आखिरी उड़ान
उड़ गए हैं सभी पँख उगते ही
सूने घोसलें में ताक रही है-
दाना लिए,आज फिर एक माँ;
जाने किधर गए होंगे?
जिंदा भी हैं या कोई निगल गया?
गौरैया हर बार उसे खोजकर
उदास लौट आती है।
धोखा खाना गौरैया की नियति बन गई है-
इस बार वह अपने बच्चों को ढूँढने
कॉन्क्रीट के जंगलों से भी लौट आयी
किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा
दुनिया यूँ ही चल रही है।
गौरैया के पास
भोजन-पानी खरीदने को पैसे नहीं है!
उधारी उसे कौन देगा?
गिरवी में वह क्या रखेगी?
उसे चोरी-डकैती आती नहीं
इन दिनों भोर और साँझ का कलरव
ढूँढ रहा हूँ मैं।
मेरे पौधों के बड़े होने तक
चिड़िया लौट गई थी जाने कहाँ,
काश मैं अपने अतिथियों को
कुछ दिन और रोक पाता
मैं उनके लौटने की प्रतीक्षा में
कुछ और पौधे लगा रहा हूँ….।
…..
रमेश कुमार सोनी
रायपुर, छत्तीसगढ़
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