जापानी साहित्य की हिंदी में प्रचलित विविध विधाओं की ख्याति अब देश की सीमाओं को लाँघ गया है इसलिए लाज़िमी हो गया था कि इन विधाओं पर कोई प्रमाणिक ग्रन्थ हिंदी पाठकों को उपलब्ध हो . इस ग्रन्थ में हाइकु पर विस्तृत जानकारियां विविध उपखंडों के अंतर्गत उपलब्ध है ; शेष विधाओं की भी विशेषताएं भी इसमें पर्याप्त रूप से उपलब्ध है . मेरे समक्ष डॉ.पूर्वा शर्मा जी – वड़ोदरा के शोध ग्रन्थ - हाइकु की अवधारणा और हिंदी हाइकु संसार को बाँचने का अवसर मिला जो आपने, अपने कुशल एवं विद्वान प्रो. डॉ.हसमुख परमार के मार्गदर्शन में साढ़े तीन वर्ष में वृहत अध्ययन से पूर्ण किया है . इसे पढ़ने मात्र से इसकी विहंगमता का अहसास हो जाता है . इस शोध संग्रह पर सरदार पटेल विश्वविद्यालय – गुजरात ने आपको डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की है . यह संग्रह हिंदी हाइकु के पुरोधाओं - डॉ.भगवत शरण अग्रवाल एवं डॉ.सुधा गुप्ता जी को सादर समर्पित है .
यह
संग्रह कुल – 05 उपखंडों में वर्णित है ; इन सबकी यह प्रमुख विशेषता यह है कि जो
भी मान्य सामग्री जिस पुस्तक से ली गयी है बाकायदा उसका उद्धरण इसमें दिया गया है .
यह ग्रन्थ सभी लेखकों के लिए एक मील का पत्थर होगा जो भविष्य की संभावनाओं के सभी
द्वार खोलेगा .
1 हाइकु की अवधारणा –
इस खंड में हाइकु शब्द का अर्थ , व्याप्त
विविध परिभाषाएँ , हाइकु काव्य की विशेषताएँ - आकारगत संक्षिप्तता ,अनुभूति काव्य
,सांकेतिकता ,जीवन के सत्य की अभिव्यक्ति , क्षण काव्य , अनकहे की महत्ता ,प्रकृति
चित्रण की प्रधानता ,सरलता एवं सहजता ,विरोधाभास , पूर्णता का अहसास ,ध्वन्यात्मकता
,अन्योक्ति , हाइकु के साथ प्रचलित अन्य शब्द – ओंजि ,किगो , किरेजी , चोका , ताँका ,रेंकु , रेंगा , रेंगे , सेदोका , सेनर्यू , हाइगा
, हाइबन तथा हिंदी के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओँ में हाइकु का स्वरुप के प्रचलित
एवं वास्तविक पक्ष का वर्णन है .
इस खंड में हाइकु को सबसे
छोटी कविता मानने के सम्बन्ध में कहा गया है कि – संस्कृत में एक वर्णीय छंद
प्राप्त है , हिंदी में 12 वर्णीय बलाका छंद और 16 वर्णीय दोला छंद पाया जाता है
अतः इसे मात्र जापान की सबसे छोटी कविता कहा जा सकता है विश्व की नहीं . इस खंड
में हाइकु लिखने के वर्णक्रम को समझाया
गया है जो कि प्रचलित अक्षर का खंडन करती है , हाइकु एक ध्वनि काव्य है वर्णनात्मक
नहीं जिसमें अभिधा का उल्लेख नहीं होता है .
2 हिंदी हाइकु का उद्भव और विकास –
इस खंड में जापानी हाइकु का विकास – प्राचीन
उद्भव से अब तक का [ बाशो , बुसोन , इस्सा , शिकी का जीवन एवं योगदान ] विशद वर्णन
है , भारतीय हाइकु के सन्दर्भ में – हिंदी में हाइकु का प्रवेश , विकास तथा इसके
प्रेरणास्रोत का वर्णन है .
