रोली अक्षत मेरा प्रथम हिंदी हाइकु-संग्रह है जो सन 2004 में प्रकाशित हुआ था। यह छत्तीसगढ़ का भी प्रथम हिंदी हाइकु-संग्रह है।
इसकी समीक्षाएँ यथासमय प्रिंट मीडिया में प्रकाशित हुई हैं ऐसी ही दो समीक्षा को डिजिटलाइज करते हुए आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ।
इसके साथ ही मैं हाइकु समीक्षक द्वय को इसके माध्यम से धन्यवाद सहित अपनी श्रद्धाजंलि अर्पित करता हूँ-
प्रमुख हिन्दी कवि बिहारी द्वारा रचित दोहों के बारे में यह उक्ति प्रसिद्ध हैं-
सत सैया के दोहरे ज्यों नावक के तीर।
देखन में छोटे लगे, घाव करें गंभीर ॥
बिहारी के एक-एक दोहे में जो अर्थ कूट-कूटकर भरा है, उसे प्रगट करने के लिए साधारण कवियों को कई पंक्तियाँ लिखनी पड़ेंगी, तब भी वह प्रभाव नहीं आ पाएगा।
हिन्दी के जाने माने कवि कहानीकार एवं स्तंभलेखक रमेश कुमार सोनी का एक हाइकु संग्रह ‘रोली अक्षत’ मेरे सामने है। इसका प्रकाशन वैभव प्रकाशन, रायपुर छत्तीसगढ़ द्वारा सन-2004 में किया गया था। वैसे लेखक ने पुस्तक की एक प्रति उसी वर्ष मुझे भेज दी थी तो भी अब तक मैं उसकी समीक्षा नहीं लिख पाया। हाइकु एक सरल छंद है, जिसके केवल तीन चरण होते हैं। पहले और तीसरे चरण में पाँच-पाँच अक्षर दूसरे चरण में सात अक्षर। कुल सतरह अक्षर। यद्यपि हाइकु का आकार इतना छोटा है तो भी सफल रचनाकार उसके माध्यम से अपने अनुभूत यथार्थ की सशक्त अभिव्यक्ति अत्यंत सुंदर ढँग से कर सकता है। बिहारी के दोहों के समान। उसमें लोकमंगल की भावना भी आ जाए तो सोने में सुगंध ।
वैसे तो हाइकु मुक्तक छंद है। अतः एक-एक हाइकु का अपना स्वतंत्रता अस्तित्व है पर कोई-कोई हाइकुकार हाइकु रचनाओं में प्रबंधात्मकता का भी थोड़ा बहुत निर्वाह करते हैं। रमेश कुमार सोनी ने अलोच्य संग्रह को कई शीर्षकों के अंतर्गत बाँटा है। एक-एक शीर्षक के अंतर्गत आने वाले हाइकु पदों में हल्का संबंध भी जुड़ गया है। एक-एक भाव को अधिक पूर्णता प्रदान करने में यह रीति सहायक हुई है। लोरी कहानी खंड की रचनाओं में नारी के पुत्री, पत्नी, माँ तीनों रूपों को वंदनीय मानते हुए लिखा है-
ना दूध कर्ज/ना लोरी, ना कहानी/कैसे चुकाए।
ममतमयी माता अपनी संतान को दूध पिलाकर लोरी गाकर, कहानी सुनाकर बड़े प्रेम व वात्सल्य के साथ पालती पोसती है पर क्या संतानें इसका कर्ज चुकाती हैं? जो संतान पढ़ लिखकर जितना उच्च पद पाती है, वह माता से उतनी ही दूसरी पर बस जाती है। माता यदि विधवा भी बन गयी तो?
