समीक्षा -‘वर्ण सितारे’ हाइकु E BOOK .








 इन्टरनेट की दुनिया में हाइकु का सौन्दर्य बिखेरते ‘वर्ण सितारे’-

                 हाइकु अब हिंदी साहित्य की दुनिया में एक प्रमुख विधा बन चुकी है जिसके जरिए साहित्यकार अपनी संवेदनाओं को शब्दांकित करके प्रसन्नता की अनुभूति करता है| हाइकु अब अपने परिचय के लिए मोहताज़ नहीं रही इसने अपनी जद में पूरे विश्व को समेटा हुआ है ;इसी के ज़रिए हिंदी भाषा को भी पंख लग गए हैं और वह अब विश्व साहित्य की एक प्रमुख भाषा के रूप में गिनी जाने लगी है | इसके बहुत से संग्रह इन दिनों आसानी से बजारों में उपलब्ध हैं और विविध पत्र-पत्रिकाओं ने इसके विशेषांक भी निकाले हैं | इन सबसे अलग एक नयी और समय के साथ कदमताल करती हुई एक दुनिया है जिसमें हम अपने संग्रह को E BOOK के रूप में पढ़ते हैं | इन सबके blogs भी बहुतायत से इसे पोषित करते हुए मिलते हैं जिनमें मुख्य है -हिंदी हाइकु | हाइकु को पोषित और इस मुकाम तक पहुँचाने वालों के नामों की लम्बी सूची है सभी को इस लेख के द्वारा -साधुवाद |

                     पर्यावरण संरक्षण की दुहाई देकर पेपर और वृक्ष बचाने पर आधारित E दुनिया में मुझे एक हाइकु संग्रह पढ़ने को मिला वह है- वर्ण सितारे’ जो ‘ऋता शेखर मधु [रीता प्रसाद ]’ के द्वारा रचित है |इसे संयोग ही कहना उचित होगा कि -यह पुस्तक अमेज़न पर उसी दिन प्रकाशित हुई जिस दिन मेरी अपनी हिंदी ताँका संग्रह की विश्व में प्रथम E BOOKझुला झूले फुलवा प्रकाशित हुई |  ऋता शेखर मधु जी एक प्रतिभाशाली संपादक हैं और वे विगत कई वर्षों से हिंदी हाइगा पत्रिका की ब्लॉग संचालित करते हुए इसके विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं | आपने कई हाइकु को हाइगा बनाते हुए एक स्तुत्य कार्य किया है और अब वे अपने एकल संकलन के साथ प्रस्तुत हुई हैं जिसका स्वागत करना चाहिए क्योंकि आने वाली पीढ़ी के लिए अब ऐसे पुस्तकों को ऑनलाइन पढ़ना आसान होता है|

                  वर्ण सितारे’ [E BOOK]में 31 विविध उपशीर्षकों , हाइकु गीत एवं परिचय के साथ कुल =538 हाइकु दिए गए हैं | इसका आरम्भ माँ शारदे की कृपा माँगते हुए हुआ है ;यद्यपि इस संग्रह के कई रंग हैं लेकिन मुझे जिन हाइकुओं ने ज्यादा प्रभावित किया केवल उसी की चर्चा पर मैं केन्द्रित रहूँगा -

      साँझ और भोर का सुन्दर वर्णन यहाँ अपनी प्रत्यक्ष उपस्थिति का अहसास कराते हुए वर्णित हुए हैं ; इन हाइकु को किसी स्पष्टीकरण या व्याख्या के बैसाखी की आवश्यकता नहीं है -

                     -साँझ सजीली / दुपट्टा चाँदनी का / धरा के काँधे |(6)

-उजली भोर / बदल रही प्राची / धरा के वस्त्र |(13)

          आज वैश्विक दुनिया की एकल परिवार की कल्पना ने रिश्तों को नए तरीकों  से परिभाषित करना शुरू किया है जिसके दुष्परिणाम धीमे-धीमे दिखाई देने लगे हैं और लोग अपने पुराने दिनों के गाँव और पड़ोस के रिश्तों की याद भी करने लगे हैं | लोगों को रिश्ते तभी याद आते हैं जब उन पर कोई मुसीबत आती है ऐसे ही कुछ सन्दर्भों के हाइकु मन मोहने यहाँ उतर आए हैं - 

