समीक्षा - विज्ञान कथाएँ




विज्ञान की रोचक विषयों पर शोधपरक कथाएँ -        

                            विज्ञान कथाएँ डॉ. अर्पिता अग्रवाल जी की प्रकाशित और अप्रकाशित विज्ञान रचनाओं का एक सुन्दर बोधप्रद संग्रह है जो सरल , सहज भाषा में आम जनों की समझ को ध्यान में रखकर लिखी गयी है ; इसमें पूरे वक्त वात्सल्य रस का प्रवाह बना रहता है | विज्ञान के ब्याख्याता होने के कारण मुझे प्रथम दृष्टया यह एक सामान्य सी पुस्तक लगी जो बच्चों के लिए है लेकिन जैसे – जैसे इसे मैं पढ़ते गया ;  मैं बच्चा होता गया क्योंकि मुझे ऐसा लगने लगा कि अरे इसे तो हमने पढ़ा ही नहीं , अरे ये तो छूट गया था , ये जानकारी तो आज भी हमें नहीं पता !! यही बात इस पुस्तक को बड़ा बनाती है |
                           इस पुस्तक में कुल 40 विषयों में तथ्यपरक जानकारी विद्यार्थियों को ध्यान में रखकर रची गयी है जिसका आम जिंदगी से सीधा सम्बन्ध है | सिलसिलेवार यदि इसे देखें तो राष्ट्रीय पक्षी विहार में डोडो पक्षी और कालवेरिया मेजर पौधे का संबंध , सी.एफ.सी. और ओजोन परत का संबंध ,जीवाणु लड़ेंगे अगला विश्वयुद्ध में आज के कोरोना महामारी से जोड़कर पढना ,ज़हरीला कार्बन मोनोआक्साइड , चमकीली मिठाई के हानिकारक राज़ ,धूम्रपान एक धीमी मौत , पश्मीना ऊन की गर्मी का राज़ , गामा - लाभकारी विकिरण , शोर के दुष्प्रभाव , प्लास्टिक विज्ञान का अभिशाप , आकाशीय उल्कापात , बर्ड फ्लू , बाँस , माचिस , दूध और ऑक्सीटोसिन , रमन प्रभाव , लाभकारी जीवाणु , ध्रुवों के मौसम , जुगनू का जलना , चंद्रा वेधशाला , ब्रह्मांड , ज्वालामुखी , जनसंख्या वृद्धि , हीरा – मोती , अंकुरित अनाज , प्रौद्योगिकी दिवस , पर्यावरण दिवस , खाद्य विषाक्तता , बिजली गिरना और तड़ित चालक का महत्व , सी.एन.जी.,एल.पी.जी. का सुगम उपयोग , डिटर्जेंट में एंजाइम का महत्व , बोनसाई , जूट . चन्द्रमा के रहस्य और विज्ञान के चार गल्प इस पुस्तक को सामान्य विज्ञान की प्रारंभिक जानकारी से परिपूर्ण बनाती है | यह कथानक शैली में विविध पात्रों के मध्य वार्ता को केंद्र में रखकर ज्यादा रोचक बनाती है |
                         आज ये सारे तथ्य गूगल पर आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं लेकिन जिस दौर में लिखी गयी यह लेखिका के तथ्यपरक ज्ञान और उसका विज्ञान को सरल भाषा में प्रस्तुत करने की एक जिद दिखाई देती है जो उनकी कड़ी मेहनत का परिणाम है | इससे मेरा जुड़ाव सीधा सा इसलिए है कि मुझे पर्यावरण सरंक्षण और विज्ञान के नवाचारों को यथासमय विविध पटलों पर छात्रों के माध्यम से एवं स्वयं भी मैंने प्रस्तुत किया है जैसे – विलुप्त होते वन्य जीव को पढ़ते हुए मुझे स्मरण हो आया जब हम लोग पक्षियों की प्रजाति , गाँव में पौधों की संख्या आज और पहले कितनी थी ? का सर्वे कर रहे थे तो पता चला कि इस अंचल में सफ़ेद उल्लू पाए जाते हैं जो और कहीं नहीं पाए जाते , देशी जामुन के पौधे खत्म होने लगे हैं | वृक्षों से बनी कागज़ के विकल्प के रूप में उतरी पोलीथिन अब ठोस अपशिष्ट निपटारे की सुरसा बन चुकी है , इसके सामने सारे समाधान बौने हो गए हैं  | मैंने अपनी संस्था को पोलीथिन मुक्त किया हुआ है और पुराने कपडे के थैलों का झोला बैंक चला रहा हूँ | बाँस पर मेरे निर्देशन में बना प्रोजेक्ट नेहरु साइंस सेंटर मुंबई में विशेष आकर्षण का केंद्र रहा और इसे पूरे भारतवर्ष में प्रथम स्थान मिला ; मुद्दा था – बाँस की भ्रूण हत्या | अंकुरित अनाज की छत्तीसगढ़ में भोजली बदने और गजामूंग बदने की एक परंपरा है जिससे वे दोनों जीवन भर के लिए मित्र हो जाते हैं और इसे आज भी निभाते हुए भी देखा जा सकता है |   
                       विद्याथियों के लिए यह विज्ञान को समझने की उत्तम पुस्तक है , विविध परीक्षाओं की तैयारी कर रहे परीक्षार्थियों के लिए भी यह एक अच्छी पुस्तक है | एक पठनीय और संग्रहणीय अच्छी पुस्तक के लिए डॉ. अर्पिता अग्रवाल जी को बधाई कि- आपने विज्ञान को सामान्यजन की अचरजों से जोड़ा और उसके वैज्ञानिक पहलू से जनजागृति फैलाई ; निश्चित रूप से यह लोक मान्यताओं पर विज्ञान की तर्कसम्मत व्याख्या की है | मेरी शुभकामनाएँ -  

बसना , दिनांक – 02.04.2020
                             रमेश कुमार सोनी , व्याख्याता
                          जे.पी.रोड , एच.पी.गैस के सामने – बसना
                    जिला – महासमुंद [ छत्तीसगढ़ ] पिन – 493554
                           संपर्क – 70493 55476    

विज्ञान कथाएँ - डॉ. अर्पिता अग्रवाल ,मेरठ
प्रकाशक – पर्यावरण शोध एवं शिक्षा संस्थान – मेरठ [उ.प्र.] 2016 
पृष्ठ –104, मूल्य-300रु. ISBN NO.–978-81-924906-6-4-9 

समीक्षक – रमेश कुमार सोनी , बसना [ छत्तीसगढ़ ]

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