विश्व पर्यावरण दिवस के हाइकु




विश्व पर्यावरण दिवस के हाइकु

प्रभू की कृति
अनूठी है प्रकृति
सदा झंकृति ||                              

प्रकृति लिखे
जंगल का कानून
सभी सहिष्णु ||

भूख भर खा
प्रकृति परी चीखे
उगाना सीखें ||

४ 
प्रकृति रूप
ऋतु वेश संवारें
जीवन न्यारे  ||

पेड़ तपी हैं
एक पैर में खड़े
जाने क्या मांगे ?


वट की लटें
धरा छूने निकले
बच्चों के झूले ||

पेड़ अकेले
मेघ , पक्षी, बुलाते
झूमने – गाने ||

जंगल घने
चुनौती देते खड़े
घुसो तो जानें ||

जंगल बोने
बरसों भोगी प्रकृति
पल में कटी ||

१०
भूख का रूप
हाथी हुआ आतंकी !!
हमने छेड़ा || 

११  
भूख मिटाने
शेर , गाँव में घुसे 
हम वन में ||

 १२  
मृग उछले
तृप्त शेर हँसता
पानी घाट में || 

१३  
वाह दुनिया
जंगल में घूमते
शेर बन के !!

१४
जंगल सहे
शिकार होने , दर्द
अजीब मर्द ||

१५
वन की भाषा
पशु – पक्षी बोलते
हम ही भूले ||

१६  
बोना तो खाना
प्रकृति ही सिखाती
भूखे न सोना ||

१७
वानर लूटे
प्रसाद , खाना तेरा
कौन सिखाया ?

 १८
घांस ना तुच्छ
आक्सीजोन का मूंछ
उगे ऐंठते ||  

१९
गाँव निगले
कांक्रीट अजगर
बने शहर ||

२०
वन निडर
दावानल जलाती
सब्र से उगी ||

रमेश कुमार सोनी , बसना ,छत्तीसगढ़ 
रचियता -  ' रोली अक्षत '
छत्तीसगढ़ का प्रथम एकल हिंदी हाइकु संग्रह 
वैभव प्रकाशन - रायपुर २००४  


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