मन की उड़ान

मन की उड़ान का लेखा-जोखा

      मन के विविध विचारों को केन्द्रित करते हुए शब्द देना एक बड़ी तपस्या की माँग करती है जिसे आपने इस संग्रह में बख़ूबी किया है। मन जो अति चंचल है जिसकी गति नापी नहीं जा सकती और जो विस्तृत एवं अथाह है को हाइकु जैसी सूक्ष्म विधा में रचने के लिए एक वरिष्ठ हाइकुकार की सिद्धहस्त कलम आवश्यक है। यह आपका तृतीय हाइकु संग्रह है जिसमें आपने मन विषय पर केन्द्रित विविध भावों को 1260 हाइकु में पिरोया है। यद्यपि इससे पूर्व भी मन पर लिखा जा चुका है लेकिन यह उनसे पूर्णतया भिन्न है।   

         हिंदी हाइकु का फलक अब इतना विस्तृत हो चुका है कि अब ये किसी परिचय की मोहताज नहीं है। इसका वैश्विक प्रसार भी इसके बेहतर भविष्य की ओर संकेत करता है। सत्रह वर्णों में लिखी जाने वाली यह सूक्ष्म रचना अपने आपमें पूर्ण कविता होती है, तीन पंक्तियों में यह किसी दृश्य को पाठकों के समक्ष पूर्णतया खोलती है। हाइकु अपने प्रारंभ से ही प्रकृति को मुख्य विषय मानती है तथापि इन दिनों इसे कई विषयों पर लिखा जा रहा है। मेरे अनुसार इससे लोकजीवन की विडम्बनाओं को बेहतर तरीके से उकेरा जा सकता है तभी यह साहित्य आम पाठकों में लोकप्रिय होगा।

    इन दिनों इस पर कई पत्र-पत्रिकाओं ने अपने विशेषांक निकाले हैं तथा हाइकु को अपने सामान्य अंक में भी स्थान मिल रहा है। हाइकु संग्रह अब स्थानीय बोली-भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी है, इस पर शोध कार्य भी हुए हैं और इसके विविध भाषाओं में अनुवाद भी हो रहे हैं। प्रायः सभी हाइकुकार अपनी-अपनी कोशिशों से इसे समृद्ध बनाने में गिलहरी जैसा योगदान दे रहे हैं जो प्रशंसनीय है इन सबके केंद्र में है-‘हिंदी हाइकु का ब्लॉग’।    

        प्रत्येक हाइकुकार अपने अनुभव संसार से गुज़रते हुए जिन पंक्तियों को शब्दांकित करता है उसमें उसके परिवेश के दृश्य सशक्त रुप से परिलक्षित होते हैं। यही पंक्तियाँ आपकी संवेदनशीलता को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करती है। प्रकृति  के सौन्दर्य का वर्णन इन हाइकु में अपने परिवेश से लेकर आसमान की ऊँचाई तक फैला हुआ है जिसमें आपके मन की उड़ान प्रतिबिंबित हुई है। भोर,साँझ,ऋतुएँ,चाँद-तारे सभी का सुन्दर चित्रांकन इन हाइकु को विशिष्ट बना रहा है। चन्दा के गाँव में चाँदनी का मुसकाना,बर्फ़ और रश्मियों का झिंगोला बुनना,पनिहारी के घूँघट पर भोर का लटकना और कूकी की कूक हमें वर्णित दृश्यों से जोड़ने में सफल रही है।    

पनिहारी के /घूँघटपट पर /लटकी भोर। 1143

बर्फ़ से सटी /बुन रही रश्मियाँ /रंगी झिंगोला। 1140

बिजुरी-पग /जो बजी पैंजनिया /नाचीं बूँदियाँ। 1152

कुंज कूकते /कोकिल किसलय /पुष्प फाग में। 1165

कूकी की कूक /दिशा-दिशा मथती /लगे क्यों हुक। 1186

चन्दा के गाँव /चाँदनी मुसकाए /तारों की छाँव। 1198

   यादें हमारी अनमोल पूँजी है जो न तो चुरायी जा सकती और ना ही खर्च की जा सकती है यह तो सिर्फ बाँटी जाती है। जब ये अच्छी हो तो मन हिरणी सी कुलाँचे भरती है और जब दुःख देने वाली हों तो हमें सबसे अकेले कर देती हैं। यह ख़ुशी और ग़म का एक ऐसा सकोरा है जिस पर मन की प्यासी चिड़िया हर फ़ुर्सत में आकर पानी पी जाती है और इस मन की बातें करते हुए हमें, उससे अनायास ही जोड़ देती है तब हम  किसी के पूछने पर कभी हँसकर टाल देते हैं तो कभी कुछ नहीं बोलकर ख़ामोश हो जाते हैं। स्मृतियाँ हमें कभी अकेले नहीं छोड़तीं यद्यपि इसका कोई भौतिक वजूद नहीं फिर भी यह मन के रथ पर सवार होकर वैश्विक दुनिया की यात्रा कर लेती है। अपनी ऐसी ही दृश्यानुभूत सुधियों को आपने सशक्त शब्दों के साथ हमारे साथ साझा किया है।    

