विश्व पर्यावरण दिवस के हाइकु
१
प्रभू की कृति
अनूठी है प्रकृति
सदा झंकृति ||
२
प्रकृति लिखे
जंगल का कानून
सभी सहिष्णु ||
३
भूख भर खा
प्रकृति परी चीखे
उगाना सीखें ||
४
प्रकृति रूप
ऋतु वेश संवारें
जीवन न्यारे
||
५
पेड़ तपी हैं
एक पैर में खड़े
जाने क्या मांगे ?
६
वट की लटें
धरा छूने निकले
बच्चों के झूले ||
७
पेड़ अकेले
मेघ , पक्षी, बुलाते
झूमने – गाने ||
८
जंगल घने
चुनौती देते खड़े
घुसो तो जानें ||
९
जंगल बोने
बरसों भोगी प्रकृति
पल में कटी ||
१०
भूख का रूप
हाथी हुआ आतंकी !!
हमने छेड़ा ||
११
भूख मिटाने
शेर , गाँव में घुसे
हम वन में ||
१२
मृग उछले
तृप्त शेर हँसता
पानी घाट में ||
१३
वाह दुनिया
जंगल में घूमते
शेर बन के !!
१४
जंगल सहे
शिकार होने , दर्द
अजीब मर्द ||
१५
वन की भाषा
पशु – पक्षी बोलते
हम ही भूले ||
१६
बोना तो खाना
प्रकृति ही सिखाती
भूखे न सोना ||
१७
वानर लूटे
प्रसाद , खाना तेरा
कौन सिखाया ?
१८
घांस ना तुच्छ
आक्सीजोन का मूंछ
उगे ऐंठते ||
१९
गाँव निगले
कांक्रीट अजगर
बने शहर ||
२०
वन निडर
दावानल जलाती
सब्र से उगी ||
रमेश कुमार सोनी , बसना ,छत्तीसगढ़
रचियता - ' रोली अक्षत '
छत्तीसगढ़ का प्रथम एकल हिंदी हाइकु संग्रह
वैभव प्रकाशन - रायपुर २००४
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