कविता - देखो -झाँको कौन है ?

बंद डिब्बा , बंद दिमाग 
बंद खिड़की , 
बंद दरवाजा .....
कोई खोले तो सही 
मिलेगा शायद उसे वहाँ - 
बेसन के लड्डू , 
गणित के उत्तर , 
दूध पिलाती गाय 
या कोई नहीं था द्वारे ! 
फिर तुम क्यों लौट आती हो 
उदासी के साथ कमरे में , 
क्या तुम्हें नहीं लगा की 
वाकई कोई नहीं था वहाँ 
या शायद कोई तो था 
शायद - 
प्रचंड लू की नागिन ?
धुन्ध , ओस का कोचिया ? 
बर्फ , आइसक्रीम का ब्यापारी ? 
श्वेटर , कंबलों का कुली या 
भीगती खड़ी वर्षा रानी ? 
नहीं दिखा इनमें से कोई भी तुम्हें ...! 
कोई गाय , कुत्ता , गौरैया ....
ये सब अब नहीं दिखेंगे तुम्हें क्योंकि - 
इस दुनिया के रंगमंच से 
ये सब अपनी - अपनी भूमिका निभाकर लौट गए हैं 
अब तुम्हें ये सोचना है कि - 
तुम्हारा काम कब खत्म होगा ? 
तुम कब लौटोगे यहाँ से ....? 
      .......   ........

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