हरियर मड़वा -

 



हरियर मड़वा

छत्तीसगढ़ी ताँका संग्रह – 

रमेश कुमार सोनी , बसना

वैभव प्रकाशन – रायपुर २०१९ , मूल्य – २००=०० रु. , पृष्ठ – ८८

भूमिका– डॉ. सुधीर शर्मा ,रायपुर /समीक्षक –पुरुषोत्तम दीवान ‘छत्तीसगढ़िया ‘,बसना

ISBN NO. -  978-93-88867-47-4

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छत्तीसगढ़ महतारी के कोरा मं हरियर मड़वा माते हे .......

                     रमेश कुमार सोनी के अउ पूरा दुनिया के पहिली छत्तीसगढ़ी ताँका संगरह-हरियर मड़वा ल पढ़त ले मैं भाव विभोर हो गेंव पूरा पढेच्च के उठेंव काबर कि ए संग्रह हर छत्तीसगढ़ी के घलो पहिली संग्रह होथे | छत्तीसगढ़ी साहित्य ल पोट॒ठ करे बर जम्मो संगवारी के संगे – संग भाई रमेश कुमार सोनी ल भी गाड़ा – गाड़ा बधाई देवथों |

                   हमर बसना हर जापानी विधा के साहित्य रचे मं जम्मो ले आघु हवय जइसे छत्तीसगढ़ के पहिली हिंदी हाइकु संग्रह रमेश कुमार सोनी के ‘ रोली अक्षत २००४ ‘ हवय ; देवेन्द्र नारायण दास जी के भारत भर में हिंदी के दूसरा  सेदोका संग्रह सुधियों की कंदील २०१३ , हिंदी के छत्तीसगढ़ में पहली  ताँका संग्रह – सहमी सी जिंदगी २०१४  होथे अउ हमर कतको संगवारी मन ए विधा ल लिखत अउ पढ़त हें , ए हिसाब से बसना हर जापानी विधा के साहित्यिक संस्कारधानी होथे | 

ताँका संगरह-हरियर मड़वा में दुनिया के कोनो भाखा में लिखे गए ताँका से भी ज्यादा ताँका , संघराय हवय एहर हमर छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िया के ताकत होथे | हिंदी के संगे – संग छत्तीसगढ़ी साहित्य ल भी ए विधा हर समृद्ध करथे | जापानी मूल के हिंदी साहित्य विधा ताँका मं [ ५,,,,, = ३१ ] कुल ५ पंक्ति में ३१ वर्ण होथे , पहिली एला दू झन मिलके लिखत रहिन फेर समय के साथ अब एकेच्च झन लिखथें | ताँका ल सबसे छोटे लघुगीत घलो कहे गे हे लेकिन एखर दुनो भाग में आपसी सम्बन्ध होना चाही, अउ यदि गेयता मिल जाथे तो एखर सुन्दरता ज्यादा बढ़ जाथे वइसे ताँका के जरुरी तत्व हे एखर काब्य सौन्दर्य | समय के साथ अब एखर विषय राजदरबार से निकल के प्रकृति , मानवीय मूल्य , समाज अउ अपन आस – पास के विषय के संवेदनात्मक अभिब्यक्ति के एक माध्यम बन गे हे |

                  हरियर मड़वा में छत्तीसगढ़ के चारों मुड़ा मं बगरे हमर पुरखा मन के सुरता , रीति – रिवाज , चिन्हारी , संस्कृति के सुन्दरता ल बखान करथें | हमर बिहाव हर एक तिहार कस होथे जेमा गाँव भर के लइका – सियान , पहुना होथें ; बिहाव के पात्र मन इहाँ ताँका में दिखथे – ढेंड़हा , लोकड़हिन संग बिहाव के गारी , अक्ति के पुतरा – पुतरी के बिहाव देखतेच्च बनथे–

घुचय नहीं / लोकड़हिन दाई / चिमट देथे / भउजी ल देखबो / हमर नवा संगी ||

झेल ढेंड़हा / दुलहा के नखरा / मुंदरी पाबे / बेंदरा कस नाच / तोरो दिन रहिस ||

                           छत्तीसगढ़ के तिहार के रंग जब बगरथे तौ कोनो सादा नइ राहंय चाहे तीजा – पोरा,छेरछेरा ,हरेली ,मातर , सकट पुन्नी , कातिक नहाना , बहुरा चउत होय या होरी ,देवारी , दसेरा के उछाह होय ;आवव ये तिहार ल ताँका संग मनावन –

गेड़ी मं रेंग /सावन के हरेली /चिखला माते / सना जाही चोला / 

              काजर के खोली हे ||

अगास दिया /देवारी ढील दिस / पुरखा बर / सुरता के अंजोर / गाँव भर बगरे ||

तीजा लुगरा / उपास ल टोरथे / मईके जाबो / जल्दी ले लहुटबे / 

            बिदा कराए आबे ||

पुस के पुन्नी / मांगय छेरछेरा / कोठी ले हेर / पुन्न के बेरी दाई / ददा मेंछरावथे ||

