समीक्षा-गद्य तरंग


गद्य तरंग:सतत साहित्यिक सेवा,संप्रेषणीयता के सौन्दर्य की झलक

            किसी वरिष्ठ साहित्यकार की साहित्यिक यात्रा के साथ चलते हुए उनके अनुभूत पलों को आज की स्थिति में मूल्याङ्कन करना एक दुष्कर कार्य है तथापि उन बेशकीमती पलों को संजोने का कार्य डॉ.कविता भट्ट ‘शैलपुत्रीने बखूबी किया है. ‘हिमांशुजी एक ऐसे वृहत अनुभवी ,साहित्यिक समृद्ध व्यक्तित्व हैं जिन्होंने अपनी इस यात्रा में अपने साथी रचनाधर्मियों का खुले मन से स्वागत किया ,उनका मार्गदर्शन किया,और उन्हें अपनी साहित्यिक यात्रा का सहभागी भी बनाया. साहित्यिक ईर्ष्या के इस विकट दौर में किसी अन्य की कृति को पढ़ना तो दूर उसे मात्र एक कूड़ा समझकर कचरे में फेंक देने की प्रवृति है ; ऐसे दौर में केन्द्रीय विद्यालय से प्राचार्य के पद से सेवानिवृत्त एवं शिक्षकीय अनुभवों से लबरेज़ मानवीय मूल्यों के सदैव से परिपोषक रहे काम्बोज जी एक कुशल शब्दशिल्पी हैं जिन्होंने न केवल साहित्य की विविध विधाओं को पोषित किया बल्कि उनकी  ‘इ’ दुनिया को भी बखूबी संवारा है. इस संग्रह में हम आपकी इन्हीं यात्राओं के विविध एवं महत्वपूर्ण पड़ावों की चर्चा करेंगे.

              किसी की भी रचनाधर्मिता के विशद कार्यों को चंद पंक्तियों में समेट  देना उनके प्रति घोर अन्याय होगा इसलिए मैं उनके रचनाकर्म के साथ धीमे-धीमे चलना चाहूँगा.यूँ तो हिंदी साहित्याकाश में समालोचना के वृहत मार्गदर्शी ग्रंथों की कमी है साथ ही इस विधा की नजरों से किसी की रचनाशीलता को आँकना एक बड़ी चुनौती सदैव से रही है. इस संग्रह में 30 साहित्यकारों के द्वारा विविध समय पर किए गए ‘हिमांशुजी की रचनाधर्मिता की समीक्षाओं को संकलित किया गया है ;इन सबसे होकर गुजरने में मुझे अपार हर्षानुभूति हुई और उनकी संवेदनाओं की सुन्दरता को निकट से निहारने का सौभाग्य मिला.इस कृति को मैं , विविध हिस्सों में उनकी विधाओं के आधार पर रेखांकित करने का प्रयास करूँगा-

              व्यंग्य एक सर्वाधिक प्रचलित एवं लोकप्रिय विधा है जिसके मंचीय श्रोता अधिक हैं पाठकों के मामले में भी यह अन्य विधाओं से बाजी मार ले गया है.‘हिमांशु’ जी ने अपने आपको चलताऊ व्यंग्य से दूर रखते हुए अस्वीकृति का दंश स्वीकारा है, शीघ्र मार्केट पाने की लालसा से दूरी बनाए रखी है.आपकी व्यंग्यात्मक लेखन की शैलियों पर कई विद्वान समीक्षकों ने अपनी समालोचना में यह स्वीकारा है कि-सामाजिक विकृतियों पर हँसना ,व्यंग्य लिखना आसान है लेकिन उनकी इन्हीं समस्याओं का इसके साथ ही समाधान प्रस्तुत न करना और प्रश्न खड़े करके खामोश हो जाना आपकी फितरत में कभी नहीं रहा.एक समर्थ व्यंग्यकार के रूप में आपकी कृति-‘खूँटी पर टंगी आत्मा व्यंग्य साहित्य की एक अनमोल धरोहर है. आपने अपने आपको फूहड़ हास्य  से दूर रखते हुए विविध विसंगतियों को वैचारिक धरातल की कसौटी पर कसा है एवं इसे भाषायी चमत्कारों  से पृथक रखा है. आपके व्यंग्य के इस नए तेवर को डॉ.शंकर पुणताम्बेकर,मनमोहन गुप्ता मोनी,डॉ.राजा राम जैन,जवाहर चौधरी,सुभाष नीरव,अनिता मंडा एवं डॉ.मंजुला गिरीश उपाध्याय ने रेखांकित किया है. मेरी दृष्टि में एक अच्छा व्यंग्यकार वही है जो किसी समस्या को पहचानने और बिना किसी को आहत किए हुए सुघड़ता से इसका समाधान प्रस्तुत करने का साहस रखता हो. बतौर शिक्षक आपमें जीवन की अच्छाइयों को पहचानने और इसे संवर्धित करने की अपार क्षमता है आपके साथ यह  व्यंग्य विधा बहकने से बची रही है.   

