समीक्षा - हिंदी हाइकु, ताँका, सेदोका की विकास यात्रा , एक परिशीलन - डॉ सुधा गुप्ता - मेरठ

हिन्दी हाइकु ताँका , सेदोका की विकास यात्रा एक परिशीलन हाइकुकार -  डॉक्टर सुधा गुप्ता संयोजक - रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
अयन प्रकाशन - महरौली , नई दिल्ली -  2017
पृष्ठ 232, मूल्य = 500रु.
ISBN NO.- 978-81-7408-638-9
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 रमेश कुमार सोनी -  बसना , छत्तीसगढ़ जापानी विधा की रचनाओं का ऐतिहासिक शिलालेख  
                          डॉक्टर सुधा गुप्ता जी द्वारा रचित उक्त शोध ग्रंथ को  पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, यह पुस्तक मुझे रामेश्वर काम्बोज हिमांशु जी  के निर्देश पर प्रकाशन से प्राप्त हुई-धन्यवाद । 
                      इस अद्भुत शोध ग्रंथ में 1995 से लेकर अब तक की जापानी विधा के - हाइकु ,ताँका , सेदोका की भूमिकाएँ ,  समीक्षा, आलेख तथा उनकी पसंद की रचनाएँ  समाहित है जो आपकी रचना संसार में संवेदनाओं  के सूक्ष्म अवलोकनों का जीवित संसार है।  
                      इस संग्रह के द्वारा मुझे हाइकु के विकास यात्रा की सम्पूर्ण जानकारी मिली , यह  नए पाठकों तथा शोधार्थियों के लिए भी एक अनमोल साहित्यिक धरोहर है। इसे सभी हाइकु लेखकों को अनिवार्यतः पढ़ना चाहिए । बार - बार पढ़ने  का आमंत्रण देते इस पुस्तक को पढ़ते हुए ऐसे लगा जैसे में स्वयं उन पुस्तकों को पढ़ रहा  हूँ जिनकी इसमें समीक्षा , भूमिका , आलेख प्रकाशित हुई है। डॉक्टर सुधा गुप्ता जी की अपनी यह विशेषता है कि वे अपने शब्दों को बहकने  नहीं देती , आश्चर्य होता है की इतने लम्बे वक्त पर लेखन  के दौरान वाक्यों  का कोई दोहराव नहीं है  , वरना एक लेखक के साथ ऐसा  सम्भव हो सकता है। एक साथ इतने सारे जापानी विधा  के हस्ताक्षरों को पढ़ना  एक अद्भुत रोमांच रहा तथा उत्सुकता बनाए रखा ।

                       डॉक्टर सुधा गुप्ता जी का हाइकु के लिए समर्पण  इस ग्रंथ के द्वारा  प्रकट होता है कि वे बड़ी उदारता से नव लेखकों को प्रोत्साहित करने उनकी कृतियों को पूरा आशीर्वाद प्रदान  करती रही हैं । इसमें मेरे पहले हाइकु संग्रह - ' रोली अक्षत ' का भी उल्लेख है इसके अलावा इसमें दिए गए कुछ पुस्तकों को मैंने पढ़ा भी है। आपने पूर्ण सौम्यता से समीक्षा में सभी को मातृवत निर्देश दिया है यहाँ उनके शब्दों की शालीनता स्पष्ट रूप से परिलक्षित हुई है। शब्दों का ऐसा अप्रतिम सौन्दर्य तथा अनुशासन युक्त संतुलन सदियों में कभी कभार ही मिल पाता है।  
                   इस विकास यात्रा को पाठकों  तक लाने का श्रेय डॉ सुधा जी ने रामेश्वर काम्बोज हिमांशु जी को दिया है जो सर्वथा उपयुक्त  है , वाकई हाइकु की ऐसी निःस्वार्थ सेवा का एक दूसरा नाम को आपने चरितार्थ किया है। हिन्दी हाइकु एवं त्रिवेणी ब्लॉग के जरिए सम्पूर्ण विश्व को दिशा देते हुए नव लेखकों को प्रोत्साहित करना आसान कार्य नहीं है। बिखरे हुए ग्रंथों  को समेटना , सम्पादित करना , प्रकाशित करना यह आपके श्रम की पराकाष्ठा का एक नायाब नमूना है ;  सबसे बड़ी बात यह है की इस ग्रंथ में संपादक का अपना कोई पृष्ठ  नहीं है । इसमें आप द्वय के योगदान एवं परिश्रम को नमन इस ग्रंथ को कोई हाइकुकार पढ़े बिना सर्वथा अधूरा ही रहेगा ऐसा मेरा मानना है । एक अच्छे ग्रंथ को पाठकों तक लाने के लिए बधाई एवं साधुवाद स्वीकारिए ।
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रमेश कुमार सोनी , बसना  
26.10.2017 

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