘हरियर मड़वा’ का भी उल्लेख किया.

         *इनकी रही उल्लेखनीय उपस्थिति :* इस ऐतिहासिक वर्चुअल तांका-सम्मेलन के अवसर पर डॉ सुमन मिश्रा और विनीता पाठक (लखनऊ), डॉ  पूर्णमल गौड़ (करनाल), डॉ पीए रघुराम (तलश्शेरी), डॉ ओपी बिल्लोरे (इंदौर), जितेंद्र वर्मा, दया चतुर्वेदी, रितिका शर्मा, आभा आर, शुभ चेतन और प्रेम वर्षा सेठी (नई दिल्ली), डॉ आरके जांगड़ा (रेवाड़ी), डॉ कांता भारती और शर्मिला यादव (नारनौल) आदि साहित्यकारों तथा गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति विशेष उल्लेखनीय रही।



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