विधवा हुई/मौत की परछाई/जीने न पाई।
लेकिन फैशन के नाम पर जिस्म की जो नुमाइश होती है, उससे कवि समझौता नहीं कर पाते।
कैसी साजिश/जिस्म की नुमाइश/तेरी ख्वाहिश।
आज हम देखते हैं जाति, धर्म और राजनीति, भाषावाद और प्रांतवाद आदि के नाम पर जनसमूहों में विद्वेष पनप रहा है। दुनिया के विभिन्न भागों में बम विस्फोट हो रहे हैं। बच्चों, महिलाओं सहित निरपराध जनों की हत्याएँ हो रही हैं। कवि का आह्वान है-
मन का मोल/चले रेलम पेल/बिना सिग्नल।
इसमें शब्दालंकार और अर्थालंकार का कैसा अच्छा संयोग हुआ है। दहेज की कुप्रथा कैसे लड़कों को भी संकट में डालती है इस पर कहते हैं-
दूल्हा बेचारा/शादी के बाजार में/लाचार मर्द।
और नई दुल्हन की स्थिति देखिए-
नई दुल्हन/बड़ी है उलझन/केंद्रीय जेल।
समाज में व्याप्त घने अंधकार के चंगुल से उसे कैसा नेतृत्व मुक्त कर सकेगा? इस पर उनका हाइकु है-
शूल से यारी/पौरूष और यौवन/ज्योतिर्गमय।
नेतृत्व करने वाले ऐसे युवा है, जिनमें समाज के लिए कष्ट सहन करे और प्राण तक न्यौछावर करने का साहस हो। हमारे देश की यह हालत है। नब्बे वर्ष पार कर जाने पर भी विधानसभा और संसद की कुर्सी का मोह छूटता नहीं, फिर साहसी, निस्वार्थ युवक कैसे आगे आएँ? हमारी अंधेर नगरी का हाल देखिए-
सब लुटेरे/किससे लड़ें-बचें/सभी अपने।
जब ये पंक्तियाँ लिखी गईं, तब 2जी स्पेक्ट्रम, कॉमनवेल्थ गेम्स, आदर्श सोसायटी घोटाला जैसे पदबंध सुर्खियों में नहीं थे। कहते हैं, अधिकार दिए नहीं जाते लिए जाते हैं,कवि का आह्वान है-
छीन लीजिए/निज हिस्से की रोटी,/ऐसे ना मिले।
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के.जी.बालकृष्ण पिल्लै-तिरुवनंतपुरम
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जीवन में सुख-दुःख का एहसास कराता हुआ हाइकु संग्रह "रोली अक्षत"
"रोली अक्षत" श्री रमेश कुमार सोनी का प्रथम हाइकु संग्रह है। इस हाइकु संग्रह के प्राक्कथन में कवि ने वर्तमान जीवन की अवदशा तथा उस संदर्भ में अपनी मानसिकता को व्यक्त करने के लिए अपने हृदय के मार्मिक उद्गारों को "रोली अक्षत" हाइकु संग्रह में व्यक्त किया है। "रोली अक्षत-हाइकु जगत में रहे अक्षत" शीर्षक के अंतर्गत शंभूशरण द्विवेदी "बन्धु" ने सोनी के हाइकुओं पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। श्री द्विवेदी जी को इस हाइकुकार से आशा है, अतः स्पष्टतः कहा है -"हाइकुकार के रूप में रमेश कुमार सोनी का यह हाइकु संग्रह हिन्दी जगत में अपना विशिष्ट स्थान भी बनाने में समर्थ होगा। इसकी इंद्रधनुषी छटा पाठकों को आकर्षित करेगी।" "अर्चना की थाली में सजे रोली अक्षत शीर्षक अंतर्गत डॉ. सुधा गुप्ता ने भी सोनी की रचनाधर्मिता को सराहा है।"
"रोली अक्षत" हाइकु संग्रह में कवि ने विविध शीर्षकों के अंतर्गत जीवन के विविध भावों को रेखांकित करने का सफल प्रयास किया है। नारी के प्रति कवि का दृष्टिकोण उदात्त रहा है, क्योकि नारी हर रूप में महान है। अतः कवि ने प्रारंभ में ही कहा है-
नारी, बहन/पुत्री, पत्नी, रूप है/वंदनीया।
कवि जीवन में हर हाल में निराशा को भूलकर आशा भरे जीवन की कामना करता है अतः स्पष्टतया कहता है-
मन यौवन/पिघला दे पत्थर/यही पौरुष।
अंधेरी नगरी में आज के राजनीतिक जीवन की अवदशा का चित्र प्रस्तुत करते हुए कवि ने सच ही कहा है-
चौपट राजा/अंधेर नगरी है/ भ्रष्ट शासन।
शायद इस कारण ही देश आज अत्यंत दयाजनक स्थिति से गुजर रहा है-
ऑफिस बाबू/साहब चपरासी/आतंकवादी।
आज की शैक्षणिक व्यवस्था पर करारा व्यंग्य करते हुए कवि ने सच ही कहा है -
गुरु महिमा / किधर है गरिमा /धन महिमा।
"एक भारती" में कवि का देशप्रेम व्यक्त हुआ है-
तुझे नमन/वतन हिन्दुस्तान/हर्षित मन।
"सियासत का खेल" का व्यंग्य देखिए -
पैसे जिनके/सरकार उनकी/हम पराये।
इस प्रकार रोली अक्षत में श्री रमेश कुमार सोनी ने जीवन और प्रकृति के अटूट संबंध को व्यक्त करके अपने दिल की धड़कन को वाणी दी है। जब भी कोई बात दिल से निकलता है, तब वह चोट भी पहुँचाता है। अतः इन हाइकुओं में प्रभाव क्षमता की भावना बेजोड़ है।
प्रा. मुकेश रावल-आणंद
अध्यक्ष,हिन्दी विभाग-आणंद आर्ट्स कॉलेज,
आणंद, गुजरात
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रोली अक्षत, हाइकु संग्रह, रमेश कुमार सोनी,
प्रकाशक-वैभव प्रकाशन, रायपुर (छ.ग.), 2004
मूल्य 100/- रुपये
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(साहित्य वैभव अंक 3 मई-जुलाई 2005 रायपुर में प्रकाशित पृष्ठ-50)