                          -दिल के रिश्ते / दिमाग से निभते / होता है दर्द | (249)

-मन भँवर / बातें नाचतीं रहीं / सुनी-सुनाई | (534)

           रिश्तों में सबसे ज्याद गहरा रिश्ता बेटी के साथ पूरे परिवार का होता है और इन दिनों कन्या भ्रूण हत्या से उपजे कन्या संकट के बीच बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा भी बुलंद है | बेटी की विदाई का क्षण हो या उसके हँसने ,उसके संस्कार या उसके माँ बन जाने की ख़ुशी हो सब कुछ सहेजने में ये हाइकु सफल हुए हैं -

-बिटिया हँसी / बाग़ में खिल गई / जूही की कली | (267)

              -नीला अम्बर / पिता ने तान दिया / नेह का छाता | (269)

-संस्कार सोना / हया की मीनाकारी / बेटी! न खोना | (479)

        -विदा करे माँ / आँचल में बाँध दी / सीख पोटली | (500)

                अपनी जिंदगी के सबसे सुहाने पल हर कोई संजोए रखना चाहता है और हम सबको यह पता ही है कि हमारा स्वर्णिम काल हमारा बचपन था जो अंत तक हम सबके साथ जिन्दा रहता है ,हमारे दिल के बीहड़ में| बच्चों की किलकारियों के साथ ये हाइकु आपके लिए आपका बचपना लेकर आए हैं –

                                -नीड़ में चूजे / बचपन जी लेता / बुढ़ाया मन |(128)

   -तितली संग / दौड़ता बचपन / निश्छल मन |(139)

                            -अनाथालय / रेडियो में बजती / लोरी की धुन |(334)

          हिंदी हाइकु की सबसे बड़ी खूबसूरती है उसका अपने आस-पास के ऋतुओं /मौसमों और प्रकृति का वर्णन वह भी अपनी संवेदनाओं/अनुभवों की दुनिया में ;यहाँ कुछ सुंदर दृश्य आपके अवलोकन हेतु तत्पर हैं | आइए इनका आनंद लें ,बसंत में सुवासित हों ,सावन में भीगें,शीत में अलाव तापें और प्रकृति नटी की सभी क्रीडाओं में शामिल हो जाएँ इन हाइकुओं के संग-

                         -हवा धुनिया / रेशे-रेशे में उड़ी / मेघों की रूई | (62)

                                  -पावस धोबी / धो रहा फूल-शूल / भेद न भाव | (186)

       -इन्द्रधनुष / बुन रही है धूप / वर्षा की चुन्नी | (187)

                             -बिजली तार / पावस ने गूँथे हैं / हीरों की हार | (513 )

                                              -मेघों की कूँची / आकाश कैनवास / अद्भुत चित्र | (198)

                                    -हीरों का हार / वल्लरी पर सजी / ओस की बूँदें | (99)

            -हवा पालकी / मोंगरे की ख़ुशबू / दुल्हन बनी |(536 )

                   - बाग़ मोगरा / सुगंधों की पोटली / हवा के काँधे | (61)

                                       -खुले दरीचे / सरसरा के आए / शीत के ख़त | (75)

                इन सबके साथ हाइकु अपने श्रृंगार करने मौसम के साथ प्रस्तुत हुई है ,यहाँ प्रकृति का श्रृंगार के साथ अच्छा सम्मिश्रण हुआ है | यहाँ कोमल कलियों को पवन का हिंडोला झूला रहा है ,बसंत में सृष्टि दुल्हन को शगुन की रंगीन चुन्नी भेंट कर रही है और मक्के का सुंदर श्रृंगार उसकी हरी चुनरी के साथ एवं फुल के बाग़ में मालिन का सुगंध को पिरोना अद्भुत चित्रण है-उत्कृष्ट|आइए इन शब्दों की जादूगरी के साथ पुलकित हो जाएँ-

-कोमल कली / पवन का हिंडोला / लगीं झुलाने |(161)

          -सृष्टि दुल्हन / बसंत का शगुन / रंगीन चुन्नी | (183)

                             -फुलबगिया / पिरो रही मालिन / शुभ सुगंध | (286)

                                                       -हरी चुनरी / रुपहले कुंतल / मक्का श्रृंगार | (325)

              मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और जिस समाज में वह रहता है उसके आस-पास की घटनाओं से वह प्रभावित होता है जो उसकी रचनाओं के साथ प्रकट हो जाता है क्योंकि रचनाकारों के पास उनका एक संवेदनशील मन होता है जो अतिशीघ्र संवेदनाओं को ग्रहण करता है और अनायास ही शब्दांकित हो जाते हैं | ऐसी ही कुछ घटनाएँ ऋता शेखर मधु जी को भी अनुभूत हुईं हैं आइए इसकी बानगी देखते हैं –

महँगे जूते / सस्ती सी मरम्मत / रास्ते का मोची | (481)

                युद्ध के मुहाने में बैठी दुनिया का दर्द इस हाइकु में छलक उठा है जब किसी शहीद का पार्थिव शारीर ताबूत में लिपट कर उसके गाँव में आता है जहाँ रिश्ते उनके विजयी होकर लौटने की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं –

                                      चली बंदूक / सरहद थर्राया / भरे ताबूत | (56)

          कुछ विसंगतियों की ओर भी रचनाकार ने इशारा किया है जहाँ कंक्रीट की दुनिया में सोंधी गंध का दम घुटता है और अलाव के आस-पास यादों की लिट्टी सिंक जाती है -

जले अलाव / गपशप में सिंकी / यादों की लिट्टी | (94)

                      जमी सीमेंट / तिल-तिल घुटती / सोंधी सुगंध | (284)

         श्रृंगार का एक छोटा सा प्रयास प्रेम की अभिव्यक्ति लिए प्रकट हुआ है आज के वक्त की ये सबसे बड़ी ज़रूरत है क्योंकि नफरतों के इस दौर में आज यही सबसे बड़ी संजीवनी है -

पलकें झुकीं / झुक गया फ़लक / तुम्हारे लिए | (409)

                                      मन जोगिया / बना रूप का लोभी / गा उठा फाग |(150)

         वर्ण सितारे’ के हाइकु साहित्यिक दुनिया में अपनी उपस्थिति बनाए रखने में कामयाब हुए हैं वहीं इन हाइकुओं की ताजगी मुग्ध करती है , एक अजीब सा नयापन है जो आजकल कहीं-कहीं ही देखने को मिलता है |इस संग्रह के सभी हाइकु उपशीर्षकों के आरम्भ में उससे सम्बंधित चित्र दिए गए हैं जो आपके हाइगा सम्पादकीय के प्रभाव को दर्शाता है लेकिन मुझे लगता है कि हाइकु को अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिए हाइगा/चित्र की आवश्यकता नहीं है | इस संग्रह के ढेर सारे हाइकु ,अच्छे हाइकु को ढँके हुए हैं जिससे इसकी सुन्दरता मुझे  फीकी सी लगी ; इसके ठीक से पेज सेट अप न हो पाने की कमी अखरेगी | कुल मिलाकर हिंदी हाइकु साहित्य की दुनिया में आपका स्वागत ही किया जाएगा ,प्रत्येक कोशिश की प्रशंसा करनी चाहिए और उसकी अच्छाई  को अपनाना चाहिए |

मुझे उम्मीद है कि इन्टरनेट के उपयोग करने वालों तक यह संग्रह ,हाइकु का अलख जगाने में सफल होगी , हिंदी हाइकु के साहित्याकाश में ये ‘वर्ण सितारे’ के हाइकु अनंत काल तक अवश्य टिमटिमाएँगे | मेरी सभी को यही सलाह है कि इसे अवश्य पढ़ें ;मेरी अनंत शुभकामनाएँ एवं बधाई ..|

रमेश कुमार सोनी (बसना)

एल.आई.जी.24 कबीर नगर ,फेज -2 रायपुर

रायपुर ,छत्तीसगढ़ , संपर्क -7049355476

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‘वर्ण सितारे’, हाइकु संग्रह - ऋता शेखर मधु [रीता प्रसाद ]

E BOOK AMAZON KINDAL-2020

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1 comment:

  1. बहुत ही उत्कृष्ट समीक्षा की है वर्ण सितारे की .. आपकी लेखनी अद्भुद है बहुत बहुत बधाई के साथ अनंत शुभकामनाएं 💐💐

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