पवित्र सुगंध


पवित्र सुगंध


हम दोनों ने एक साथ ईश्वर से माँगा

दोनों ने किसी को नहीं बताया

लेकिन दोनों को पता है

किसने क्या माँगा है

शायद वही जो वर्षों से मंदिर में 

दमक रही है 

अखंड ज्योत की तरह पवित्र। 


हमने क्या पाया नहीं बताया किसी को

छिपा लिया हृदय के कोने में 

आँखें चमक उठी इधर भी उधर भी

इशारे पूछ बैठे क्या हुआ?

दिल ने कहा 

प्रेम की सुगंध सुवासित रहेगी

पवित्र होम के धूप की तरह। 


फूलों की टोकरी 

दोनों ने एक साथ भेंट की 

प्रसाद भी एक साथ लिया

लेकिन उसे बाँटा नहीं 

दोनों ने खाया पूरा-पूरा

प्रेम अधूरा कहाँ होता है

आरती की लौ जैसी शुद्ध। 

.....

रमेश कुमार सोनी


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