                      हमर चिन्हारी हे धान के कटोरा अउ इंहा के सब ले बढ़िया छत्तीसगढ़िया के स्थिति ल ए ताँका में देखन कईसे हमर जांगर गवां गे , कईसे हमन चुहके कुसियार होगेन , कर्जा – बोड़ी मं डूब गएन –

धान कटोरा / भुइंया चन्दन हे / सब्बो बढ़िया / डोंगरी के नरवा / 

                            मयारू के अँचरा ||

जम्मो रिता हे/टठिया ले ठेकवा/दू बित्ता पेट/सौ कोरी के भूख हे/

                        बिहनिया के संसो ||

सोनहा धान /दुलहिन लजाए /मुड़ी नवाए /लुअत बाजे चुरी /

                        हांसथें मोटियारी ||

                     छत्तीसगढ़ के खेल – गेड़ी , फुगड़ी , बिल्लस , के संग इहाँ के जेवर – गहना अउ मनोरंजन में मेला – मड़ई , सुआ नाच , पंथी , करमा , ददरिया  .... के संग ताँका के सुन्दरता ल देखव –

दाई सिंगारे / नांगमोरी ,पंइरी / पुन्नी के चंदा / बनुरिया , मुंदरी /

                              हरियर अँचरा ||

तोर रेंगना /करमा – ददरिया /आनी – बानी के /मड़ई – मेला हो गे /

                            मोहरी सुनावथे ||

                   हमर सुख – दुःख अउ खाई – खजानी [ ठेठरी – खुरमी , खाजा – पपची , दुधफरा , चिला – मुठिया , बासी , गुलगुला ] के संग ताँका ह बने गुरतुर बन गे हे , आवव हमू मन नेवता झोंकन –

सुख के छानी /नई चुचवावए / दुःख फ़ोरथे / चारों मुड़ा ओखरे / 

                                 अगोर बिहनिया ||

ख़ुशी के मुड़ी/ दुःख के बड़े पूंछी /संघरा कहाँ/दू दिन तोर संगी /

                             दू दिन मोर पारा ||

 

                  इहाँ के रिश्ता – नता गाँव भर गोहार पारथें अउ जीयत – जागत रहिथे ; ननद – भउजी , काकी – मऊसी , भांचा – ममा , देरानी – जेठानी के किस्सा ह नई टूटय | ए सब ले  ऊपर दोस्ती के रिश्ता ह इहाँ कतको नाम ले जाने जाथे जइसे – मितान , जोही , जहूँरिया, गियाँ , जंवारा ,संगी – संगवारी अउ गजामूंग | अइसने सम्बन्ध ल ताँका ह इहाँ जीयात खड़े हवय ; एमा श्रृंगार के संग समर्पण अउ निभाय के परंपरा हावय -

गोदना वाली/ गोद ओखर नांव / मोर हिरदे / सात जन्म राहय / 

                             कल कोन देखे हे ||

जुआँ बीनय/ननंद के भउजी /किस्सा सुना के/भांवर ल पारही /

                          नोनी के सिक्छा पूरा ||

मोर गाँव में /चारों मुड़ा हितवा /सब्बे बघवा /दुःख डेर्रा जाथे ,मैं /

                           नोनी गाँव भर के ||

                 ए संग्रह के सब ले पोट॒ठ भाग एखर प्रकृति वर्णन , श्रृंगार – प्रेम  अउ हमर चिन्हारी , परंपरा ल सुरता रखे के संगे – संग नवा ज़माना के खराबी ले बाँचे बर हमन ला चेतात हे –

घाम मं पानी/कनिहा मटकात/भाग जाथे जी/कुआँ मं बांधे रख /

                                    पीछू – पीछू भगाथे ||

झन नगांव / दुसर के पसीना / कहाँ ले जाबे / इहेंच भोगना हे / 

                                    कोन रद्दा रेंगबे ||

मुड़ी गड़ाथें / लईका का सियान /मोबाईल में /खेत – खार परिया / 

                                 नवा सबके बुता ||

बेमारी होथे/दारू झन पी राजा/किरिया तोला/जवानी लेसा जाही/ 

                                   लाहो झन ले बाबू ||

                  वर्तमान के प्रति ए ताँका के जरिए सोनी जी ल संसो हे , पीरा हे अउ मया के संग सीख देवत हें अइसने होके अपन साहित्यकार होए के जिम्मेदारी ल निभाए हें | मोला पूरा भरोसा हे कि ए संग्रह जम्मो संगवारी मन ला पसंद आही , नवा लिखवईया मन ला रद्दा देखाही –

चूल्हा के राख / मरघट के राख / मितान होथे /एक भूख जीयाथे / 

                                दुसर मिटा देथे ||

सब्बो ओखरे /मनखे हे पहुना/किराया खोली /सुख – दुःख इहेंच/

                             नंगरा आना – जाना ||

गाँव के गुड़ी /पंडवानी सुनथें/ कथरी ओढ़े /हव कहय रागी / 

                              खोंचे टेड़गा चोंगी ||

हमर भाखा / अब्बड़ गुरतुर / लिख के पढ़ /कहिनी घलो सुन /

                             इही भाखा मं सोच ||

 मोर शुभकामनाएं ; जय जोहार |

 

                          पुरुषोत्तम दीवान ‘ छत्तीसगढ़िया ‘ , बसना


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