1985 में हिंदी हाइकु का
सर्वप्रथम एकल संकलन – ‘ शाश्वत क्षितिज ’ प्रकाशित हुआ जिसे डॉ. भगवत शरण
अग्रवाल जी ने लिखा था . इसमें पहली बार 5,7,5 वर्णक्रम का पूर्णतः पालन हुआ और जिसकी आत्मा भारतीय थी . सन-1989 में
डॉ. सत्यभूषण वर्मा जी द्वारा हिंदी हाइकु पर एक डाक्युमेंटरी फिल्म ‘ स्माल इस
द ब्यूटीफुल ’ बनायी गयी . इस खंड में डॉ.सुधा गुप्ता ,डॉ.उर्मिला अग्रवाल ,
नलिनीकांत , डॉ.गोपाल बाबू शर्मा , रामेश्वर काम्बोज ‘
हिमांशु ’ डॉ.जगदीश व्योम ,डॉ.सतीश राज पुष्करणा , डॉ.रामनिवास मानव , डॉ.मिथिलेश
दीक्षित , डॉ.सुरेन्द्र वर्मा एवं डॉ.रमाकांत जी से लेकर अब तक के सभी के योगदान
पर चर्चा की गयी है . हाइकु संकलनों में कमलेश भट्ट ‘ कमल ’जी से लेकर रमेश कुमार
सोनी तक सभी का उल्लेख इसमें उद्धृत है . प्रवासी हाइकुकारों में डॉ. पूर्णिमा
वर्मन ,डॉ.हरदीप कौर संधु , डॉ.भावना कुँअर , के योगदानों की चर्चा है . समीक्षा
कार्य के अंतर्गत डॉ.रामनारायण पटेल ,डॉ.सतीश राज पुष्करणा , डॉ.सुधा गुप्ता
,डॉ.उर्मिला अग्रवाल , रामेश्वर काम्बोज ‘ हिमांशु ’ डॉ.सतीश राज पुष्करणा , एवं डॉ.भावना कुँअर के योगदानों को रेखांकित किया गया है
. हाइकु विषयक पत्र – पत्रिकाओं की सूची दी गयी है जिसमें विशेषांकों का भी उल्लेख
है ; इन सभी ने हाइकु के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है . अभी भी
समीक्षा और अनुवाद के क्षेत्र में पर्याप्त कार्य किया जाना शेष है . अनुवाद
के कार्य में डॉ. सत्यभूषण वर्मा की ‘जापानी कविताएँ’ डॉ. अंजली देवधर
की पुस्तक– ‘If Someone Asks – 2005’ , ‘Classic Haiku–
2006’एवं ‘ ओगुराहनाकुनिन इश्शु -2007’ , ‘भारतीय हाइकु -2008’ एवं ‘दूर के
पर्वत-2009 ’के कार्य की प्रशंसा की गयी
है . इन सभी में अनुवाद प्रारंभिक स्तर पर रहा जिससे हाइकु के अनुवाद के क्षेत्र
में विकास हुआ . रचना श्रीवास्तव द्वारा ‘ मन के द्वार हज़ार’ में हिंदी
हाइकु का अवधि में अनुवाद किया ; इस तरह हाइकु लोकभाषाओं तक भी अपनी पैठ जमाने में
सफल हुआ . इन दिनों डॉ.कुँवर दिनेश सिंह का अंग्रेजी में अनुवाद किये गए हाइकु का
संग्रह Flame of the forest सुर्ख़ियों में है.
3 हाइकु का कथ्य क्षेत्र – [ विषय ] –
हाइकु लेखन का आरम्भ प्रकृति
चित्रण से आरम्भ हुआ जो अब लोक जीवन की विविध क्षेत्रों तक पसर गया . यहाँ – प्रेम
,नारी ,त्यौहार , ग्रामीण जीवन , प्रदूषण , शहरीकरण , - विकास , जीवन दर्शन , नीति
कथन ,बाज़ारवाद,महँगाई ,गरीबी ,सांप्रदायिक दंगे
-आतंकवाद ,राजनीति ,व्यंग्य एवं राष्ट्र प्रेम से सम्बंधित विविध हाइकुकारों के
हाइकु का उदहारण सहित उनके योगदानों का प्रशंसनीय वर्णन किया गया है .