          एक लघुकथाकार के रूप में आपने हिंदी गद्य साहित्य को निखारा है,कहानी की लम्बाई से उबे पाठकों को सारगर्भित एवं उद्देश्यपूर्ण लेखन से समृद्ध किया है साथ ही लघुकथा को चुटकुलों से बचाए रखने का प्रशंसनीय कार्य किया है. विविध पत्र-पत्रिकाओं ने लघुकथा को, नवीन शिखर का स्पर्श करते हुए देखकर अपने-अपने विशेषांक भी निकाले हैं. कम समय में पाठकों को यह अधिक सामाजिक विषयों पर जागृत कर रही है.लघुकथा को मर्मस्पर्शी बनाने के लिए उसका उचित शीर्षक,पात्र की भाषा और उसकी मन:स्थिति के अनुसार गतिमान होनी चाहिए , भाषागत सौष्ठव और संप्रेषणीयता का सटीक वर्णन अनिवार्य है.अब यह एक स्वतंत्र विधा के रूप में विविध भाषाओं  में लिखी जाने लगी है. ‘असभ्य नगरआपकी 62 लघुकथाओं का सुन्दर बागीचा है जो सामाजिक विसंगतियों को उजागर करते हुए उनकी संवेदना और आपकी लेखकीय दायित्व बोध का एहसास कराता है.इसमें ‘काम्बोज’ जी ने पूरी जिम्मेदारी से लघुकथा के पैनेपन को निभाया है,कुछ लघुकथाओं का अन्य भाषाओँ में अनुदित हो जाना इसकी अपनी सफलता है तथा इसका दूसरा संस्करण निकलना भी स्वयं इसकी सफलता का गवाही देता है.

‘लघुकथा का वर्तमान परिदृश्य:लघुकथा समालोचना में समालोचना की विविध श्रेणियों का ( राजशेखर के अनुसार ) आपने यहाँ उल्लेख किया है- 1 किसी की अच्छी रचना भी अच्छी न लगना  2 सबकी अच्छी-बुरी सभी रचना अच्छी ही लगना 3  ईर्ष्यावश सभी की बुराई ही करना एवं 4 न्यायपूर्ण आलोचना करना. इस श्रमसाध्य साहित्यिक अवदान से हिंदी साहित्याकाश समृद्ध हुआ है.इसमें लघुकथाओं की विविध विशेषताओं ,विन्यास ,उपयोगिता,भविष्य,सर्जन पक्ष एवं इसकी लेखन सूक्ष्मता के साथ इसके विकास के राह की यह एक धरोहर है. इसमें लेखक का मानना है कि-लघुकथा मात्र शब्दजाल या किसी घटना का चित्रण मात्र नहीं अपितु स्वयं में परिपूर्ण नैतिक कथन है. यह कृति लघुकथा समालोचना का एक महत्वपूर्ण एतिहासिक दस्तावेज है.

         आपकी जापानी साहित्य की विधाओं को पोषित करने सम्बन्धी महत्वपूर्ण ग्रन्थ-‘हिंदी हाइकु आदि काव्य धारा-स्वरूप एवं सृजन खंड में मेरी समीक्षा को स्थान मिला है इस दृष्टि से मैं सौभाग्यशाली हूँ, वास्तव में मुझे कोरोना लॅाकडाउन के दौर में काम्बोज जी की पुस्तकों ने सहारा दिया जिसके द्वरा मैंने उनकी रचनाधार्मिता को सूक्ष्मता से महसूस करते हुए यह सब लिखा. किसी विदेशी विधा के इस शोध ग्रन्थ को मैंने विविध रचनाकारों का एनसाइक्लोपीडिया कहने में परहेज नहीं किया.यह कृति हाइकु,ताँका,सेदोका,चोका एवं हाइबन विधाओं की  एक परिपूर्ण मार्गदर्शिका है जो इन विधाओं के प्रति आपके समर्पण को अभिव्यक्त करती है.

        किसी रचनात्मक लेखन के लिए उर्वरा भूमि का निर्माण एक सकारात्मक एवं निष्पक्ष आलोचना के द्वारा ही संभव है इसी कड़ी में ‘काम्बोज जी ने कविताओं की समालोचना की कृति-‘सह-अनुभूति एवं काव्यशिल्प’ प्रस्तुत की जिसमें प्रसिद्ध 22 कवियों की कविताओं का आलोचनात्मक आलेख है.यह आपकी संवेदनाओं की उन कविताओं के साथ की गयी एक कठिन यात्रा है. इस संग्रह की मेरे द्वारा भी की गई समीक्षा को यहाँ स्थान मिलना मेरे लिए हर्ष का विषय है. इस संग्रह में मैंने लिखा है कि -सामाजिक सरोकारों के एक लम्बे दौर को समेटे इस संग्रह के द्वारा कोई भी कविता लेखन के मर्म को बेहतर समझ सकता है.

          लघुकथा सम्बन्धी एक योगराज प्रभाकर जी से की गई वार्ता के साथ आपकी सर्वाधिक पसंद की गई 15 लघुकथाओं पर विविध समीक्षकों के विचार/समालोचनाएँ इसमें सन्निहित हैं

1 उपचार-डॉ.सरस्वती माथुर.

