जीवन के अनुभवों की सीख बाँटती ताँका-
यह मेरे लिए गर्व का विषय है कि कृष्णा
वर्मा द्वारा रचित हिंदी का प्रथम प्रवासी ताँका संग्रह मुझे पढ़ने का सौभाग्य
प्राप्त हुआ |इस जीवन ने वर्तमान दौर में अपने विविध रंग दिखाए हैं;इसे कौन किस
तरह से देखता है और उसे कैसे शब्दांकित करता है ये उसकी संवेदना और चेतना पर
निर्भर करता है|यहाँ पर कृष्णा वर्मा जी ने अपने भोगे हुए सभी पलों को ताँका की एक
डोरी में पिरोया है|यह संग्रह विविधवर्णी होने के साथ ही अपने आपमें किसी शिक्षक
की भाँति सीख बाँटते हुए दिखायी देती है,यही इसका केन्द्रीय भाव भी है|ताँका,हिंदी
साहित्य की जापान से एक आयातित विधा है जो अब यहाँ के जनमानस में घर कर गयी
है;इसके बहुत से संग्रह अब हमें मार्गदर्शन हेतु उपलब्ध हैं|ताँका,पाँच पंक्तियों
में-5,7,5,7,7 अर्थात कुल 31 वर्ण की कविता है;इसका कविता होना ही इसकी प्रमुख
शर्त है;कुछ रचनाकार इसे लघु गीत के रूप में भी उल्लेखित करते हैं|
जीवन का हर पहलू हमें कुछ खट्टे तो कुछ
मीठे अनुभवों से गुजारता है इनकी संवेदनाओं को समेटना सदैव से चुनौती भरा रहा है|सच
और झूठ की इस ढोंग भरी दुनिया में आपके साहस के अलावा कोई दूसरा आपका
साथी हो भी नहीं सकता जबकि आपका अनुभव ही यहाँ सबसे बड़ा शिक्षक भी होता है| यहाँ
प्रत्येक जीतने की उम्मीद से आता है लेकिन विजयश्री किसी-किसी को ही मिलती है जिसे
लोग किस्मत/भाग्य का नाम देकर अक्सर अपनी असफलता को छिपाने की नाकाम कोशिश करते
हुए नज़र आते हैं| ये ताँका इसलिए भी मायने रखते हैं क्योंकि इस तरह के ताँका से, पहले
किसी संग्रह में ताँकाकार परहेज करते हुए दिखे हैं-
- बुझाना नहीं / उजास की प्यास को / तम से
घिरी / जिंदगी घुट रही / उठ छाँट अँधेरे | 17
- भींच मुठ्ठियाँ / दुर्दांत समय
में / हारना नहीं / फौलादी इरादों से / डटके लेना लोहा | 24
- हार न देख / हार के पीछे छिपी / जीत को
देख / क़ायम रख बन्दे / उम्मीदों के उजाले | 129
- मन-बगीचे / सोच समझ बोना / शब्दों के
बीज / जैसे उगेंगे अर्थ / वैसा होगा भविष्य | 140
- मूँदके नैन / भीतर पसार ले / शांति औ
चैन / मौन भरी क्रांति से / मात दे अशांति को | 170
- शब्द चुभें तो / फिर भी सह लेना / चुभने
लगे / गर मौन किसी का / सँभालना तत्काल | 213
- जीने की तुम / सीखो कला जनाब / हँसके जियो / कीचड़ में कमल / ज्यों काँटों में गुलाब | 332
प्रकृति अपनी सबसे सुन्दर दृश्यों का प्रकटीकरण करती है
जिससे समय-समय पर हम विस्मित/मुग्ध होते रहे हैं| यहाँ बगीचों में पुष्पों,भौरों /तितलियों
की क्रीडाएं लुभाती हैं, नशीला मौसम,धुन्ध,चाँद,वर्षा,साँझ,परिंदे
और ...पल्लवों का असीम सौन्दर्य इसमें भरा पड़ा है| इन ताँकाओं में कहीं भी प्रकृति
का रोष,प्रदूषण का दंश जैसी नकारात्मकता नहीं है| ये वक्त इसे सँवारने का है ऐसा
ही संकेत करते हुए ये यहाँ प्रकट हुए हैं आइए देखें-
- मंद मुस्काए / पानी में लहराए / सलोना
चाँद /सिर थामे सन्नाटा / बैठा नदी किनारे | 44
- हुए नशीले / मौसम के नयन / खुश बहार / पत्ते
बजाएँ ताली / हवा गाए मल्हार | 45
- बाँधे घुँघरू / मलय पवन ने / होठों पे
राग / मेघों ने ढोल पीटे / बुँदियों की बारात | 49
- नवसुरों को / जगाए फुदकके / नन्ही
गौरैया / रुकती-ठुमकती / दौड़ती गिलहरी | 65
- सर्द हवाएँ / फ़ौजें करें चढ़ाई / भागे