लाँघे न जाएँ /यादों के गलियारे /अटके पाँव। 8

सुधि के गाँव /रुके मन की नाव /स्मृति के घाट। 17

यादों के घन /नयन चेरापूंजी /मन निर्जल। 19

उमर मरी /सुधियों की केतकी /हरी की हरी। 45

यादें खंगाली /खुशियों के घर में /छाई कंगाली। 85

    प्रेम का भाव मन में विशिष्ट होता है इसी के सहारे ये दुनिया चलती है। प्रेम जहाँ है वहाँ सर्वत्र शांति और विकास है लेकिन इसके दुसरे हिस्से का प्रभाव बड़ा भारी होता है जिसे वियोग कहते हैं। वैसे प्रेम की परंपरा त्याग और भक्ति के साथ जुड़कर यहाँ पवित्र हो जाती है वहीं पाश्चात्य संस्कृति में यह भोग पर समाप्त होती  है। आप लिखती हैं-मुहब्बत में डूबना इसका पहला शगुन है तथा प्रेम के अलाव में हथेलियाँ जलती है ये विरोधाभास ही प्रेम है। प्रेम में सब कुछ खोकर जीतने का सौभाग्य किसी-किसी को ही नसीब होता है। प्रेम के ऐसे ही यहाँ पर विविध भाव इन्द्रधनुषी रंगों की तरह बिखरे हुए हैं आइए इसका आनंद लें-

प्रीत की पीर /नैनों की देहरी पे /ख़्वाबों की भीड़। 210

प्रेम तुम्हारा /स्वाती बूँद प्रिय में /तृषित पिहू। 271

मिटी न पीर /इश्क़ तेरा ले डूबा /मन फ़कीर। 283

    रिश्तों का कोमल धागा हमें पिरोकर घर बनाता है जो हर किसी भी बात-बेबात पर नखरों के साथ टूट जाता है फिर यह जुड़े तो इसमें गाँठ पड़ जाती है। रिश्तों का आधार यहाँ भी त्याग एवं परहित पर टिका होता है जो आजकल अपेक्षा से उपजे उपेक्षा पर जाकर समाप्त हो जाता है। रिश्तों में माँ की महत्ता के साथ पिता एवं बेटी की भूमिका को बड़े ही सुन्दर तरीके से आपने यहाँ उकेरा है साथ की इसमें उग आई विद्रूपताओं को भी आपने स्थान दिया है। अब न्यूक्लियर फैमिली ने रिश्तों पर ग्रहण लगाया हुआ है जिससे कुछ रिश्ते विलुप्तता की सूची में हैं। पड़ोसी रिश्तों की अहमियत अब समाप्ति की ओर है जबकि बाज़ार का टैग है-विश्वबंधुत्व। ऐसे ही रिश्तों को सँभालने की गुहार लगाते हुए आपके हाइकु समाज को आईना दिखाने प्रस्तुत हुए हैं-

रिश्तों से युद्ध /हारो तभी पाओगे /निश्चित जीत। 320

चटकें रिश्ते /सिसकियाँ टहलें /कण्ठ की गली। 328

अम्मा ही जाने /रिश्तों की बाँसुरी में /फूंकना साँसे। 403

ऊबता नहीं /कोल्हू के बैल जैसा /जुते हैं पिता। 412

बेटी का रिश्ता /पीहर की मिट्टी में /गड़ी है नाल। 451

     स्त्रियों के सशक्त रुप को आपने  इन हाइकु में उकेरा है। वैश्विक बाज़ार इसे अपना ब्राण्ड बनाकर तमाम हाथों से इनकी भावनाओं से खिलवाड़ कर रहा है। स्त्रियों के मन की सिर्फ वही सुनती है जबकि उस पर सारे अपराध केंद्रित होते हैं ठीक ऐसे ही समय में आपने स्त्रियों को उसके परिश्रम से रेखांकित किया है। नारी का मन ब्रेल लिपि सा है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है जैसे अनेकों बिम्ब लिए हाइकु इस संग्रह में विराजे हुए हैं। 

पहाड़ी नार /कदमों से नापती /सीना पहाड़। 498

पढ़ी ना जाए /बिना छुअन नारी /ब्रेल लिपि सी। 832

     इस दुनिया में वक़्त के साथ ख़ुशी और दुःख का अपना-अपना दौर है जिसकी अनेकों गाथाएँ हर किसी की ज़ेब से उछलते ही रहती है। आँसू की कोई ज़बान नहीं फिर भी वह अपने दर्द बयाँ करती है,साझी दीवारों की जुदा पीड़ाएँ,और इच्छाओं का मायाजाल जैसे पुष्ट भाव वाले हाइकु सुन्दर हैं-