2 ऊँचाई-सुरेश बाबू मिश्रा,डॉ.आशा पाण्डेय,रश्मि शर्मा,डॉ.अनीता राकेश एवं प्रियंका गुप्ता .

3 कमीज़- सुदर्शन रत्नाकर   4 खुशबू –(स्व.) निशांतर , डॉ.कुँवर दिनेश सिंह

5 गंगा स्नान-सत्या शर्मा ‘कीर्ति    6 दूसरा सरोवर-डॉ. शिवजी श्रीवास्तव

7 धर्मनिरपेक्ष-डॉ.कविता भट्ट,हरेराम समीप एवं डॉ.सुधा ओम ढींगरा

8 नवजन्मा- रणजीत टाडा,संतोष सुपेकर, अर्चना रॉय एवं बी.एल.आच्छा

9 फिसलन-हरिशंकर सक्सेना   10 भग्नमूर्ति -डॉ.राजेंद्र ‘साहिल

11 छोटे-बड़े सपने-डॉ.नितिन सेठी,डॉ.जाया नर्गिस एवं डॉ.सुधा गुप्ता

12 नई सीख- डॉ.सुधा गुप्ता   13 सुबह हो गई- रमेश गौतम

14 स्त्री-पुरुष- भावना सक्सेना एवं   15 गंगा स्नान-वीरेंदर ‘वीर मेहता

      इनमे से ज्यादातर समीक्षाएँ लघुकथा.कॉम में प्रकाशित हो चुकी हैं इस दृष्टि से इन लघुकथाओं के प्रचार-प्रसार में इस ब्लॉग का योगदान सराहनीय है.   

                 इस संग्रह में ‘काम्बोज जी के बाल भाषा व्याकरण को स्वराज सिंह जी ने रेखांकित किया है साथ ही आपकी 3 पुस्तकों -‘चखकर देखो’ , ‘फुलिया और मुनिया’ तथा  ‘रोचक बाल कथाएँ’ का प्रशंसनीय उल्लेख किया है. प्रियंका गुप्ता ने -एक दुनिया इनकी भी के अंतर्गत आपकी कई जीवनोपयोगी बाल कथाओं का उल्लेख करते हुए कहती हैं कि-ये कहानियाँ बच्चों तक अपनी जिंदगी के अनुभवों और ज्ञान को पहुँचाने का एक अच्छा माध्यम बनी हुई हैं.  

             अंतिम खंड में रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु जी के चार आलेख क्रमशः -1 भाषा एक प्रवाहमान नदी  2 कनुप्रिया-राधा की विह्वलता का दर्पण   3 शंकरदेव और उनकी कृष्ण-भक्ति  तथा  4 जल समाधि से पूर्व.  इन सभी में आपकी गद्य लेखन क्षमता का परिचय महसूस किया जा सकता है. इस संग्रह के प्रायः सभी खंड के नीचे उनका प्रकाशन विवरण दिया गया है. इन पुस्तकों के विवरण यथा-नाम,मूल्य,पृष्ठ ....आदि , यदि दिए गए होते तो सम्बंधित खंड के जिज्ञासु पाठक उस पुस्तक को उस स्थान/प्रकाशन से मंगाकर इसका लाभ ले पाते,इससे इस संग्रह की उपयोगिता और बढ़ जाती.  

           ‘गद्य तरंग’ में निश्चित रूप से ‘काम्बोज जी’ की तल्लीनता, संप्रेषणीयता ,अध्ययनशीलता एवं संवेदनाओं की सूक्ष्मताओं का अहसास स्वतः ही किया जा सकता है. आपकी सभी विधाओं में निपुणता अनुकरणीय है ,हमें यह संग्रह यह भी दर्शाता है की जीवन में इन सभी विधाओं ( लघुकथा ,आलेख,व्यंग्य,बाल साहित्य,भाषा का व्याकरण,जापनी साहित्यिक विधाओं ) को निभाने के लिए उचित समय पर अपनी उपलब्धता कैसे सुनिश्चित करना चाहिए एवं उन विधाओं के नियमों की जानकारी रखते हुए उनका सतत पाबंद रहना कैसे होता है. एक शिक्षक/प्रशासक  के रूप आपके जीवन की अच्छे-बुरे अनुभवों का लाभ हिंदी  साहित्य की प्रायः सभी विधाओं को समान रूप से आपने दिया है आपका यह योगदान हिंदी साहित्य के लिए अब एक अमूल्य धरोहर है. मुझे आशा है कि-यह शोध संग्रह शोधार्थियों/पाठकों एवं नवलेखकों का मार्ग प्रशस्त करेगी.

मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ .

रमेश कुमार सोनी

रायपुर,छत्तीसगढ़ 492099

Mo.-7049355476/9424220209

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 गद्य तरंग-अनुशीलन , संपादक -डॉ.कविता भट्ट

(रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशुके गद्य का अनुशीलन)

प्रकाशक- अयन प्रकाशन महरौली -दिल्ली 30 सन-2021

मूल्य-380/-Rs.    पृष्ठ-184    ISBN NO.-978-93-89999-58-7

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