4 हाइकु का शिल्प पक्ष –
इस खंड में शोधार्थी ने हिंदी
हाइकु को मुक्तक की कोटि के अंतर्गत रखने के प्रमाण दिए हैं . हाइकु शिल्प की
जापानी सन्दर्भों में उसकी शैलियाँ जो प्रचलित हैं का ओंजी – मोरा और सिलेबल के
तहत हाइकु लेखन में अक्षर गिनती के स्थान पर वर्ण को गिनने को प्रधानता दी गयी है
तथा इसकी विशद व्याख्या की गयी है . हिंदी मुक्तक काव्य परंपरा में छंद के वार्णिक
और मात्रिक कई छंद मिलते हैं इन सबसे हाइकु का उद्भव या विकास नहीं हुआ को यहाँ
रेखांकित किया है . हाइकु और सेनर्यु में प्रारंम्भिक अंतर मिलते हैं जो धीरे –
धीरे समाप्त होते जा रहे हैं . तुक , लय और यति के हाइकु को उदहारण सहित समझाया
गया है . हाइकु में उपयोग हुई - भाषा शैली
के तहत – शब्द भण्डार [विविध भाषाओँ में] , शब्द शक्तियाँ , मुहावरे एवं
कहावतें, बिम्ब योजना ,प्रतीक , अलंकार
योजना एवं मिथक का सम्पूर्ण विवरण इसमें वर्णित है .
5 हाइकु के प्रमुख कवि : एक सर्वेक्षण –
इस खंड का आरम्भ डॉ. भगवत शरण
अग्रवाल , डॉ.सुधा गुप्ता , नीलमेंदु सागर, नलिनीकांत ,डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव ,
डॉ.उर्मिला कौल ,डॉ. शैल रस्तोगी , डॉ.गोपाल बाबू शर्मा, डॉ.उर्मिला अग्रवाल,
डॉ.भावना कुँवर, कमलेश भट्ट ‘ कमल, डॉ. कुँवर दिनेश सिंह , रामेश्वर काम्बोज ‘ हिमांशु ’ ,
डॉ.हरदीप कौर संधु, डॉ.सतीश राज पुष्करणा , डॉ. धनंजय चौहाण से लेकर अन्य
हाइकुकारों का नाम सहित उल्लेख किया गया है .
इस समीक्षा में इन सब महान
विभूतियों का सिर्फ नाम उल्लेख ही काफी है क्योंकि ये नाम अपने आप में एक युग के
बराबर हैं . इस खंड में इन सबका जीवन परिचय तथा उनके योगदानों को महत्त्व दिया गया
है .
उपसंहार के अंतर्गत हाइकु के इस
शोध कार्य को संक्षिप्तता दी गयी है ; साक्षात्कार के तहत - डॉ.सुधा गुप्ता ,
नीलमेंदु सागर , रामेश्वर काम्बोज ‘ हिमांशु ’ , डॉ.भावना कुँअर, , डॉ. कुँवर दिनेश सिंह और
डॉ.हरदीप कौर संधु जी से की गयी विस्तृत चर्चा यहाँ मिलती है | इस खंड में
सभी ने अपने प्रामाणिक वक्तव्य पाठकों के साथ साझा किए हैं . हाइकु सम्बन्धी कुछ
विचार के तहत डॉ.कविता भट्ट और प्रियंका गुप्ता के साथ इस शोध कार्य को समेटा गया
है .