खोला दिल ने /ग़मों का पुलिन्दा तो /खुद ही रोया। 528

साझी दीवारें /भले हो, घरों की हैं /जुदा पीड़ाएँ। 561

छोड़ो ये रोग /मेरे बारे में क्या-क्या /कहेंगे लोग। 678

इच्छाएँ भारी /जीवन के चौसर/साँसों की बाज़ी। 967

         आपके इस संग्रह के हाइकु में प्रायः तुकांत का सुंदर पालन किया है; काव्य कौशल सर्वत्र बिखरा हुआ है जिससे हाइकु प्रभावशाली हैं। गहन इन्द्रियबोध एवं आनुभूतिक विशिष्टता से सृजनात्मकता के रंग सर्वत्र बिखरे हुए हैं। ये हाइकु  यद्यपि कई अलंकारों से सुसज्जित हैं जिनमें से सभी का उल्लेख यहाँ संभव नहीं है फिर भी इन अलंकारों के प्रयोग का उल्लेख मुझे आवश्यक लगता है। पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार की अधिकता इस संग्रह के हाइकु में स्पष्ट रुप से दिखती है। ऐसे ही कुछ हाइकु देखिएगा-

स्मृतियाँ झरे/ रह-रह मन के/ दर्द हों हरे। 97

रिश्तों में तंज/ बूँद-बूँद आँसू में/ डूबें वचन। 305

अम्मा पहेली/ हँस-हँस के पीती/ पीड़ा अकेली। 402

 अनुप्रास अलंकारों से सुसज्जित इन हाइकु की छटा निराली है। वर्णों की आवृत्ति से इनके भाव और बिम्ब भी पुष्ट हैं-

ज़मीं न ज़र/ बंजारन ज़िन्दगी/ आँसू से तर। 428  

दूर देश से/ जोड़े जीवन-नाते/ उलझे खाते। 556

कुंज कूकते/ कोकिल किसलय/ पुष्प फाग में। 1165

इस हाइकु में दोनों अलंकार का अच्छा प्रयोग हुआ है-

कूकी की कूक/ दिशा-दिशा मथती/ लगे क्यों हूक। 1186

      इन हाइकु के भाव हमें आध्यात्मिक यात्रा पर लेकर चलते हैं चार दिन के इस जीवन का अंतिम सत्य मृत्यु है लेकिन इनके बीच पुण्य के साथ पुनर्जन्म की अवधारणा ने सबको संयमित जीवन की अग्रसर रखा है  यह सर्वमान्य सत्य है की हमें वर्तमान के साथ जीना चाहिए क्योंकि सबका अस्तित्व महज़ मुट्ठी भर राख से ज्यादा कुछ नहीं है मैं की और सब कुछ मेरा को समेट लेने से बचने का सन्देश देते हुए ये हाइकु सुन्दर हैं-  

न 'मैं' ही रहे /न 'हम' बन, पाए / धुँधले साए। 548

बन्दे की ज़ात /थैली भर अस्थियाँ /मुट्ठी भर राख। 1123

उलझा रहा /काया के गणित में /मन मनका। 646 

     आपने यहाँ एक नया प्रयोग इस हाइकु में किया है जिसकी साहित्यिक स्वीकृति की उम्मीद कम है इससे बचा जा सकता था। हाइकु की अधिक संख्या का इन दिनों चलन सा हो गया है जिसकी ज़द में आप भी आ गयीं। इसकी अधिक संख्या होने से कई अच्छे हाइकु के साथ न्याय नहीं हो पाता। विविध भावों के हाइकु यहाँ यत्र-तत्र बिखरे हैं इससे पाठक अपने आपको उनके साथ चलने में असहज महसूस करता है साथ ही समीक्षक के लिए भी यह एक चुनौती होती है।

दर्द तो सिर्फ़ /जीवन का १ रिश्ता /ज़िन्दगी नहीं। 805

     मन की संवेदनशीलता को हाइकु जैसी सूक्ष्म विधा में पिरोना बिल्कुल ऐसा है जैसे मन को किसी एक बिंदु पर एकाग्र कर लेना। आपने एक अच्छे विषय पर अपने हाइकु रचे हैं क्योंकि मन का पिटारा कभी खाली नहीं होता। भावों की सौष्ठता, के साथ शिल्प की सुन्दरता से इस अंक के हाइकु कला पक्ष को रौशनी मिली है। इस संग्रहणीय अंक के लिए मेरी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।

हरी उम्मीदें/ लिए बैठे परिंदे/ नंगे पेड़ों पे। 1257

रमेश कुमार सोनी

रायपुर,छत्तीसगढ़

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मन की उड़ान-हाइकु संग्रह, कृष्णा वर्मा 

अयन प्रकाशन-दिल्ली, 2021,मूल्य-300, पृष्ठ-136

ISBN: 978-93-91378-95-0, भूमिका-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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