कविता - सेल्फी

सेल्फी…….                                     
 अपने पसीना भर ताकत से
पत्थरों को चूर करते वह
रेत हुए जा रही है ,
यहीं हथौड़े की हर चोट दस्तक हो रही थी  –
पत्थरों की दुनिया में , जिंदगी के तलाश की |
क्रशर उद्योगों से
दम भर लड़ रही है वह
इसी में मिलता है उसे –
रेत हो जाने के संगीत का सुकून  ;
उसे आदत हो गयी है –
पत्थरों संग सड़कों में बिछ जाने की
उसे रौंदे जाने पर  कोई फर्क नहीं पड़ता
क्योंकि यह उसके लिए
कोई नयी बात कभी नहीं रही |
वह बेच रही है अपनी ताकत
सिर्फ बीस रुपये धमेला ...
जैसे बेच देते हैं लोग –
अपना दूध और अपनी गर्भ !!
माल संस्कृति के गुजरते हुए लोग
उसकी रेत होती जिंदगी के साथ सेल्फी लेकर
ऑनलाइन कमेंट्स चाहते हैं ...... |
वह सेल्फी बनी हुई
पत्थरों की दुनिया में घूम रही है -
......भूख की ब्राण्डिंग देखने ;
कमेंट्स आ रहे हैं ...........
पथराए जिस्म पर चमकते पसीने की बूंदें
जिंदगी की सुन्दर सेल्फी है ...... ,
कभी कोई इनके मन की
अतल गहराइयों की सेल्फी खींचता तो
शायद दिख जाता – कांक्रीट और सड़कों का शोषण
हवेलियों का बौनापन और बताता                     तिजौरियों की गरीबी
किस कदर भूखी – नंगी होती है ||           
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