हिंदी हाइकु पर डॉ. पूर्वा
शर्मा जी द्वारा किये गए इस पूरे शोध कार्य को आद्योपांत पढ़ने – मनन करने के
उपरांत एक बात मैं पूरे दावे के साथ कह सकता हूँ कि इसमें कुछ भी नहीं छूटा जिससे
यह कहा जा सके कि इसमें ऐसा नहीं होता ऐसे है . सभी जानकारियाँ प्रामाणिक तौर पर
उनके उद्धहरणों के साथ दी गयी हैं जिसे सरदार पटेल विश्वविद्यालय के विद्वान
प्राध्यापकों के द्वारा उनकी अपनी कसौटी पर जाँचा – परखा गया और इसे प्रमाणित किया
है . इससे पूर्व या इसके बाद किये गए शोध कार्यों की मुझे जानकारी नहीं है लेकिन
मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि इस ग्रन्थ ने सम्पूर्ण हाइकु जगत को अपने आपमें
समेट लिया है . यह ग्रन्थ हाइकु रचनाकारों को अवश्य पढ़ना चाहिए ; यह हिंदी
हाइकु का एक चार्टर या मेग्नाकार्टा से कम नहीं है. इन सबसे जुदा यदि कोई
हाइकु के बारे में कुछ विचार प्रमाणिक तौर पर रखता है तो उसका स्वागत है ; यदि वह प्रामाणिक
नहीं है तो वह एक मज़ाक से ज्यादा कुछ नहीं है .
इन दिनों सोशल मीडिया में चल
रहे हाइकु के विविध चैनलों – तथाकथित
विश्वविद्यालयों के द्वारा हाइकु की हानि की जा रही है ; इस नकारात्मक ख़बरों से यह
शोध कार्य दूर है . इसमें मैंने पाया कि हाइकु को विकास के पंख देने के लिए
समीक्षा और अनुवाद के कार्य किए जाने की आवश्यकता है . हिंदी ताँका और सेदोका पर
किसी पत्रिका ने मेरी जानकारी में अब तक कोई विशेषांक नहीं निकाले हैं इसे
प्रोत्साहित किया जाना चाहिए . इस शोध ग्रन्थ में जापानी विधाओं के किसी भी
विधा के ‘ इ पुस्तक ’ का उल्लेख नहीं किया गया है चूँकि यह शोध 2018 तक
पूर्ण हो गया था तब तक इसका उतना प्रचार – प्रसार नहीं हुआ था . इन दिनों
सूचना प्रौद्योगिकी के विकास ने इस दिशा में कई हाइकुकारों को आकर्षित किया है जो
एक अच्छा संकेत है . रामेश्वर काम्बोज ‘ हिमांशु ’ एवं डॉ.हरदीप कौर संधु के
सम्पादकीय में ‘हिंदी हाइकु एवं त्रिवेणी’ ब्लॉग में बहुत से हाइकु
संग्रहों एवं संकलनों के पुस्तक की सॉफ्ट कॉपी एवं उसकी समीक्षाएँ उपलब्ध हैं ;
इसने हिंदी हाइकु , ताँका हाइबन एवं
सेदोका के विकास में अपनी भूमिका का बखूबी
निर्वाह करने की सतत प्रक्रिया को जारी रखा है . इससे हमें प्रकाशकों के शोषण से ,
डाक विभाग की विलंबता से मुक्ति मिलेगी , और हमारी वन्य सम्पदा का भी संरक्षण होगा
.
इस शोध ग्रन्थ के प्रकाशन पर मैं
डॉ.पूर्वा शर्मा जी उनके मार्गदर्शक - डॉ.हसमुख परमार एवं रामेश्वर काम्बोज ‘
हिमांशु ’ तथा सरदार पटेल विश्वविद्यालय को बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ
तथा इस प्रमाणिक ग्रन्थ को उपलब्ध कराने के विचार को नमन करते हुए हिंदी साहित्य
की ओर से आभार मानता हूँ .
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हाइकु की अवधारणा और हिंदी हाइकु संसार –
डॉ.पूर्वा शर्मा
प्रकाशक
– विकास प्रकाशन,बर्रा- कानपुर / भूमिका –
रामेश्वर काम्बोज ‘ हिमांशु ’
ISBN – 978-81-944910-0-2
मूल्य– 1395=00रु. पृष्ठ – 520
समीक्षक–
रमेश कुमार सोनी, बसना 493554 [छत्तीसगढ़]7049355476
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