सूरज / धुंध में लपेट के / अपनी प्रभुताई | 124
- चंचल धूप / दिन में कूदे-फाँदे / दीवारों
पर / साँझ ढले लजाए / छुई-मुई हो जाए | 318
- कुनमुनाए / शाखा पर पल्लव / जागी जो
भोर / पंछी का कलरव / हवा हुई विभोर | 338
चार दिन की इस जिंदगी में घर-परिवार,समाज-गाँव और देश भी शामिल होते हैं|
इन सबके साथ हमारा सम्बन्ध हमें एक महीन धागे से जोड़ता है जिसे हम लोग रिश्तों के
नाम से जानते हैं जो सदैव से त्याग और समर्पण पर टिका होता है| जब भी कोई इस पर
अपने स्वार्थ का मुलम्मा चढ़ाने की कोशिश करता है उसी वक्त इसमें गाँठे पड़नी शुरू
हो जाती हैं| कृष्णा जी के ताँका का एक बड़ा भाग इससे भरा हुआ है जाहिर सी बात है
कि आपको इसके हर दौर का अनुभव रहा है| रिश्तेदारियों से जीवन के ताना-बाना को
जोड़ते हुए इन ताँकाओं की सुन्दरता देखिए-
- मुट्ठी में बंद / हमारी लकीरों से / फिसल
गए / कैसे हमारे रिश्ते / रेत के तो नहीं थे | 16
- मरी है नमी / शुष्क नैन कटोरे / दरके
रिश्ते / किया दिल पाषाण / तुम्हारी बेरुख़ी ने | 69
- बदल गए / सब तौर तरीके / मरे
संस्कार / इंसानी रिश्तों में जो / आया मंदी का दौर | 156
- हैं अनमोल / यह खून के रिश्ते / अपना
हिस्सा / देके उन्हें रोक लो / आँगन में दीवार | 159
- रिश्ते जुड़ते / भावना तंतुओं से / अदृश्य
होती / प्रीत बंध की डोरी / जुड़े जाए ना तोड़ी | 272
- वक्त निकाल / करलो स्वजन से / दो मीठी बात / रहेगा मलाल जो / टँग गए जो दीवाल |282
जीवन का सबसे सुखद अहसास उसकी
श्रृंगारिकता का पक्ष होता है जहाँ ढाई आखर के प्रेम के आस-पास ही सब सिमटा हुआ
है| इस रस में संयोग और वियोग के दोनों पहलुओं का दर्शन यहाँ मिलेगा;इसमें भी यही
शर्त है कि आपको पाने से ज्यादा त्यागना होगा तभी ये संवारा-निखारा जा सकेगा|
इन्हीं भावनाओं के इर्द-गिर्द ये ताँका प्यार बरसाते हुए दिख ही जाते हैं –
- तड़पे प्यास / दिल के समंदर / दर्द की
धारा / मर गई चाहतें / प्रेम हो गया खारा | 108
- हुआ बेरंग / जीवन बिन तेरे / टूटी है आस / पनघट
पे बैठी / प्यासी की प्यासी प्यास | 219
- टूटा संयम / रचा उत्सव फाग / प्रीत है
अंध / साँसों-बसी कस्तूरी / नाचे केसर गंध | 353
इस क्रम में कृष्णा जी ने प्रकृति और
श्रृंगार का अद्भूत समन्वय रचा है इससे ये ताँका बहुत अच्छे बन पड़े हैं,आइए इनकी
सुन्दरता का आनंद लें-
- ऋतु शैतान / कली की हथेली पे / लिखे
श्रृंगार / भृंग टोलियाँ करें / आ,न्यौछावर प्यार | 351
- डूबा प्यार में / बेख़बर है चाँद / भूल
जाता है / चकोर की प्यास को / निहारता चाँदनी | 362
भारतीय साहित्य बिना भक्ति और
आध्त्यामिकता के पूर्ण नहीं मानी जा सकती क्योंकि यहाँ के जनमानस में प्रभु
रचे-बसे हुए हैं| भारत से मीलों दूर रहने के बाद भी कृष्णा जी का मन अपने प्रभु
में रमे हुए है ; भक्त और भगवान को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता यही भाव
हमें इन ताँका में देखने को मिलता है आइये इनके साथ हम भी अपने भजनों का सुर
मिलाएँ-
- उसका चाक / है माटी भी उसी की / जैसा जी
चाहे / रचे सृजनहार / है कुशल कुम्हार | 153
- दो ही अक्षर / कैसा खेल दिखाएँ / जपता
मन / जब राधे-राधे तो / श्याम नज़र आएँ | 189
- जीवन मात्र / मृत्यु की अमानत / उधारी
साँसे / लिखा ना मिट पाता / फेंको जितने पासे | 290
- कैसी बावरी / साँवरे की बाँसुरी / नेह
लगाया / होठों से लगने को / सीना भी छिदवाया | 393
बीती हुई जिंदगी का पिटारा
जब भी खुलता है उनमें से यादों के सुन्दर मोती के साथ अश्रु की सीलन भरी तकिया और
उनींदी रातों का हिसाब भी भरा हुआ मिलता है| ये यादें जीवन भर हमारे ज़ेहन में
चिपकी रहती हैं जब भी वक्त मिले ये हरिया जाते हैं,इन्हीं यादों के सहारे हमारे इन
ताँका की यात्रा पर आपको ले चलते हैं-
- तुम्हारे बिना / ख़ाली-ख़ाली रहता / मन का कोना / उग आती हैं यादें / निगूढ़
ख़ामोशी में | 58
- तू नहीं लौटा / न जाने कितने ही / सुहाने
स्वप्न / गला घोंटके मारे / तेरे इंतज़ार में | 87
- लिपटी रहीं / स्मृति-परछाइयाँ / कभी
डँसती / कभी सहला जातीं / अज़ब रानाइयाँ | 299
- सावनी झूले / आँसू की डोरी थाम / झूलती
साँसे / याद आएँ सखियाँ / बचपन की प्यारी | 302
इस दुनिया के अपने कायदे-कानून हैं
इन्हीं के साथ जीना-मरना है इसकी कसक और शिकायतों का दामन थामे| जीवन चलते जाने का
नाम है कभी जो गिरे स्वयं ही उठना-चलना होगा;इसकी काली कोठरी में अपने दामन बचाके
निकल जाना ही हमारे सफल जीवन का मूल आधार है| आइए इन ताँका के साथ
हम कदमताल करते हुए इस जीवन को धन्य करें-
- गोल रोटी ने / ऐसे दिए चक्कर / घूम रहा
है / जन्म से मृत्यु तक / गोल-गोल इंसान | 43
- बड़ी कठिन / ज़िन्दगी की किताब / पढ़ें तो
कैसे / पल-पल बदलती / ये अपने मिजाज़ | 296
- सुलगती है / साँसों में इक आग / कहाँ ले
जाएँ / ज़िन्दगी तो ज़िन्दगी / अच्छी या बकवास |141
- चुभ जाती हैं / होती हैं जब बातें / उससे
ज्यादा / चुभ जाता है कभी / बात का न होना भी |103
- जीवन लगे / कोई गहरा मर्म / उम्र
पर्यंत / चाह के ना सुलझी / गुत्थी है जो उलझी | 289
इस संग्रह की 400 ताँका में से
कुछ अपने कद से भी काफी ऊँचे हैं जिनसे इस संग्रह के मर्म को समझा जा सकता है| यह
तभी रचा जा सकता है जब कोई बहुमुखी प्रतिभा संपन्न रचनाकार अपनी जिंदगी में डूबकर
लिखता है;अनुभवों का दामन जिसका सदैव नरम और करुणा की संवेदनाओं को समझता हो|
- आ सहला दूँ / नसीब तेरे पाँव / दुखते होंगे / मार-मार ठोकरें / रोज मेरे ख्वाबों को | 231
- करे जो काम / खिलौनों की दूकान / जाने वो बच्चा / अर्थ क्या घुटन का / क्या टूटे अरमान |247
- मेघ ही नहीं / बरसाता फुहारें / टूटी छतों
से / छिटकाए चाँद भी / मरमरी चाँदनी | 364
यह संग्रह अब हिंदी साहित्य की एक थाती बन चुकी
है जो शोधार्थियों के लिए मार्गदर्शन करेगी| इस संग्रह के लिए आपको बधाई की आपने
हिंदी साहित्य का मान विदेश में भी बढ़ाया,मेरी अनंत शुभकामनाएँ..|
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बरसी सुगंध (ताँका संग्रह)- कृष्णा
वर्मा [ कनाडा ]
प्रकाशक- अयन प्रकाशन महरौली,नई दिल्ली
मूल्य- 180/- रु., पृष्ठ-88, ISBN NO.-978-93-89999-48-8
समीक्षक – रमेश कुमार सोनी,
रायपुर ( छत्तीसगढ़ ) 492099
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आदरणीय सोनी जी आपकी सुंदर समीक्षा ने कृष्णा जी के संग्रह में चार चाँद लगा दिए, उसे पढ़ने को उत्सुकता और अधिक बढ़ा दी, आपको व कृष्णा जी को अनेकों बधाई एवं शुभकामनाएँ!!
ReplyDeleteमेरी समीक्षा आपको पसंद आई - धन्यवाद |
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